2019 में ही राम मंदिर निर्माण कार्य शुरू होने का विश्वास बढ़ता चला जा रहा है

By नीरज कुमार दुबे | Jan 01, 2019

अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर कब बनेगा इसका जवाब भले राजनीतिक दलों खासकर भाजपा नेताओं के पास नहीं हो लेकिन अयोध्या वासियों को पूरा विश्वास है कि वर्ष 2019 में राम मंदिर के निर्माण का कार्य अवश्य शुरू होगा। ऐसा नहीं है कि यह विश्वास सिर्फ किसी खास समुदाय के लोगों को हो या किसी खास उम्र के लोगों को हो। अयोध्या चले जाइए और जिस-जिस से पूछते जाएंगे, जवाब यही आयेगा कि राम मंदिर का इंतजार अब पूरा होने वाला है और भव्य राम मंदिर बनने वाला है। चाहे संत हों या आम आदमी सब राजनीतिक चालों के साथ ही न्यायिक गतिविधियों पर बारीक नजर रखे हुए हैं और मान कर चल रहे हैं कि भाजपा नेताओं को जो संत समाज की ओर से चेतावनी दी गयी है उसका असर दिखने ही वाला है।

 

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विश्वास का आधार क्या है?

 

राम मंदिर 2019 में ही बनना शुरू होगा, इस विश्वास का आधार यह है कि भाजपा को यह बात पूरी तरह समझ आ चुकी है कि राम मंदिर मुद्दे पर यदि लोकसभा चुनावों से पहले निर्णय नहीं लिया गया तो उसका वोट बैंक बुरी तरह छिटक सकता है। राम लला के दर्शन करने के लिए जब लाइन में लगे लोगों से बातचीत की गयी तो सभी का यह कहना था कि भाजपा को वोट करने हम जैसे भक्त लोग जाते हैं वो लोग नहीं जिनके तुष्टिकरण में पार्टी इन दिनों लगी हुई है। लोगों का साफ तौर पर कहना था कि भाजपा ने जो माँगा वो हमने दिया, 'केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार मांगी, हमने दिया, राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार मांगी हमने दिया लेकिन अब बारी भाजपा की है। यदि भाजपा ऐसी अनुकूल परिस्थितियों में जबकि केंद्र और उत्तर प्रदेश में उसकी पूर्ण बहुमत वाली सरकार है और राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पदों पर भी उसके ही लोग विराजमान हैं में भी कुछ नहीं कर सकती तो ऐसी पार्टी को सत्ता से बाहर होना चाहिए।' यही नहीं लोगों का यह भी कहना है कि कांग्रेस जोकि सॉफ्ट हिन्दुत्व की राह पर चल रही है, वह भी राम मंदिर का विरोध करने की स्थिति में नहीं है इसलिए भाजपा को कदम आगे बढ़ाना ही चाहिए क्योंकि इतनी अनुकूल स्थितियां फिर बड़ी मुश्किल से होंगी।

 

 

संत समाज चेतावनी के साथ ताकत भी दे रहा है

 

संत समाज को भी लगता है कि अब वह समय आ गया है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाने वाले हैं। राजनीतिक तौर पर भले यह सरकार के लिए मुश्किल भरा कार्य हो लेकिन संतों से बात करें तो उन्हें इस बात का विश्वास है कि भाजपा इस मुद्दे पर काम कर रही है और जल्द ही तारीख की घोषणा होगी। संतों का एक वर्ग तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की शक्ति बढ़ाने के लिए विशेष पूजा-पाठ करने में भी लगा हुआ है। संत बातचीत में कहते हैं कि यदि 2019 में राम मंदिर निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ तो यह मुद्दा फिर पीछे चला जायेगा क्योंकि यदि भाजपा की चुनावों में हार हो गयी तो कांग्रेस या अन्य दल अपने कार्यकाल में राम मंदिर पर बात भी नहीं करेंगे। 31 जनवरी को कुम्भ मेले के दौरान धर्म संसद का भी आयोजन किया जा रहा है जिसमें संत समाज यह तय करेगा कि राम मंदिर मुद्दे पर आगे क्या कदम उठाये जाएं।

 

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न्यायालय पर हैं सभी की नजरें

 

सभी की नजरें 04 जनवरी, 2019 को राम मंदिर मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय में होने वाली सुनवाई पर लगी हुई हैं। अदालत सुनवाई के लिए सिर्फ पीठ का ही गठन करती है या नियमित आधार पर सुनवाई का आदेश भी देती है या फिर कोई और कदम उठाती है, इसको लेकर कयासों का दौर भी जारी है। वैसे अदालत से मामले का हल निकलेगा इसको लेकर लोगों के मन में संशय है। लोगों का कहना है कि बातचीत से भी मसले का हल निकलना मुश्किल है क्योंकि जब-जब बातचीत आगे बढ़ती है तब-तब कुछ लोग इसमें रोड़ा अटकाने सामने आ जाते हैं। इसलिए राम मंदिर के लिए कानून बनाना ही लोगों को आखिरी विकल्प लगता है। हालांकि संसद के शीतकालीन सत्र से लोगों को काफी उम्मीदें थीं लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। भाजपा के कुछ सदस्यों की ओर से भी राम मंदिर के लिए निजी विधेयक लाने की बात कही गयी थी लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। विश्व हिन्दू परिषद के नेताओं ने सांसदों से मिल कर राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की मांग की थी लेकिन इस पूरी कवायद से भी कुछ नहीं निकला। अब विश्व हिन्दू परिषद के नेता दावा कर रहे हैं कि इंतजार कीजिये मोदी और योगी के हाथों ही होगा राम मंदिर का निर्माण।

 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी हो चुका है सक्रिय

 

हालांकि संघ परिवार के विभिन्न घटक राम मंदिर मुद्दे पर सरकार को खुलेआम चेतावनी दे रहे हैं लेकिन अंदर ही अंदर यह भी चाहते हैं कि यह सरकार सत्ता में बनी रहे। इसके लिए प्रयास भी शुरू हो गये हैं। पिछले माह गुजरात के राजकोट में हिन्दू संतों और धर्माचार्यों की एक बड़ी बैठक हुई जिसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और पार्टी सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी भी मौजूद थे। इसमें तय कर लिया गया है कि इस मुद्दे पर अदालत के रुख के बाद कैसे आगे बढ़ना है। यदि अदालत में फिर मामला टलता है तो भाजपा के पास राम मंदिर के लिए खुलकर सामने आने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। चाहे योगी आदित्यनाथ हों या राजनाथ सिंह, हाल के दिनों में देखने को मिला है कि भाजपा के बड़े नेताओं की सभा में जनता हंगामा करने लगी है और 'पहले मंदिर फिर सरकार' का नारा बुलंद करने लगी है। संभव है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी आने वाले दिनों में अपनी जनसभाओं में 'मोदी मोदी' के उद्घोष की जगह 'राम मंदिर' का नारा सुनने को मिले।

 

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मंदिर के साथ मस्जिद संभव नहीं

 

राम मंदिर के साथ मस्जिद भी बनाने की बात जो लोग करते हैं वह यदि एक बार अयोध्या हो आयें तो ऐसी बातें करना बंद कर देंगे। यह सही है कि राम तो कण-कण में विराजमान हैं लेकिन सरयू के इस पार तो लगता है कि राम और हनुमान जी के सिवा कुछ है ही नहीं। श्रीरामजन्मभूमि पर यदि राम मंदिर के अलावा मस्जिद या कोई और धर्मस्थल बनाया गया तो यकीन मानिये हम राम मंदिर मुद्दा सुलझाएंगे नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बड़ी समस्या छोड़ जाएंगे। साम्प्रदायिक सद्भाव रहना ही चाहिए लेकिन यदि राम मंदिर के साथ मस्जिद बनायी गयी तो यह साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल नहीं बल्कि साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए समस्या बन जायेगी।

 

 

बहरहाल, अयोध्या में लोगों से बातचीत करके एक बात और साफ हो जाती है कि राजनीतिक दल भले कितनी चालें चलें लेकिन जनता बहुत समझदार है और राम मंदिर मुद्दे पर हर राजनीतिक दल के रुख, संसद और न्यायालय में इस मुद्दे पर होने वाली गतिविधियों के साथ ही संबंधित खबरों से पूरी तरह अवगत है। जनता को मूर्ख बनाना आसान नहीं है और भाजपा भी हाल के विधानसभा चुनावों में नोटा को मिले भारी मतों और सवर्णों की नाराजगी से पार्टी को हुए नुकसान को देखते हुए फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है। पार्टी अब समझ रही है कि मात्र राम नाम जपने से कुछ नहीं होगा, राम से किये गये वादे पूरे करने का समय आ गया है।

 

-नीरज कुमार दुबे

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