भ्रष्टाचार के बाप निकले बाबू (व्यंग्य)

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By डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ | Apr 23, 2025

भ्रष्टाचार के बाप निकले बाबू (व्यंग्य)

नगर पालिका कार्यालय के बाहर लंबी लाइन लगी थी, मानो यहाँ किसी क्रिकेट मैच के टिकट बँट रहे हों। अंदर बैठे बाबू जी की आँखों में वो चमक थी, जो सिर्फ दो ही मौकों पर दिखती है—एक, जब नोटों की गड्डियाँ गिननी हों और दूसरा, जब घूसखोरी का नया तरीका ईजाद करना हो। सरकारी फाइलों का ढेर उनकी मेज पर वैसे ही सजा था, जैसे शादी में हलवाई के समोसे—गिनने में नहीं आते, बस खाए जाते हैं।

 

"भाई साहब, मेरा काम कब होगा?" एक बेचारे आम आदमी ने बाबू जी से गुहार लगाई। बाबू जी ने बंडी के अंदर पेन ऐसे सरकाया, मानो पेन न हुआ, किसी जासूसी फिल्म का गुप्त हथियार हो। "अरे भैया, सरकारी काम है, जल्दी क्या है? हमारी सरकार भी पाँच साल में रिपोर्ट कार्ड दिखाती है, तू हफ्ते भर में रिजल्ट माँग रहा है!" बाबू जी ने हँसते हुए कहा।

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दूसरी तरफ, एक बुजुर्ग अपने पेंशन के कागज लिए खड़े थे। झुकी कमर और काँपते हाथों से फॉर्म पकड़ रखा था। "बाबू जी, दस महीने से पेंशन नहीं आई, घर में भूखा मर रहा हूँ!" बूढ़े ने काँपती आवाज़ में कहा। बाबू जी ने चश्मा उतारा, रुमाल से पोछा और ऐसे बोले, जैसे सरकारी सेवा में आने से पहले थिएटर का कोर्स कर रखा हो—"दादा, सरकार आपका भला चाहती है, लेकिन हम क्या करें, कंप्यूटर ही नहीं चल रहा!" और फिर झट से अपने मोबाइल पर रील्स देखने लगे।


तभी एक नेताजी प्रकट हुए, सफारी सूट में लिपटे, चेहरे पर दस लाख वाली मुस्कान और जेब में चाय वाले को देने के लिए सौ का नोट। "बाबू जी, अपने लड़के का ठेका पास करवा दीजिए!" बाबू जी ने मुस्कुराकर कहा, "नेताजी, आप तो अपने आदमी हो, बस एक छोटी सी पूजा होगी, नारियल फोड़ना पड़ेगा!" नेताजी मुस्कुराए, "कितने का नारियल?" बाबू जी ने धीरे से कहा, "बस एक लाख का!"


नगर पालिका के बाहर खड़ा एक युवक बड़ी उम्मीद लेकर आया था। "बाबू जी, मेरा मकान का नक्शा पास करवा दीजिए!" बाबू जी ने फाइल के पन्ने ऐसे पलटे, जैसे वेद मंत्र पढ़ रहे हों। "बेटा, नियम तो नियम होते हैं!" युवक ने कहा, "लेकिन पड़ोसी का नक्शा तो बिना पास हुए ही बन गया!" बाबू जी ने रहस्यमयी मुस्कान दी, "बेटा, नियम टूटते नहीं, बस जुड़ते हैं… घूस से!"


इसी बीच एक महिला आई, हाथ में शिकायत पत्र लिए, "बाबू जी, गली की नाली छह महीने से बंद है!" बाबू जी ने सिर खुजलाया, "बीबीजी, सिस्टम को समय दीजिए, लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत धैर्य है!" महिला ने तंज कसा, "आपके धैर्य की तो भगवान ही रक्षा करे, पर मेरी गली में पानी की जगह कचरा बह रहा है!" बाबू जी हँसे, "तो क्या हुआ? हमारी सरकार गंगा को भी साफ कर रही है, आपकी नाली तो छोटी चीज़ है!"

इसी दौरान एक पत्रकार अंदर आ गया, कैमरा ऑन कर दिया, "बाबू जी, नगर पालिका में भ्रष्टाचार चरम पर है, आप क्या कहना चाहेंगे?" बाबू जी की घबराहट छुपाने की कला अद्भुत थी, "देखिए, यह विपक्ष की साजिश है! हम तो बस जनता की सेवा कर रहे हैं!" पत्रकार ने अगला सवाल दागा, "लेकिन लोग तो कह रहे हैं कि यहाँ बिना रिश्वत के पत्ता भी नहीं हिलता?" बाबू जी मुस्कुराए, "पत्ता नहीं हिलता, लेकिन नोटों की गड्डियाँ जरूर खिसक जाती हैं!"


शाम को बाबू जी घर पहुँचे, थैली में मिठाई थी, बच्चों ने पूछा, "पापा, मिठाई किस खुशी में?" बाबू जी ने हँसकर कहा, "बेटा, आज एक नया ठेका पास हुआ है, शहर में अब और गड्ढे बनेंगे!" पत्नी ने ताना मारा, "इतनी इमानदारी से काम करोगे, तो एक दिन भगवान भी ऊपर बुला लेंगे!" बाबू जी ने ठहाका लगाया, "भगवान ने बुला लिया तो? रिश्वत देकर यमराज से भी छुट्टी ले लेंगे!"


- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,

(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

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