राज्यसभा चुनावः अशोक गहलोत की गुगली से भाजपा हुई आउट

By रमेश सर्राफ धमोरा | Jun 14, 2022

राजस्थान में संपन्न हुए राज्यसभा के चुनाव में एक बार फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जादूगरी देखने को मिली है। गहलोत ने भाजपा के मंसूबों पर पानी फेरते हुए आसानी से कांग्रेस पार्टी के तीनों प्रत्याशियों रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक व प्रमोद तिवारी को  जितवा कर कांग्रेस आलाकमान की नजरों में अपनी राजनीति का लोहा मनवाया है। इस बार के राज्यसभा चुनाव में गहलोत ने कांग्रेस के 108 विधायकों के साथ ही निर्दलीय व अन्य दलों के सभी विधायकों को एकजुट कर यह दिखा दिया है कि राजस्थान की राजनीति में उनके सामने भाजपा की कोई बिसात नहीं है।


राजस्थान में राज्यसभा के लिए चार सीटों के चुनाव हुए हैं। यह चारों सीट पूर्व में भाजपा के पास थी। मगर संख्या बल के हिसाब से इस बार कांग्रेस के तीन व भाजपा का एक प्रत्याशी चुनाव जीत सकता था। लेकिन भाजपा ने हरियाणा से राज्यसभा सदस्य व मीडिया घराने के मालिक सुभाष चंद्रा को अपने समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतार दिया था। जिस कारण प्रदेश में चुनाव की नौबत आई। 2016 में सुभाष चंद्रा ने हरियाणा में जिस तरह जोड़-तोड़ कर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीता था। ऐसे में उनको बहम था कि राजस्थान में भी वो अपनी पुरानी कलाकारी दोहराएंगे। मगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने सुभाष चंद्रा व उनके भाजपा समर्थकों की एक भी नहीं चली। वह मात्र 30 वोट ही प्राप्त कर सकें।

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सुभाष चंद्रा द्वारा भाजपा के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन करते ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सतर्क हो गए थे। उन्होंने अपने समर्थक विधायकों को एकजुट करना शुरू कर दिया। मुख्यमंत्री गहलोत ने कांग्रेस समर्थित अन्य सभी विधायकों को उदयपुर के एक रिसोर्ट में ले जाकर रखा ताकि सुभाष चंद्रा उनके समर्थक विधायकों में सेंध नहीं लगा सके। भाजपा से कांग्रेस में आए छ विधायकों, भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो विधायकों व कुछ निर्दलीय विधायकों को सरकार से शिकायतें थी। उन सभी विधायकों की शिकायतों को भी मुख्यमंत्री गहलोत ने समय रहते सुनकर उनका निराकरण करवाया। साथ ही गहलोत ने भविष्य में उनकी और सभी बातों का निराकरण करवाने का भरोसा दिलवाया। उसके बाद सभी विधायक कांग्रेस के कैंप में उदयपुर पहुंच गए। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री गहलोत स्वयं भी उदयपुर पहुंचकर विधायकों से लगातार सलाह मशविरा करते रहे व चुनावी रणनीति बनाते रहे।


चुनावी नतीजों में कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला 43 वोट, मुकुल वासनिक 42 वोट व प्रमोद तिवारी 41 वोट लेकर विजेता रहे। भाजपा के घनश्याम तिवारी को 43 वोट मिले और वह भी चुनाव जीत गए। निर्दलीय सुभाष चंद्रा को मात्र 30 वोट ही मिल सके और वह चुनाव हार गए। इतना ही नहीं गहलोत ने भाजपा खेमे में सेंध लगाते हुए धौलपुर से भाजपा की विधायक शीलारानी कुशवाहा का वोट भी कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद तिवारी को दिलवा कर क्रास वोटिंग करवा दी। इससे भाजपा खेमे में हड़कंप मचा हुआ है। भाजपा ने शीला रानी कुशवाहा को पार्टी से निलंबित भी कर दिया है। हालांकि कांग्रेस का एक वोट भी गलती से निरस्त हो गया था।


इस बार राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस आलाकमान ने तीनों ही प्रत्याशी राजस्थान से बाहर के भेज दिए थ।े जिसका कुछ विधायकों ने विरोध भी किया था। मगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सभी विधायकों को समझा कर विरोध को शांत करवाया। मुख्यमंत्री गहलोत ने कांग्रेस के उम्मीदवारों के पक्ष में 200 में से 126 वोट डलवाने में सफल रहे। जिनमें कांग्रेस के 108 वोट, निर्दलीय 13 वोट, माकपा के दो वोट, भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो वोट, राष्ट्रीय लोक दल का एक वोट व एक भाजपा विधायक सीमारानी कुशवाहा का वोट पाने में सफल रहे। यदि कांग्रेस का एक वोट निरस्त नहीं होता तो कांग्रेसी प्रत्याशियों के पक्ष में 127 वोट पड़ते।


राज्यसभा चुनाव में राजस्थान एकमात्र ऐसा प्रदेश है जहां से कांग्रेस के सबसे ज्यादा तीन सदस्य राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं। राजस्थान से निर्वाचित हुए तीनों ही सदस्य मुकुल वासनिक, रणदीप सुरजेवाला, प्रमोद तिवारी कांग्रेस में केंद्र की राजनीति करते हैं। मुकुल वासनिक कांग्रेस के महासचिव होने के साथ ही सोनिया गांधी के विश्वस्त लोगों में है। वह केंद्रीय चुनाव कमेटी के सचिव भी है। रणदीप सुरजेवाला कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व मीडिया सेल के अध्यक्ष होने के साथ ही राहुल गांधी व संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल के विश्वास पात्र हैं। प्रमोद तिवारी उत्तर प्रदेश में पार्टी के बड़े ब्राह्मण चेहरे हैं। वह कई बार विधायक, मंत्री व पूर्व में राज्यसभा सदस्य भी रहे हैं। वह प्रियंका गांधी के निकट के लोगों में शामिल है। इस तरह से देखे तो राजस्थान से चुनाव जीतने वाले तीनों ही नेता कांग्रेस आलाकमान का हिस्सा है। इनकी जीत में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का बड़ा रोल है। ऐसे में कांग्रेस की राजनीति में यह तीनों ही नेता जरूरत पड़ने पर गहलोत के पैरोकार के रूप में काम करेंगे। इसका राजनीतिक रूप से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लाभ मिलेगा।


राज्यसभा चुनाव में तीन सीटें जितवाकर गहलोत ने कांग्रेस की राजनीति में अपना कद काफी बड़ा कर लिया है। ऐसे में उन्हें अगले दो साल तक शासन करने में किसी भी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। राज्यसभा चुनाव के माध्यम से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस के बागी नेता सचिन पायलट को भी किनारे कर देंगे। अब तक सचिन पायलट कुछ केंद्रीय नेताओं के समर्थन से ही गहलोत हटाओ अभियान चला रहे थे। मगर अब गहलोत ने बाजी पूरी तरह से पलट दी है।

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राजस्थान से कांग्रेस के 6 राज्य सभा सदस्य हैं। जिनमें एक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह है। कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल को भी गहलोत पिछली बार राज्यसभा में पहुंचा चुके हैं। वेणुगोपाल कांग्रेस की राजनीति में राहुल गांधी के नंबर वन सलाहकार हैं। केसी वेणुगोपाल के समर्थन से ही गहलोत ने सचिन पायलट की बगावत को फेल किया था। अब राज्यसभा चुनाव में अपनी जादूगरी दिखाकर गहलोत ने पार्टी में अपनी पकड़ और मजबूत कर ली है।


कुछ दिनों पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत ने एक बयान दिया था कि राज्यसभा चुनाव के बाद वह अपने मंत्रिमंडल में एक बार फिर फेरबदल करेंगे। ऐसे में लगता है कि इस बार के फेरबदल में वह अपने कट्टर विरोधी सचिन पायलट गुट के मंत्रियों को भी मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा कर अपने समर्थक कुछ और विधायकों को मंत्री बना सकते हैं। बहरहाल अभी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का जादू कांग्रेस आलाकमान के सिर चढ़कर बोल रहा है। 


कांग्रेस पार्टी लगातार भाजपा से चुनाव हारती जा रही है। ऐसे में राजस्थान के चुनावी नतीजों से कांग्रेस के गिरते ग्राफ को रोकने में मदद मिलेगी। राजस्थान की जीत के बाद मुख्यमंत्री गहलोत का मनोबल काफी बढ़ा है। चुनावी नतीजे आते ही उन्होने घोषणा कर दी कि 2023 के विधानसभा चुनाव में भी वो भाजपा विरोधी दलों को एकजुट कर चुनाव लड़ेगें और भाजपा को करारी शिकस्त देकर प्रदेश में फिर से कांग्रेस की सरकार बनायेगें।


- रमेश सर्राफ धमोरा

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