Prajatantra: BJP-Congress के समक्ष Rajasthan में हैं कई चुनौतियां, कैसे मिलेगी सत्ता की चाबी

By अंकित सिंह | Oct 10, 2023

राजस्थान सहित पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव के बिगुल बज गए हैं। राजस्थान में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहने वाला है। 1993 से देखें तो हर 5 साल में यहां सत्ता परिवर्तन होता रहा है। कहीं ना कहीं कांग्रेस इस बार 5 साल में किए गए काम को दिखाकर सत्ता को अपने पास रखने की कोशिश में है। तो वहीं भाजपा गहलोत सरकार की नाकामयाबियों को जबरदस्त तरीके से उठा रही है और हर 5 साल में सत्ता परिवर्तन के इतिहास को भी देख रही है। दोनों ही राजनीतिक दलों के अपने-अपने दावे हैं। लेकिन दोनों ही दलों के समक्ष अपनी-अपनी चुनौती भी है।

 

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गहलोत के सामने कई चुनौतियां

राजनीति में जादूगर के नाम से मशहूर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने फिलहाल कई चुनौतियां हैं। 1993 के बाद से राजस्थान की जनता ने किसी भी मुख्यमंत्री को लगातार दो बार सत्ता की चाबी नहीं सौंपी है। ऐसे में अशोक गहलोत लगातार कई बड़े ऐलान कर चुके हैं और उन्हें भरोसा है कि इस बार वे इतिहास बनाने में कामयाब हो जाएंगे। लेकिन भाजपा से उन्हें कड़ी टक्कर मिलती हुई दिखाई दे रही है। इसके अलावा कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो भाजपा बढ़-चढ़कर राज्य में उठा रही है। भाजपा लगातार राज्य में महिला सुरक्षा के मुद्दे को जबरदस्त तरीके से उठा रही है। इसके अलावा पेपरलीक का भी मुद्दा काफी गर्म है। कांग्रेस सरकार पर तुष्टीकरण के कई बार आरोप गले हैं। राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति को लेकर भी अशोक गहलोत कटघरे में खड़े हैं। भ्रष्टाचार का भी मुद्दा उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है।

 

पायलट बनाम गहलोत

हालांकि, कांग्रेस के भीतर भी उन्हें कड़ी चुनौती मिल रही है। अशोक गहलोत के लिए इस चुनाव में भाजपा के साथ-साथ सचिन पायलट खेमे से भी निपटना जरूरी है। पिछले 5 सालों में हमने देखा है कि कैसे राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक के गहलोत के बीच सियासी वार देखने को मिला। दोनों के बीच तल्ख़ियां सरेआम रही। अशोक गहलोत की चिंता इस बात को लेकर भी ज्यादा है कि कहीं पायलट को पसंद करने वाले लोग भाजपा की ओर झुकाव ना कर लें। 


बीजेपी की चुनौती

वैसे देखा जाए तो तमाम सर्वे में बीजेपी को राजस्थान में बढ़त मिलती हुई दिखाई दे रही है। बावजूद इसके कई मोर्चें पर बीजेपी की बड़ी परीक्षा होनी है। बीजेपी इस चुनाव में किसी भी चेहरे को आगे कर के नहीं उतर रही है। वह सामूहिक नेतृत्व पर जोर दे रही है और उसे पीएम मोदी के करिश्मा का सहारा भी है। हालांकि, महंगाई को कम करने के लिए गहलोत सरकार की ओर से जो घोषणाएं की गई है वह कहीं ना कहीं भाजपा के लिए चुनौतियां पेश कर रही हैं। इसके अलावा अगर वसुंधरा राजे को भाजपा ने आगे नहीं किया तो उनके समर्थक नाराज हो सकते हैं और शायद यह पार्टी को मुश्किल में डाल सकती है। यही कारण है कि वसुंधरा को भी साथ रखने की पार्टी की ओर से कोशिश की जा रही है। हालांकि, राजस्थान में भाजपा की ओर से उम्मीदवारों की जो पहली सूची जारी की गई है उसमें वसुंधरा का नाम नहीं है। 

 

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भाजपा और कांग्रेस के बीच राजस्थान में टक्कर है और कहीं ना कहीं चुनावी तारीखों के ऐलान के बाद जनता अंपायर की भूमिका में आ गई है। यही तो प्रजातंत्र है। 

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