By अनन्या मिश्रा | Apr 08, 2023
देश की आजादी एक लंबे स्वाधीनता आंदोलन की देन है। भारत की आजादी में न सिर्फ राजनेताओं व राजा-महाराजाओं का बल्कि कवियों, साहित्यकारों, वकीलों और विद्यार्थियों का भी विशेष योगदान रहा था। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की आजादी की लड़ाई में कई साहित्य प्रेमियों ने अपनी महान और अमर रचनाओं से आजादी की लड़ाई में नई जान फूंकी थी। इसके अलावा भारतीय भाषाओं के साहित्य को भी मजबूती देते हुए नए आयाम पर पहुंचाया।
ऐसे ही साल 1874 में स्वतंत्रता सेनानी के द्वारा लिखा गया अमर गीत वंदे मातरम भारतीय स्वाधीनता संग्राम का मुख्य उद्घोष बन गया था। बता दें कि वंदे मातरम की रचना करने वाले बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का आज ही के दिन यानी कि 8 अप्रैल को निधन हो गया था। वंदे मातरम देश का राष्ट्रगीत है। देश का अमरगीत वंदे मातरम लिखने वाले साहित्य रचनाकार और स्वतंत्रता सेनानी बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय हमेशा के लिए अमर हो गए। देश का यह राष्ट्रीय गीत सिर्फ एक गीत या नारा नहीं था। बल्कि साल 1874 के समय में यह गीत लाखों-करोड़ों युवाओं के दिलों में धड़क रहा था।
आप सबने भी स्कूल में इस गीत को गाया होगा। लेकिन इस राष्ट्रीय गीत को लिखे जाने के पीछे की कहानी और इसके रचयिता बंकिम चंद्र के जीवन के संघर्म को आप उतना करीब से नहीं जानते होंगे। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बंकिम चंद्र चटर्जी के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातों को बताने जा रहे हैं।
जन्म और शिक्षा
पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के कांठलपाड़ा गांव में 26 जून, 1838 ईस्वी को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म हुआ था। बंकिम चंद्र बंगला भाषा के शीर्षस्थ व ऐतिहासिक उपन्यासकार रहे हैं। सरल भाषा में आप उन्हें भारत का एलेक्जेंडर ड्यूमा भी कह सकते हैं। उन्होंने अपना अपला उपन्यास साल 1865 में 27 साल की उम्र में लिखा था। यह बांग्ला उपन्यास दुर्गेश नंदिनी था। इस उपन्यास को लिखे जाने के बाद बंकिम ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
अपनी शुरूआती शिक्षा पूरी करने के बाद बंकिम 1857 में प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए पास किया। पढ़ाई करने के बाद बंकिम को फौरन नौकरी भी मिल गई। वह डिप्टी मजिस्ट्रेट पद पर नियुक्त हुए। इसके अलावा उन्होंने कुछ सालों तक बंगाल सरकार में सचिव पद पर भी जिम्मेदारियां निभाईं। इस दौरान बंकिम चंद्र को रायबहादुर और सीआईई जैसी उपाधियों से भी नवाजा गया। वहीं साल 1891 में बंकिम ने सरकारी नौकरी से रिटायरमेंट ले लिया। इसके बाद उन्होंने बंगला और हिंदी भाषा में लेखन का कार्य कर अपनी अलग पहचान बनाई।
वंदे मातरम की रचना
बंकिम चंद्र चटर्जी ने साल 1874 में वंदे मातरम गीत की रचना की। उन्होंने इस गीत की रचना भारत के लोगों में देशभक्ति का भाव जगाने के लिए किया था। प्राप्त जानकारी के अनुसार, अंग्रेजों ने इंग्लैंड की रानी के सम्मान में गॉड! सेव द क्वीन गीत को हर आयोजन या कार्यक्रम पर गाना अनिवार्य कर दिया था। अंग्रेजों के इस फैसले से बंकिम समेत कई देशवासी दुखी और आहत हुए थे। इसी गीत के जवाब में बंकिम ने साल 1874 में वंदे मातरम गीत की रचना की। बता दें कि राष्ट्रीय गीत के मुख्य भाव में भारत भूमि को माता का संबोधन दिया गया है। वहीं साल 1882 में आए उपन्यास आनंदमठ में भी इस राष्ट्रीय गीत को शामिल किया गया था। यह उपन्यास ऐतिहासिक और सामाजिक ताने-बाने से भरपूर था। जिसने देश में राष्ट्रीयता की भावना को जगाने में काफी अहम योगदान दिया था।
पहली बार गाया गया राष्ट्रीय गीत
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक अधिवेशन साल 1896 में कलकत्ता में हुआ था। तब पहली बार वंदे मातरम गीत को गाया गया था। जिसके कुछ समय बाद ही यह गीत अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ गाया जाने लगा। उस दौरान वंदे मातरम भारतीय क्रांतिकारियों का पसंदीदा गीत और मुख्य उद्घोष बन गया। भारत की आजादी की लड़ाई में न सिर्फ क्रांतिकारियों बल्कि बच्चे, युवा, व्यस्क और प्रौढ़ से लेकर महिलाओं की जुबान पर भी यही गीत और नारा रहता था।
वंदे मातरम की धुन
बताया जाता है कि बंकिम चंद्र के जीवनकाल में उनके द्वारा रचित गीत को अधिक ख्याति नहीं मिल पाई थी। लेकिन इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता है कि आजाद भारत के युवाओं के दिलों में यह गीत आज भी अमर राष्ट्र भाव के साथ धड़कता है। कहा जाता है कि वंदे मातरम गीत की धुन रवींद्रनाथ टैगोर ने बनाई थी। जिसके बाद 24 जनवरी, 1950 को आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत की दर्जा दिया था।
निधन
अपनी रचनाओं से युवा और क्रांतिकारियों के मन में आजादी की अलख जगाने वाले महान रचनाकार का 56 साल की आयु में 8 अप्रैल 1894 को निधन हो गया था। 19वीं सदी के इस महान क्रांतिकारी उपन्यासकार ने सदा के लिए अपनी आखें बंद कर ली थीं।
प्रमुख रचनाएं
प्रथम अंग्रेजी में प्रकाशित रचना राजमोहन्स वाइफ
1865 में प्रथम बांग्ला उपन्यास दुर्गेश नंदिनी
1866 में सबसे चर्चित उपन्यास कपालकुंडला
1872 में मासिक पत्रिका बंगदर्शन का प्रकाशन
1873 में उपन्यास विषवृक्ष
1882 में राष्ट्रीय दृष्टिकोण आधारित उपन्यास आनंदमठ
1886 में अंतिम उपन्यास सीताराम