जानें कौन हैं बिहार के गौरव बिंदेश्वर पाठक, जिन्होंने सुलभ शौचालय को बनाया इंटरनेशनल ब्रांड

By अंकित सिंह | Apr 02, 2022

आज देश और दुनिया के हर कोने में सुलभ शौचालय की खूब चर्चा होती है। लेकिन क्या आपको पता है कि इसकी शुरुआत कहां से हुई थी और इसके संस्थापक कौन हैं? दरअसल, सुलभ शौचालय की शुरुआत बिंदेश्वर पाठक ने की है। बिंदेश्वर पाठक का जन्म 2 अप्रैल 1943 को बिहार के वैशाली जिले के एक गांव में हुआ था। वह ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। बिंदेश्वर पाठक के मुताबिक वह एक ऐसे घर में पले बढ़े हैं जहां रहने के लिए 9 कमरे थे लेकिन शौचालय नहीं था। उन्होंने ऐसे समय को देखा जब सुबह सवेरे सूर्योदय से पहले ही महिलाएं शौच के लिए घर से बाहर जाया करते थीं। बाहर शौच करने से महिलाओं में कई तरह की समस्याएं भी होती थीं, वह बीमार भी पड़ती थीं। दिन में भी किसी को बाहर खुले में शौच के लिए बैठना पड़ता था। इन्हीं घटनाओं ने बिंदेश्वर पाठक को स्वच्छता के क्षेत्र में कुछ नया और अलग करने की प्रेरणा दी।

 

इसे भी पढ़ें: अर्जुन सिंह: कभी टीएमसी के अहम हिस्सा रहे, आज बैरकपुर से हैं भाजपा सांसद


बिंदेश्वर पाठक ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से 1964 में समाज शास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने 1980 में पटना विश्वविद्यालय से मास्टर की डिग्री हासिल की और 1985 में उन्हें पीएचडी की भी उपाधि मिल गई। 1968-69 में बिहार गांधी जन्म शताब्दी समारोह समिति में उन्हें काम करने का मौका मिला। इस दौरान समिति ने उन्हें सुरक्षित और सस्ती शौचालय तकनीक विकसित करने पर जोर देने को कहा गया। इसके साथ ही उन्हें दलितों के सम्मान के लिए काम करने को भी कहा गया ताकि उन्हें मुख्यधारा में शामिल किया जा सके। हालांकि तब के समाज में बिहार जैसे राज्य में एक उच्च जाति के पढ़े-लिखे युवक के लिए यह सब इतना आसान नहीं था। बावजूद इसके उन्होंने इसमें काम किया और अपने जीवन को एक नई दिशा दी। एक अच्छे वक्ता और उच्च कोटि के लेखक के रूप में बिंदेश्वर पाठक अपनी अलग पहचान बनाने लगे। उन्होंने समाज में स्वच्छता और स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता फैलाने की शुरुआत की जो कि बेहद ही अभूतपूर्व था।


देश को शौच मुक्त करने को लेकर वह लगातार काम करने लगे। हालांकि इन्हें अपनों से भी विरोध का सामना करना पड़ा। उनके पिता इससे नाराज हो गए। आसपास के लोग भी कब काफी खफा थे। वही ससुर इनसे काफी गुस्से में थे। एक समय इनके ससुर ने यह तक कह दिया कि मैं आपका चेहरा देखना नहीं चाहता। आपने मेरी बेटी का जीवन खराब कर दिया है। बिंदेश्वर पाठक के ससुर ने उनसे कहा कि लोग पूछते हैं कि आपका दमाद क्या करता है? मैं उन्हें क्या जवाब दूं। हालांकि बिंदेश्वर पाठक सभी को एक ही जवाब देते थे कि मुझे गांधीजी का सपने को पूरा करना है। उस दौर में मैला ढोने की समस्या और खुले में शौच की समस्या समाज में हावी थी। दोनों ही क्षेत्र में बिंदेश्वर पाठक ने काम करना शुरू किया। बिंदेश्वर पाठक ने 1970 में ही सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की थी। यह एक सामाजिक संगठन था जो कि मुख्यत मानव अधिकार, पर्यावरण, स्वच्छता और शिक्षा के क्षेत्र में काम करता है।

 

इसे भी पढ़ें: मुश्किलों में शिव प्रताप शुक्ला ने संयम के साथ पार्टी को शिखर तक पहुंचाया, जानें राज्यसभा सांसद की शख्सियत की ये बड़ी बातें


बिंदेश्वर पाठक जब 6 साल के थे तो उनकी दादी ने एक महिला मेहतर को छूने के लिए उन्हें दंडित कर दिया था। हालांकि बाद में इन्हीं महिलाओं के लिए बिंदेश्वर पाठक ने बहुत काम किया। सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना के साथ ही उन्होंने दो गड्ढे वाले फ्लश टॉयलेट विकसित किए। सुलभ ने समाज में महिला सशक्तिकरण, स्वच्छता, स्वास्थ्य और स्वच्छता के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को लेकर कई बड़े काम किए हैं। उन्हें भारत सरकार की ओर से पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा देश-दुनिया के विभिन्न अलग-अलग पुरस्कारों से भी वह सम्मानित हो चुके हैं। बिंदेश्वर पाठक 2001 से वर्ल्ड टॉयलेट डे भी मना रहे हैं। जैक सिम और बिंदेश्वर पाठक के ही प्रयासों की वजह से संयुक्त राष्ट्र ने 19 नवंबर 2013 में वर्ल्ड क्वालिटी को मान्यता दी।

प्रमुख खबरें

कैंसर का खतरा होगा कम, बस रोजाना करें ये 5 योग

Maneka Gandhi और अन्य कार्यकर्ताओं ने बिहार सरकार से पशुओं की बलि पर रोक लगाने का आग्रह किया

ना मणिपुर एक है, ना मणिपुर सेफ है... Mallikarjun Kharge ने बीजेपी पर साधा निशाना

AAP में शामिल हुए Anil Jha, कैलाश गहलोत के इस्तीफे के सवाल को Arvind Kejriwal ने मुस्कुराकर टाला