यूपी में दल बदल के खेल में सबसे बड़ा फायदा भाजपा को हो रहा है, नुकसान बहनजी को उठाना पड़ रहा है

By अजय कुमार | Jul 27, 2023

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले तमाम दलों में भगदड़ जैसी स्थिति नजर आ रही है। इस भगदड़ में बीजेपी की बल्ले-बल्ले हो रही है, वहीं सपा-बसपा और कांग्रेस की स्थिति दयनीय नजर आ रही है। दल-बदल के खेल में बहुजन समाज पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। इसी कड़ी में आगरा से बसपा के दो बड़े नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया है। दोनों नेताओं ने लखनऊ में भाजपा की सदस्यता ग्रहण भी ग्रहण कर ली है। 

    

आगरा में दक्षिण विधानसभा से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले रवि भारद्वाज और बसपा से खेरागढ़ से चुनाव लड़ने वाले गंगाधर कुशवाहा ने लखनऊ में भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। इस खबर के मिलते ही बसपा के खेमे में हलचल मची हुई है। लखनऊ में भाजपा के प्रदेश कार्यालय पर प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक और केशव मौर्य ने बसपा के रवि भारद्वाज और गंगाधर कुशवाहा को पार्टी की सदस्यता दिलाई गई। बता दें कि 2022 में दक्षिण विधानसभा सीट से रवि भारद्वाज ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। वो यहां पर भाजपा के कैबिनेट मंत्री योगेंद्र उपाध्याय के खिलाफ चुनाव मैदान में थे। वहीं, खेरागढ़ से चुनाव लड़ने वाले गंगाधर कुशवाह ने भी हाथी से उतर कर भाजपा का दामन थाम लिया है। गंगाधर कुशवाहा बसपा में लंबे समय से सक्रिय थे। वो जिलाध्यक्ष भी रह चुके हैं। माना जा रहा है कि आने वाले समय में और कई नेता भी भाजपा का दामन थाम सकते हैं। इससे पूर्व समाजवादी पार्टी के भी कई नेता पाला बदलकर भगवा रंग में रंग चुके हैं।

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राजनीतिक जानकार बताते हैं कि लोकसभा चुनाव में हारी 14 सीटों के इतर भी भाजपा रेड जोन की सीटें झटकना चाहती है। इसीलिए विरोधी खेमे के मजबूत पिलर को अपने पाले में लाकर जातीय समीकरण को दुरुस्त करने पर काम कर रही है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि पूर्व मंत्री दारा सिंह चौहान और सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर को साधने के बाद विपक्षी दलों के कई चेहरों को अपने पाले में लाना पार्टी की इसी रणनीति का हिस्सा है। उन्होंने बताया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 80 में से 62 और उसके सहयोगी अपना दल (एस) ने मिर्जापुर और राबर्ट्सगंज की दो लोकसभा सीटें जीती थीं। बाकी 16 सीटें बसपा, सपा और कांग्रेस के खाते में गई थीं। उपचुनाव में भाजपा ने आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीटें सपा से छीन ली थीं। 14 सीटें अब भी पार्टी के कब्जे से बाहर हैं, जिनमें बिजनौर, नगीना, सहारनपुर, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद, मैनपुरी, रायबरेली, अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, गाजीपुर, घोसी, जौनपुर और लालगंज शामिल हैं। इनके लिए पार्टी ने यह रणनीति बनाई है। पूर्वांचल में राजभर, चौहान वोटों के माध्यम से भरपाई करेंगे। इसके अलावा अभी और कई बड़े नेता शामिल होने के कगार पर हैं, जिनकी अपने क्षेत्र और जातियों में ठीकठाक पकड़ है। भाजपा ने पश्चिम में भी अपनी जातियों और क्षेत्र में पकड़ रखने वाले कुछ नेताओं को तोड़ लिया है। अभी कुछ और आने हैं। मुरादाबाद, सहारनपुर क्षेत्र में भी मेहनत जारी है। 

     

लब्बोलुआब यह है कि राजनीति के जानकारों को लगता है कि भाजपा ने मिशन 2024 को लेकर यूपी में जातीय समीकरण को दुरुस्त रखने के लिए दारा सिंह और ओमप्रकाश के बाद, छोटी छोटी जातियों में जनाधार रखने वाले नेताओं को शामिल कराना शुरू कर दिया है। पश्चिम से पूर्व मंत्री साहब सिंह सैनी और मुजफ्फरनगर के पूर्व सांसद व रालोद नेता राजपाल सैनी के भाजपा में आने से दोनों मंडलों में सैनी बिरादरी पर पार्टी की पकड़ मजबूत होगी। पूर्व विधायक गुलाब सोनकर को अपने साथ जोड़कर भाजपा ने पूर्वांचल में दलित समुदाय और कुर्मी बिरादरी को बड़ा मैसेज दिया है। भाजपा 2024 के अपनी नई रणनीति के साथ मैदान में आयेगी। इस बार वह जातीय गोलबंदी के साथ क्षेत्र में जनाधार वाले नेताओं पर फोकस कर रही है। भाजपा को उम्मीद है कि इससे यूपी की सभी 80 लोकसभा सीटों पर जीत के दावे पर मोहर लग सकती है।


-अजय कुमार

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