द्विपक्षीय मुद्दे लंबित रहने के बावजूद अगले साल और मजबूत हो सकते हैं बांग्लादेश-भारत संबंध

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Dec 26, 2022

भारत और बांग्लादेश के बीच नदी जल के बंटवारे जैसे कुछ मुद्दे लंबित रहने के बावजूद 2023 में दोनों देशों के संबंध और मजबूत होने की संभावना है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के अनुसार, बातचीत के माध्यम से इसे मुद्दे का भी समाधान निकाला जा सकता है। बांग्लादेश-भारत के संबंध बहुआयामी प्रकृति के हैं और ये साझा इतिहास, भौगोलिक निकटता तथा संस्कृतियों में समानता पर आधारित हैं। वर्ष 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति के लिए भारत के योगदान से उत्पन्न भावनात्मक बंधन देश के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने में एक प्रमुख कारक बना हुआ है।

पड़ोसी होने के नाते भारत के साथ बांग्लादेश के संबंध उसकी राजनीतिक तथा आर्थिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण हैं। दोनों पड़ोसी देश द्विपक्षीय रूप से जुड़े हुए हैं और कुछ पश्चिमी देशों के विपरीत, भारत आमतौर पर सार्वजनिक रूप से बांग्लादेश की घरेलू राजनीति पर टिप्पणी करने से परहेज करता है। पूर्व राजनयिक और वर्तमान में गैर-सरकारी संस्था बांग्लादेश एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के संचालक हुमायूं कबीर ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि भौगोलिक वास्तविकता और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए दोनों देशों के हित में उनके संबंध अच्छे रहने की संभावना है।

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन बांग्लादेश में आम धारणा है कि हम अधिक देते हैं और कम प्राप्त करते हैं। यह चिंता समाप्त होनी चाहिए और बड़ा पड़ोसी होने के नाते, भारत से अग्रणी भूमिका निभाने की उम्मीद है।’’ दोनों देशों के बीच कई लंबित मुद्दे हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण तीस्ता नदी सहित दोनों देशों से बहने वाली नदियों के पानी का बंटवारा है। प्रधानमंत्री हसीना बार-बार कहती रही हैं कि बांग्लादेश का मानना है कि भारत के साथ लंबित मुद्दों को बातचीत से सुलझाया जा सकता है।

उन्होंने सितंबर में अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा था कि दोनों देशों से 54 नदियां बहती हैं और उन्होंने तीस्ता जल बंटवारा समझौते को जल्द अंतिम रूप दिये जाने की वकालत की थी। हसीना ने नयी दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा था, ‘‘मुझे याद आता है कि दोनों देशों ने मित्रता और सहयोग की भावना के साथ अनेक मसलों को सुलझाया है। हमें उम्मीद है कि तीस्ता जल बंटवारा समझौते समेत सभी लंबित मुद्दों को जल्द सुलझा लिया जाएगा।’’

पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने पिछले साल कहा था कि भारत तीस्ता समझौते को यथासंभव अंतिम रूप देने के लिए बांग्लादेश के साथ बातचीत करता रहेगा। तीस्ता नदी विवाद भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय वार्ता का एक महत्वपूर्ण बिंदु है। बांग्लादेश ने भारत से तीस्ता जल के उचित और समान वितरण की मांग की है। दोनों देशों ने 2011 में अपनी सीमा के पास फरक्का बैराज में जल साझा करने के लिए एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किए थे।

हालांकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बार-बार आपत्तियों के बाद प्रस्तावित समझौते को समाप्त कर दिया गया। जल बंटवारे का मुद्दा अभी सुलझा नहीं है। बांग्लादेश में अंतर्धार्मिक सद्भाव और बड़ी परियोजनाओं को लेकर चीन के साथ ढाका के संबंधों को भी भारत के लिए चिंता का विषय माना जाता है। हालांकि, बांग्लादेश का कहना है कि बीजिंग उसके प्रमुख विकास साझेदारों में से एक है, वहीं वह भारत के साथ अपने घनिष्ठ ऐतिहासिक संबंधों को कभी कमजोर नहीं करेगा।

घरेलू मोर्चे पर राजनीति और अर्थव्यवस्था दो ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें बांग्लादेश 2023 में चुनौतियों का सामना कर सकता है। बांग्लादेश में जनवरी 2024 में चुनाव होने हैं। कबीर ने कहा, ‘‘मौजूदा संदर्भ में राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता को कायम रखने के लिए शासकीय प्रणाली महत्वपूर्ण कारक लगती है।’’ उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की अरसे बाद राजनीतिक परिदृश्य में वापसी तथा आगामी चुनाव पर नजर होने के साथतनाव बढ़ गया है।

बीएनपी अध्यक्ष जिया को भ्रष्टाचार के दो मामलों में 2017 में 17 साल के लिए जेल भेजा गया था और उनकी राजनीतिक गतिविधियों पर रोक लग गयी। हालांकि, एक विशेष सरकारी व्यवस्था के तहत वह महामारी के प्रकोप की शुरुआत से अपने घर में रह रही हैं। उनकी पार्टी की कमान अब उनके बेटे तारिक रहमान ने संभाल ली है, लेकिन वह भी विभिन्न आपराधिक और भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी हैं और बांग्लादेश की दो अदालतों ने उन्हें ‘भगोड़ा’ घोषित किया है।

बीएनपी ने पिछले दो महीने में देशभर में बड़े शहरों में सार्वजनिक रैलियां की हैं। प्रधानमंत्री हसीना की अवामी लीग की अगुवाई वाली सरकार ने अपने खर्च को और कम करने का फैसला किया है क्योंकि व्यापार असंतुलन और मुद्रास्फीति ने बांग्लादेश की जीडीपी को कम कर दिया है, जबकि मुद्रा बाजार की अस्थिरता से लोगों में घबराहट है। वित्तीय विश्लेषकों के अनुसार, बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था जोखिम में है।

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