By अंकित सिंह | Oct 11, 2023
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा सीधी लड़ाई में आमने-सामने हैं, इसलिए दोनों पक्षों के राज्य नेतृत्व को 'बनाओ या बिगाड़ो की लड़ाई' वाली कड़ी लड़ाई का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस के लिए, सुर्खियों में मध्य प्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह और राजस्थान में अशोक गहलोत के पुराने नेता होंगे। वहीं, भाजपा की बात करें तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चार कार्यकाल के बावजूद मध्य प्रदेश में कठिन राह पर चल रहे हैं, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (राजस्थान) और रमन सिंह (छत्तीसगढ़) को दोनों राज्यों में पार्टी की रैली में तस्वीरे दिख तो जाती हैं पर दोनों ही अपने क्षेत्रों में पहले की तरह प्रभावी भूमिका निभाने से कोसों दूर हैं।
मध्य प्रदेश में देखें तो कांग्रेस कमलनाथ पर एक बार फिर से दांव लगाने की तैयारी में है। हालांकि, वह इस बार पिछली बार जैसी गलती नहीं करने वाली। इस बार कमलनाथ के साथ-साथ युवा नेताओं को भी महत्व दिया जा रहा है। साथ ही साथ दिग्विजय सिंह पर भी कांग्रेस भरोसा जताती दिखाई दे रही है। हालांकि, दिग्विजय सिंह प्रदेश की राजनीति में तो नहीं लौटने वाले। लेकिन इसका फायदा उनके बेटे को मिल सकता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराजगी के बाद पार्टी में हुई फूट से कमलनाथ की सरकार गिर गई थी। दिल्ली की राजनीति की ओर रुख करने की बजाय कमलनाथ राज्य में बने रहे और अपने अपमान का बदला लेने की इस बार पूरी कोशिश करने वाले हैं।
कांग्रेस के लिए राजस्थान की बात करें तो यहां वह सचिन पायलट की चुनौती से जूझ रही है। सचिन पायलट लगातार अपनी जमीनी पकड़ को मजबूत कर रहे हैं। अशोक गहलोत के साथ अनबन के बाद सचिन पायलट ने अपना काम बिल्कुल भी नहीं छोड़ा। वह राज्य में मजबूती के साथ बने रहे। गहलोत के ऊपर दबाव बनाने के लिए वह अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूप से चुनौतियां भी पेश करते रहे। दूसरी ओर गहलोत भी अपनी जादूगरी दिखने में पीछे नहीं रहे। राज्य में अपनी भूमिका को बरकरार रखने के लिए उन्होंने लोक लुभावने वायदे किए। साथ ही साथ विधायकों को हमेशा अपने साथ जोड़े रखा। चुनाव को देखते हुए लगातार कई कल्याणकारी योजनाओं को जमीन पर उतरने की कोशिश की। गहलोत इस बात को भली-भांति समझते हैं कि अगर सचिन पायलट को आगे किया जाता है तो कहीं ना कहीं उनकी और उनके समर्थकों के लिए यह अच्छा नहीं होगा।
भाजपा को यह पता है कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को किनारे करना इतना आसान नहीं है। यही हाल राजस्थान में वसुंधरा राजे को लेकर है। यही कारण है कि भाजपा इन्हें अपने पोस्टर्स में तो रख रही है। लेकिन उनके चेहरे को आगे करने की कोशिश में नहीं है। दोनों ही राज्यों में भाजपा नई पौध को तैयार करने में जुटी हुई है जो पार्टी के भविष्य को राज्य में अच्छे नेतृत्व से संरक्षित कर सके। मध्य प्रदेश में शिवराज के कई विकल्प को तैयार करने की कोशिश की जा रही है जिसमें प्रहलाद सिंह पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा जैसे नेता शामिल है। हालांकि, शिवराज सिंह चौहान भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। चौहान को दरकिनार करने की अटकलें जोरों पर हैं। राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले चौहान को हाल ही में सार्वजनिक कार्यक्रमों और रैलियों के दौरान भावुक होते देखा गया है।
दूसरी ओर राजस्थान में भी वसुंधरा राजे को लेकर भी असमंजस की स्थिति में है। उन्हें आगे तो रख रही है। लेकिन उनके विकल्प के तौर पर राज्यवर्धन सिंह राठौड़, अर्जुन राम मेघवाल, गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे नेताओं को आगे कर रही है। बीच-बीच में वसुंधरा राजे की नाराजगी की खबर भी आ जाती है। इसे शांत करने की भी कोशिश की जाती है। लेकिन वसुंधरा पर दांव नहीं लगाया जाता।
कुल मिलाकर देखें तो राजस्थान और मध्य प्रदेश में नए और पुराने का खेल चल रहा है। जनता अपने विकल्पों को ध्यान में रखते हुए अपना फैसला चुनाव में करेगी। यही तो प्रजातंत्र है।