दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश होना कोई गर्व की बात नहीं है

By ललित गर्ग | Jul 10, 2021

प्रत्येक वर्ष 11 जुलाई को अन्तर्राष्ट्रीय जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। बढती आबादी जिसे जनसंख्या विस्फोट का नाम दिया जाता हैं। यह भारत और सम्पूर्ण विश्व समुदाय के लिए आने वाली सबसे विकट समस्याओं में से एक हैं। अत्यधिक तेज गति से बढ़ती जनसंख्या के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से ही यह दिवस मनाया जाता है। यह जागरूकता मानव समाज की नई पीढ़ियों को बेहतर जीवन देने का संदेश देती है। बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, प्रदूषण मुक्त वातावरण सहित अन्य आवश्यक सुविधाएँ भविष्य में देने के लिए छोटे परिवार की महती आवश्यकता निरन्तर बढ़ती जा रही है। प्राकृतिक संसाधनों का समुचित दोहन कर मानव समाज को सर्वश्रेष्ठ बनाए रखने और हर इंसान के भीतर इन्सानियत को बरकरार रखने के लिए यह बहुत जरूरी हो गया है कि विश्व जनसंख्या दिवस की महत्ता को समझा जाए।

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भारत की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा होनेवाली है। निकट भविष्य में हम चीन को पीछे छोड़ कर 150 करोड़ के आंकड़े को छू लेने वाले है। दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी का देश होना कोई गर्व की बात नहीं है। बढ़ती आबादी एवं सिकुड़ते संसाधन एक त्रासदी है, एक विडम्बना है, एक अभिशाप है। क्योंकि जनसंख्या के अनुपात में संसाधनों की वृद्धि सीमित है। जनसंख्या वृद्धि ने कई चुनौतियों को जन्म दिया है किंतु इसके नियंत्रण के लिये कानूनी तरीका एक उपयुक्त कदम नहीं माना जा सकता। भारत की स्थिति चीन से पृथक है तथा चीन के विपरीत भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ हर किसी को अपने व्यक्तिगत जीवन के विषय में निर्णय लेने का अधिकार है। भारत में कानून का सहारा लेने के बजाय जागरूकता अभियान, शिक्षा के स्तर को बढ़ाकर तथा गरीबी को समाप्त करने जैसे उपाय करके जनसंख्या नियंत्रण के लिये प्रयास होने चाहिये। परिवार नियोजन से जुड़े परिवारों को आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये तथा ऐसे परिवार जिन्होंने परिवार नियोजन को नहीं अपनाया है उन्हें विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से परिवार नियोजन हेतु प्रेरित करना चाहिये। बेहतर तो यह होगा कि शादी की उम्र बढ़ाई जाए, स्त्री-शिक्षा को अधिक आकर्षक बनाया जाए, परिवार-नियंत्रण के साधनों को मुफ्त में वितरित किया जाए, संयम को महिमा-मंडित किया जाए और छोटे परिवारों के लाभों को प्रचारित किया जाए। शारीरिक और बौद्धिक श्रम के फासलों को कम किया जाए।


भारत में बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने में राजनीति एवं तथाकथित स्वार्थी राजनीतिक सोच है। अधिकांश कट्टरवादी मुस्लिम समाज लोकतांत्रिक चुनावी व्यवस्था का अनुचित लाभ लेने के लिए अपने संख्या बल को बढ़ाने के लिये सर्वाधिक इच्छुक रहते हैं और इसके लिये कुछ राजनीतिक दल उन्हें प्रेरित भी करते हैं। ऐसे दलों ने ही उद्घोष दिया है कि “जिसकी जितनी संख्या भारी सियासत में उसकी उतनी हिस्सेदारी।’’ जनसंख्या के सरकारी आकड़ों से भी यह स्पष्ट होता रहा हैं कि हमारे देश में इस्लाम सबसे अधिक गति से बढ़ने वाला संप्रदाय-धर्म बना हुआ हैं। इसलिए यह अत्यधिक चिंता का विषय है कि ये कट्टरपंथी अपनी जनसंख्या को बढ़ा कर स्वाभाविक रूप से अपने मताधिकार कोष को बढ़ाने के लिए भी सक्रिय हैं। सीमावर्ती प्रांतों जैसे पश्चिम बंगाल, आसाम, कश्मीर आदि में वाकायदा पडोसी देशों से मुस्लिमों की घुसपैठ कराई जाती है और उन्हें देश का नागरिक बना दिया जाता है, यह एक तरह का “जनसंख्या जिहाद” है क्योंकि इसके पीछे इनका छिपा हुआ मुख्य ध्येय हैं कि हमारे धर्मनिरपेक्ष देश का इस्लामीकरण किया जाये।

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इसके विपरीत विभिन्न मुस्लिम देश टर्की, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मिस्र, सीरिया, ईरान, यूएई, सऊदी अरब व बांग्लादेश आदि ने भी कुरान, हदीस, शरीयत आदि के कठोर रुढ़ीवादी नियमों के उपरांत भी अपने-अपने देशों में जनसंख्या वृद्धि दर नियंत्रित करने के कठोर उपक्रम किये हैं। फिर भी विश्व में भूमि व प्रकृति का अनुपात प्रति व्यक्ति संतुलित न होने से पृथ्वी पर असमानता बढ़ने के कारण गंभीर मानवीय व प्राकृतिक समस्याएं उभर रही है। सभी मानवों की आवश्यकता पूर्ण करने के लिए व्यावसायीकरण बढ़ रहा है। बढ़ती हुई जनसंख्या संसाधनों को खा रही है। औद्योगीकरण होने के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है व बढ़ती आवश्यक वस्तुओं की मांग पूरी करने के लिए मिलावट की जा रही है। जिससे स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं बढ़ रही है। इसके अतिरिक्त वायु प्रदूषण, कूड़े-कर्कट के जलने पर धुआं, प्रदूषित जल व खाद्य-पदार्थ, घटते वन व चारागाह, पशु-पक्षियों का संकट, गिरता जल स्तर व सूखती नदियां, कुपोषण व भयंकर बीमारियां, छोटे-छोटे झगड़ें, अतिक्रमण, लूट-मार, हिंसा, अराजकता, नक्सलवाद व आतंकवाद इत्यादि अनेक मानवीय आपदाओं ने भारत भूमि को विस्फोटक बना दिया है। फिर भी जनसंख्या में बढ़ोत्तरी की गति को सीमित करने के लिए सभी नागरिकों के लिए कोई एक समान नीति नहीं हैं। प्राप्त आंकडों के अनुसार हमारे ही देश में वर्ष 1991, 2001 और 2011 के दशक में प्रति दशक क्रमशः 16.3, 18.2 व 19.2 करोड़ जनसंख्या और बढ़ी है। जबकि उपरोक्त वृद्धि के अतिरिक्त बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और म्यांमार आदि से निरंतर आने वाले घुसपैठिये व अवैध व्यक्तियों की संख्या भी लगभग 7 करोड़ होने से एक और गंभीर समस्या हमको चुनौती दे रही है। इन अराजक होती स्थितियों को नियंत्रित करके ही हम जनसंख्या विस्फोट की समस्या से मुक्ति पा सकते हैं।


इसके विपरीत किसी देश में युवा तथा कार्यशील जनसंख्या की अधिकता तथा उससे होने वाले आर्थिक लाभ को जनसंख्या के लाभ के रूप में देखा जाता है। भारत में मौजूदा समय में विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या युवाओं की है, यदि इस आबादी का उपयोग भारत की अर्थव्यवस्था को गति देने में किया जाए तो यह भारत को लाभ प्रदान करेगा। किंतु यदि शिक्षा गुणवत्ता परक न हो, रोजगार के अवसर सीमित हों, स्वास्थ्य एवं आर्थिक सुरक्षा के साधन उपलब्ध न हों तो बड़ी कार्यशील आबादी एक अभिशाप का रूप धारण कर सकती है। अतः विभिन्न देश अपने संसाधनों के अनुपात में ही जनसंख्या वृद्धि पर बल देते हैं। भारत में वर्तमान स्थिति में युवा एवं कार्यशील जनसंख्या अत्यधिक है किंतु उसके लिये रोजगार के सीमित अवसर ही उपलब्ध हैं। ऐसे में यदि जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित न किया गया तो स्थिति भयावह हो सकती है। इसी संदर्भ में हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनसंख्या नियंत्रण की बात कही है। यह ऐसी समस्या है जिसे धर्म, जाति, सम्प्रदाय के संकीर्ण नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए।


जनसंख्या वृद्धि एक नयी चुनौती बनकर हमारे सामने आई और आज भी इस पर काबू पाने में सरकार को कठिनाई हो रही है। जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम देश को भोगने पड़ रहे हैं। अधिक जनसंख्या के कारण बेरोजगारी की विकराल समस्या उत्पन्न हो गयी है। लोगों के आवास के लिए कृषि योग्य भूमि और जंगलों को उजाड़ा जा रहा है। यदि जनसंख्या विस्फोट यूं ही होता रहा तो लोगों के समक्ष रोटी कपड़ा और मकान की विकराल स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। इससे बचने का एक मात्र उपाय यही है की हम येन केन प्रकारेण बढ़ती आबादी को रोकें। अन्यथा विकास का स्थान विनाश को लेते अधिक देर नहीं लगेगी। सरकार को इस विशेष अवसर पर सबकी सहमति से जनसंख्या नियंत्रण पर कानून का निर्धारण करना चाहिए।


- ललित गर्ग

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