By अनन्या मिश्रा | Oct 27, 2024
भारतीय इतिहास में कई ऐसी बहादुर शख्सियत हुईं, जिन्होंने मुगलों के सामने झुकने के बजाय बहादुरी से उनका सामना किया। आज ही के दिन यानी की 27 अक्तूबर को बंदा सिंह बहादुर का जन्म हुआ था। वह कम उम्र में संत बनने वाले एक बहादुर योद्धा और काबिल लीडर थे। उन्होंने गुरु गोबिंद सिंह से मुलाकात के बाद सैनिक प्रशिक्षण लिया था और बिना हथियार और सेना के 2500 किमी की दूरी तयकर डेढ़ साल के अंदर सरहिंद पर कब्जा कर खालसा की नींव रखी थी। तो आइए जानते हैं इनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर बंदा सिंह बहादुर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म
राजौरी में 27 अक्तूबर 1670 को बंदा सिंह बहादुर का जन्म हुआ था। बता दें बंदा सिंह ने बहुत कम उम्र में ही अपना घर-परिवार छोड़ दिया था और वैराग्य की ओर मुड़ गए थे। उनको माधोदास बैरागी भी कहा गया। भ्रमण करते हुए जब वह महाराष्ट्र के नांदेड़ पहुंचे तो वहां पर वह 10वें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह से मिले। तब गुरु गोबिंद सिंह ने उनको वैराग्य त्यागने और पंजाब के लोगों को मुगलों के जुल्मों से छुड़ाने की जिम्मेदारी सौंपी।
इस दौरान गुरु गोबिंद सिंह ने बंदा सिंह को पांच तीर, एक तलवार और 3 साथी के साथ एक फरमान दिया। इस फरमान में लिखा था कि बंदा सिंह मुगलों के जुल्म से लोगों को छुटाकारा दिलाने के लिए सिख समुदाय का नेतृत्व करेंगे। इसके साथ ही उनको पंजाब कूच करने और वजीर खां को मौत की सजा देने के लिए कहा गया।
तेजी से बढ़ा बंदा सिंह का दायरा
जिस बंदा सिंह की सेना में 3 साथी थे, उनका दायरा काफी तेजी से बढ़ा और सेना में 8 हजार सैनिक हो गए। उनकी सेना में 5 हजार घोड़े थे, जिनकी संख्या बढ़कर 19 हजार हो गई। साल 1709 में बंदा सिंह ने सरहिंद के समाना पर हमला बोल दिया। समाना में वजीर खां रहता था, जिसने गुरु गोबिंद सिंह का सिर कलम कर उनके बेटों की हत्याकर दी थी। 1710 में उन्होंने दो दर्जन तोपों के साथ फतह भी हासिल की और बंदा सिंह के भाई फतह सिंह ने वजीर खां को मौत के घाट उतार दिया।
जीत हासिल होने के बाद बंदा सिंह ने गुरुनानक और गुरुनानक की तस्वीर वाली नई मुहर और सिक्के जारी किए। इस बात से नाराज मुगल शासक बहादुर शाह जफर ने बंदा सिंह को पकड़ने का बहुत प्रयास किया, लेकिन उसको सफलता नहीं मिली। वहीं बहादुर शाह की मौत के बाद उनके भतीजे ने सत्ता संभाली और अब्दुल समद खां को बंदा सिंह बहादुर को पकड़ने की जिम्मेदारी सौंपीं। अब्दुल समद ने उस किले को घेर लिया जहां बंदा बहादुर थे और महल के अंदर के राशन-पानी पर रोक लगा दी। ऐसा 8 महीनों तक चलता रहा, जिसकी वजह से बंदा सिंह और उनके साथियों को घोड़ों का मांस खाकर जिंदा रहना पड़ा। अंत में समद खां वह किला भेदने में सफल रहा, जिसमें बंदा सिंह थे।
मृत्यु
बंदा सिंह को गिरफ्तार कर दिल्ली लाया गया, जहां पर उनको तमाम यातनाएं दी गईं। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने मुगलों के सामने सिर नहीं झुकाया। वहीं 09 जून 1716 को जल्लाद ने तलवार से बंदा सिंह बहादुर का सिर धड़ से अलग कर दिया।