मोलभाव के उस्ताद (व्यंग्य)

By विजय कुमार | Nov 15, 2018

आप चाहे मानें या नहीं; पर हम भारत वालों को मोलभाव में बहुत मजा आता है। हमारे शर्मा जी की मैडम तो इसमें इतनी माहिर हैं कि पड़ोसिनें जिद करके उन्हें अपने साथ खरीदारी के लिए ले जाती हैं। वे भी इसके लिए हमेशा तैयार रहती हैं, क्योंकि ऑटो और चाट-पकौड़ी का खर्च वह पड़ोसन ही करती है।

 

भारत के बड़े शहरों में कई विशालकाय मॉल खुले और उनमें से अधिकांश बंद भी हो गये। क्योंकि वहां ग्राहकों को मोलभाव का सुख नहीं मिलता। जब तक दुकानदार पसीने-पसीने न हो जाए, तब तक खरीदारी का मजा ही क्या ? और फिर उसके दाम कम कराने के लिए मोलभाव का अलग ही आनंद है।

 

पर अब हमारी इस कुशलता पर अमरीका के राष्ट्रपति ट्रंप ने भी मोहर लगा दी है। किसी समय भारत रूस से बंधा हुआ था और फिर अमरीका से; पर मोदी सरकार दुनिया भर में जहां से सस्ता और अच्छा सामान मिलता है, ठोक बजाकर वहां से ही लेती है। 

 

शायद ट्रंप महोदय कुछ सामान भारत को बेचना चाहते हैं, इसीलिए उन्होंने भारतीयों के मोलभाव की प्रशंसा की है; पर कभी-कभी मोलभाव और जांच-परख की चालाकी भारी भी पड़ जाती है। दुकानदार ग्राहक को ठंडा-गरम पिलाकर ऐसा चूना लगाता है कि ग्राहक को पता ही नहीं लगता।

 

शर्मा जी के साथ ऐसा ही हुआ। शादी के बाद वे कश्मीर घूमने गये, तो उनकी पत्नी ने एक साड़ी दिलाने को कहा। यद्यपि शर्मा जी का हाथ तंग था; पर पत्नी ने पहली बार कुछ कहा था। उसे मना करना उन्हें भावी जीवन के लिए उचित नहीं लगा। सो वे बाजार में चले गये।

 

शर्मा जी चाहते थे कि साड़ी ऐसी लें, जिससे मैडम पर रौब पड़ जाए। इसलिए उन्होंने दुकानदार से सिल्क की साड़ी दिखाने को कहा। दुकानदार ने दो हजार रु. कीमत की साड़ी दिखायी। शर्मा जी ने मुंह बनाकर कहा कि उन्हें असली सिल्क चाहिए। 

 

दुकानदार ने नौकर से तीन हजार वाली साड़ी लाने को कहा; पर उसे देखकर भी शर्मा जी खुश नहीं हुए। उन्होंने फिर असली सिल्क की मांग की। अब दुकानदार खुद उठा और अंदर से कुछ साड़ियां लाकर बोला, ‘‘आपको सचमुच असली सिल्क की पहचान है। हमारे पास ऐसे ग्राहक साल में दो-चार ही आते हैं। आप इसे हाथ लगाइये। ऐसी चीज आपको कहीं नहीं मिलेगी। ये असली कश्मीरी सिल्क है।’’

 

दुकानदार से उसके दाम पांच हजार रु. बताये। शर्मा जी ने कुछ मोलभाव किया, तो वह बोला, ‘‘यह एक दाम वाली चीज है; पर आपको असली सिल्क की पहचान है, इसलिए मैं 250 रु. कम कर सकता हूं। बस।’’

 

शर्मा जी ने साड़ी पैक करा ली। घर आकर शर्मा मैडम ने पड़ोसिनों को वह दिखायी, तो पता लगा कि यह सिल्क तो नकली है; और ऐसी साड़ी 1,500 रु. में यहीं मिल जाती है। 

 

बस, तबसे शर्मा जी ने चीज को परखना और मोलभाव करना बंद कर दिया। वे दुकानदार से कह देते हैं, ‘‘भाई, ठीक दाम लगाना। मैं मोलभाव नहीं करता।’’ लोग उनकी इस आदत को जानते हैं। अतः वे ठीक चीज देते हैं और दाम भी सही लगाते हैं; पर कश्मीर के अनुभव से शर्मा मैडम बहुत समझदार हो गयी हैं। वे चीज को खूब परखकर ही खरीदती हैं। इसीलिए पूरे मोहल्ले में उनका बड़ा नाम है।

 

मेरा मोदी जी से अनुरोध है अबकी बार अमरीका से कोई सौदा करें, तो शर्मा मैडम के अनुभव का भी लाभ उठाएं। ट्रंप तो क्या, उसकी अगली कई पीढ़ियां याद करेंगी कि कोई मोलभाव का उस्ताद मिला था।

 

-विजय कुमार

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