गाँव-गाँव में पार्टी की मजबूती के लिए भाजपा ने बनाया मेगा प्लान

By अजय कुमार | Jan 18, 2021

भारतीय जनता पार्टी का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। 1980 में गठन के बाद 1984 के लोकसभा चुनाव में दो सीटें जीतने वाली बीजेपी के आज तीन सौ से अधिक सांसद हैं। कई राज्यों में उसकी सरकारें हैं, लेकिन बीजेपी आज भी सर्वमान्य पार्टी नहीं बन पाई है। दक्षिण के राज्यों में उसकी पकड़ नहीं के बराबर है। कर्नाटक को छोड़ दें तो दक्षिण के राज्यों- आन्ध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना में आज भी बीजेपी ज्यादातर मुकाबले में नजर नहीं आती है। इसी के चलते बीजेपी पर पूरे देश की बजाए उत्तर भारतीयों की पार्टी होने का ठप्पा चस्पा रहता है। उत्तर भारत में भी बीजेपी को लेकर बुद्धिजीवियों और राजनैतिक पंडितों की अलग-अलग धारणा है। कभी बीजेपी को बनिया (व्यापारियों) और ब्राह्मणों की पार्टी कहा जाता था, तो ऐसे लोगों की भी संख्या कम नहीं थी जो बीजेपी को शहरी पार्टी बताया करते थे। इस अभिशाप को मिटाने के लिए बीजेपी को काफी पापड़ बेलने पड़े तो प्रभु राम ने उसका (बीजेपी) बेड़ा पार किया।

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अयोध्या में भगवान राम की जन्मस्थली के पांच सौ वर्ष पुराने विवाद में ‘कूद’ कर बीजेपी ने ऐसा रामनामी चोला ओढ़ा कि वह बनिया-ब्राह्मण की जगह हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद की लम्बरदार बन बैठी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की राजनैतिक इकाई भारतीय जनता पार्टी ने वर्षों से अलग-अलग अपनी ढपली बजाने वाले हिन्दुओं को भगवान राम के नाम पर एकजुट करके उसे बीजेपी का वोट बैंक भी बना दिया, लेकिन फिर भी बीजेपी के ऊपर शहरी पार्टी होने का ठप्पा तो लगा ही रहा। यह वह दौर था जब बीजेपी को छोड़कर कांग्रेस सहित अन्य तमाम गैर-भाजपाई दल मुस्लिम तुष्टिकरण की सियासत में लगे हुए थे। वहीं हिन्दुओं के वोट बंटे रहें, इसके लिए साजिशन हिन्दुओं के बीच जातिवाद घोलकर उनके वोटों में बिखराव पैदा किया गया। यादवों के रहनुमा मुलायम बन गए और मायावती दलितों को साधने में सफल रहीं। हिन्दुओं के वोट बैंक में बिखराव के सहारे ही बिहार में लालू यादव और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह ने वर्षों तक सत्ता हासिल करने में कामयाबी हासिल की। बसपा सुप्रीम मायावती ने भी कई बार दलित-मुस्लिम वोट बैंक के सहारे सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने में कामयाबी हासिल की। यह सब तब तक चलता रहा जब तक कि भारतीय जनता पार्टी में मोदी युग का श्रीगणेश नहीं हुआ था। 


2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी ने हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद की ऐसी अलख जलाई की शहर से लेकर गाँव तक में मोदी-मोदी होने लगा, लेकिन इसका यह मतलब नहीं था कि बीजेपी ने गाँव-देहात में अपने संगठन को मजबूत कर लिया था। बीजेपी पर शहरी पार्टी होने का ठप्पा लगा था। इस ठप्पे को हटाने के लिए ही मोदी सरकार ने तमाम विकास योजनाओं का रूख गांव-देहात और अन्नदाताओं की तरफ मोड़ दिया। फसल बीमा योजना, कृषि में मशीनीकरण, जैविक खेती, सॉइल हेल्थ कार्ड और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना ऐसी प्रमुख योजनाएं हैं जो केंद्र सरकार के द्वारा चलाई जा रही हैं। किसानों से लगातार संवाद किया जा रहा है। किसानों की माली हालत सुधारने के लिए कई राहत पैकजों की भी घोषणा की गई। नया कृषि कानून भी इसका हिस्सा है जिसको लेकर आजकल पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ किसानों ने मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा भी खोल रखा है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने नये कृषि कानून पर अंतरिम रोक लगा कर एक कमेटी भी गठित कर दी है।


एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किसानों को लेकर कई कदम उठा रहे हैं तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भी केन्द्र सरकार के पदचिन्हों पर चलते हुए कई किसान योजनाएं लेकर आई है। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश में सिंचन क्षमता में वृद्धि तथा सिंचाई लागत में कमी लाकर कृषकों की आय में वृद्धि करने के उद्देश्य से स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। 50 लाख किसान ड्रिप स्प्रिंकलर सिंचाई योजना से लाभान्वित हुए। योजना में लघु एवं सीमांत कृषकों को 90 प्रतिशत एवं सामान्य कृषकों को 80 फीसदी का अनुदान मिला है। लघु, सीमांत, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के कृषक समूह के लिए मिनी ग्रीन ट्यूबवेल योजना की भी शुरुआत की गई है। योजना के तहत नलकूप के सबमर्सिबल पम्प का संचालन सौर ऊर्जा के माध्यम से किया जाएगा।


योगी सरकार खेतों की मुफ्त में जुताई और बुवाई का भी कार्यक्रम लेकर आई है। पहले चरण में ये योजना यूपी के लखनऊ, वाराणसी और गोरखपुर समेत 16 जिलों में लागू की गई। इसके तहत लघु और सीमांत किसानों को राहत देने के लिए योगी सरकार ने ट्रैक्टरों से मुफ्त में खेतों की जुताई और बुवाई कराने जैसी बड़ी सुविधा दी गई है। मुख्यमंत्री कृषक योजना के तहत 500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। हाल ही में किसान सम्मान निधि योजना के तहत 2.13 करोड़ किसानों के बैंक खातों में 28,443 करोड़ रुपये हस्तांतरित किये गये। देश के किसानों के लिए यह सब योजनाएं केन्द्र की मोदी सरकार लाई है तो यूपी की योगी सरकार अपने प्रदेश के किसानों की माली हालत सुधारने में लगी है।

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बात सरकार से अलग संगठन की कि जाए तो भारतीय जनता पार्टी इसमें भी अपनी पूरी ताकत झोंके हुए है। शहर के चौक-चौराहों से निकलकर बीजेपी गाँव-देहात में चौपालों तक दस्तक देने लगी है। इसीलिए भारतीय जनता पार्टी पंचायत चुनावों में भी ताल ठोंकने लगी है। कई राज्यों के पंचायत चुनाव में बीजेपी अपनी ताकत दिखा भी चुकी है। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश में भी भारतीय जनता पार्टी ने गांव की सरकार के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। भाजपा पंचायत चुनाव को लेकर बेहद गंभीर है। अबकी बार बीजेपी अपने चुनाव चिन्ह कमल के निशान पर पंचायत चुनाव लड़ने जा रही है ताकि भविष्य में बीजेपी ताल ठोक कर कह सके कि उसकी पहुंच गाँव-गाँव तक है। 

 

दरअसल, पार्टी अभी तक त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव (जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत और ग्राम पंचायत) में अपने उम्मीदवारों को सिर्फ समर्थन देती थी, सिंबल नहीं दिया जाता था। प्रत्याशी को बीजेपी समर्थित कहा जाता था, लेकिन मौजूदा बीजेपी नेतृत्व का मानना है कि हर राजनीतिक दल को खुद का कर्तव्य मानकर हर चुनाव में उम्मीदवार उतारने चाहिए क्योंकि चुनाव के दौरान सियासी दलों को अपनी नीतियां और योजनाओं को आमजन के सामने रखने का खास अवसर मिलता है। चुनाव सियासी दलों की परीक्षा समान हैं।


-अजय कुमार

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