By अनन्या मिश्रा | Mar 21, 2025
दुनियाभर के मंचों तक शहनाई को पहुंचाने वाले बिस्मिल्लाह खां का 21 मार्च को जन्म हुआ था। मुस्लिम होने के बाद भी वह काशी के बाबा विश्वनाथ के मंदिर में शहनाई बजाने जाते थे। बिस्मिल्लाह खां को काशी नगरी से बहुत लगाव था और वह बनारस छोड़ने मात्र के नाम से ही व्यथित हो उठते थे। बिस्मिल्लाह खां ने महज 6 साल की उम्र से प्रशिक्षण लेना शुरूकर दिया था। वह संगीत यानी की उनकी कला को ही इबादत और धर्म दोनों मानते थे। उन्होंने मरते दम तक शहनाई का साथ नहीं छोड़ा था। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर बिस्मिल्लाह खां के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
बिहार के डुमरांव गांव में 21 मार्च 1916 को बिस्मिल्लाह खां का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम पैगंबर खान और मां का नाम मिथुन था। इनके पिता बिहार के डुमराव के एक कोर्ट में परफॉर्म किया करते थे। बिस्मिल्लाह खां का असली नाम कमरुद्दीन था। उन्होंने महज 6 साल की उम्र से ही अपने चाचा अली बैदु विलायतु से प्रशिक्षण लेना शुरूकर दिया था।
वाद्य यंत्र को कहते थे दूसरी बेगम
बता दें कि उस्ताद खां की शादी महज 16 साल की उम्र में हो गई थी। बिस्मिल्लाह खां को अपने वाद्य यंत्र से इतना लगाव और प्यार था कि वह उसे अपनी दूसरी बेगम कहा करते थे। उन्होंने अभिनेता शाहरुख खान की फिल्म 'स्वदेश' के गाने 'ये जो देश है मेरा' का इंस्ट्रमेंटल ट्रेक बिस्मिल्लाह खां की शहनाई की धुन पर तैयार किया गया था। इसके अलावा उन्होंने कन्नड़ सुपरस्टार राजकुमार की फिल्म 'सनादि अपन्ना', विजय भट्ट की फिल्म 'गूंज उठी शहनाई' और सत्यजीत रे की फिल्म 'जलसाघर' में भी शहनाई बजाई थी।
चोरी हुई शहनाइयां
एक बार उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की चार शहनाइयां चोरी हो गईं। तब यूपी पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने मामले की जांच करनी शुरू की। जांच में पता चला कि बिस्मिल्लाह खां के एक नाती ने 17,000 रुपए के लिए उनकी शहनाई चोरी करके बेच दी थी। जिनमें से तीन शहनाइयां चांदी की और एक लकड़ी की थी। लेकिन लकड़ी वाली शहनाई का बेस भी चांदी का था। फिर पुलिस ने उनके नाती और शहनाई खरीदने वाले ज्वैलर्स को गिरफ्तार कर लिया।
साल 1947 में जब देश आजाद हुआ तो पूर्व संध्या पर लालकिले पर झंडा फहराया जा रहा था। उस दौरान उस्ताद खा की शहनाई भी वहां आजादी का संदेश दे रही थी। जिसके बाद से लगभर हर साल 15 अगस्त के मौके पर देश के प्रधानमंत्री के बाद बिस्मिल्ला खां का शहनाई वादन करना प्रथा बन गया था। उन्होंने जापान, अमेरिका, ईरान, कनाडा, इराक, अफगानिस्तान और रूस जैसे कई देशों में अपनी शहनाई की धुन से लोगों को मंत्रमुग्ध किया।
मृत्यु
वहीं 21 अगस्त 2006 को उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था। जब बिस्मिल्लाह खा को सुपुर्द ए खाक किया गया तो साथ में उनकी शहनाई को भी दफना दिया गया था।