Bahadur Shah Zafar Birth Anniversary: बहादुर शाह जफर ने किया अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का नेतृत्व

By अनन्या मिश्रा | Oct 24, 2023

मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर हिंदुस्तान के आखरी बादशाह थे। बहादुर शाह जफर का जिक्र आते ही उनकी शायरी और हिंदुस्तान से उनकी मोहब्बत की बात होती है। बहादुर शाह साल 1837 में बादशाह बने थे। लेकिन इस दौरान तक देश में अंग्रेजों का काफी हद तक कब्जा हो चुका था। आज ही के दिन यानी की 24 अक्टूबर को बहादुर शाह जफर का जन्म हुआ था। जहां एक ओर मुगल शासक अपने रौब और रुतबे के लिए जाने जाते थे, तो वहीं बहादुर शाह जफर का हाल इसके उलट था। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म

आखरी मुगल बादशाह बहादुर शाह का जन्म 24 अक्टूबर 1775 को हुआ था। बताया जाता है कि उन्हें सिर्फ नाममात्र बादशाह की उपाधि दी गई थी। साल 1837 में बहादुर शाह पिता अकबर शाह द्वितीय की मौत के बाद गद्दी पर बैठे। लेकिन उनके पिता अकबर द्वितीय नहीं सदियों से चला आ रहा मुगलों का शासन कवि हृदय जफर को नहीं सौंपना चाहते थे। हांलाकि बहादुर शाह जफर का शासनकाल आते-आते दिल्ली सल्तनत के पास राज करने के लिए दिल्ली यानी की शाहजहांबाद ही बचा रह गया था। 

इसे भी पढ़ें: APJ Abdul Kalam Birth Anniversary: कभी फाइटर पायलट बनना चाहते थे कलाम, फिर मिसाइल मैन बन रोशन किया देश का नाम

82 साल की उम्र में क्रांति

बता दें कि अंग्रेजों के खिलाफ साल 1857 की क्रांति की शुरूआत मेरठ से शुरू हुई। तब अंग्रेजों के आक्रमण से आक्रोशित विद्रोही सैनिक और राजा-महाराजाओं एकजुट होना शुरू कर दिया। इस दौरान उन्हें क्रांति को एक देने के लिए नेतृत्व की जरूरत पड़ी तब बहादुर शाह जफर से बात की गई। वहीं बहादुर शाह जफर ने भी अंग्रेजों के खिलाफ शुरू हुई इस क्रांति में नेतृत्व करना स्वीकार कर लिया। लेकिन 82 साल के बहादुर शाह जफर जंग हार गए। इस क्रांति का नेतृत्व करना बहादुर शाह को इस कदर भारी पड़ा कि उन्हें अपने जीवन के आखिरी साल अंग्रेजों की कैद में गुजारने पड़े। 


शेरो-शायरी के शौकीन थे जफर

बहादुर शाह जफर तबीयत से कवि हृदय थे। वह शेरो-शायरी के मुरीद हुआ करते थे। बहादुर शाह के दरबार के दो शीर्ष शायर मोहम्मद गालिब और जौक आज भी तमाम शायरों के आदर्श हैं। दर्द में डूबे उनके शेरों- शायरियों में मानव जीवन की गहरी सच्चाइयां और भावनाओं की दुनिया बसती थी। जब अंग्रेजों ने बहादुर शाह को कैद कर रंगून जेल में डाल दिया। उस दौरान भी उन्होंने तमाम गजलें लिखीं। हांलाकि बतौर कैदी बहादुर शाह को अंग्रेजों ने कलम तक नहीं दी थी। लेकिन सूफी संत की उपाधि वाले बहादुर शाह ने जली हुई तीलियों से जेल की दीवारों पर गजलें लिखी थीं।


अंग्रेजों ने छिपाई मौत की बाद

जेल में 6 नवंबर 1862 को आखिरी मुग़ल शासक बहादुर शाह ज़फ़र को लकवे का तीसरा दौरा पड़ा। वहीं 7 नवंबर की सुबह भारत के आखिरी मुगल का निधन हो गया। निधन वाले दिन ही शाम को मुगल शासक बहादुर शाह को दफना दिया गया था। रंगून के जिस घर में मुगल शासक को कैद करके रखा गया था। उसी घर के पीछे उनकी कब्र बनाई गई थी। बहादुर शाह को दफनाने के बाद उनकी कब्र की जगह को समतल कर दिया गया। चार दशक से हिंदुस्तान पर राज करने वाले मुगलों के आखिरी बादशाह के अंतिम संस्कार में ब्रिटिश ज्यादा तामझाम नहीं चाहते थे। 


वैसे भी बर्मा के मुस्लिमों के लिए बहादुर शाह की मौत किसी बादशाह की मौत नहीं बल्कि एक आम मौत थी। बादशाह को दफनाते समय करीब 100 लोग मौके पर मौजूद थे। भारत के आखरी मुगल शासक बहादुर शाह जफर की मौत के 132 साल बाद साल 1991 में एक भूमिगत कब्र का पता चला। करीब 3.5 फुट की गहराई में बहादुर शाह जफर की निशानी और अवशेष मिले। जिसके बाद जांच में भी यह पुष्टि हुई कि वह कब्र बहादुर शाह जफर की है। अंग्रेजी शासन काल में आप बहादुर शाह जफर के दर्द का अंदाजा 'कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिए, दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में' इस शेर से लगा सकते हैं।

प्रमुख खबरें

I Want to Talk Review: भाग्य के खिलाफ अभिषेक बच्चन की जिद्दी लड़ाई, जूनियर बिग-बी की दमदार एक्टिंग

IND vs AUS: आईपीएल ऑक्शन को लेकर ऋषभ पंत को नाथन लियोन ने छेड़ा, पूछा किस टीम में जाओगे, जानें विकेटीकपर ने क्या जवाब दिया?

Indian Constitution Preamble से Secular और Socialist शब्द हटाने की माँग पर 25 नवंबर को फैसला सुनायेगा Supreme Court

November Pradosh Vrat 2024: प्रदोष व्रत के दिन मंदिर से लेकर आएं ये चीज, सभी परेशानियों से मिलेगा छुटकारा, घर में आएगी सुख-शांति