By अनन्या मिश्रा | Feb 10, 2024
भारत में कई समाजसेवकों ने अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है। इनमें से बाबा आमटे का नाम प्रमुख है। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 09 फरवरी को बाबा आमटे का निधन हुआ था। बाबा आमटे कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए जाने जाते हैं। कुष्ठ रोगियों की सेवा में उनको देश के प्रमुख और सम्मानित समाजसेवी के तौर पर ख्याति मिली। कुष्ठ रोगियों के लिए उन्होंने कई आश्रणों और समुदायों की स्थापना की। बाबा आमटे ने नर्मदा बचाओं आंदोलन और वन्य जीव संरक्षण सहित तमाम सामाजिक कार्यों में अपनी भागीदारी दी थी। आमटे के जीवनदर्शन, कार्यशैली और सेवाभाव के कारण उनको 'आधुनिक गांधी' कहा जाता था। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर बाबा आमटे के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
महाराष्ट्र के वर्धा जिसे के हिंगणघाट गांव में 26 दिसंबर 1914 को देशस्थ ब्राह्मण परिवार में बाबा आमटे का जन्म हुआ था। उनका पूरा नाम मुरलीधर देवीदास आमटे था। बता दें कि आमटे के पिता हरबाजी आमटे लेखपाल थे। पिता की जमींदारी में बाबा आमटे का जीवन बिल्कुल राजकुमार की तरह बीता था।
कुष्ठ रोगियों की सेवा
बता दें कि आमटे ने समाजसेवा का कोई साधारण मार्ग नहीं चुना था। बता दें कि एक दौर ऐसा था, जब कुष्ठ रोग असाध्य यानी की इसका इलाज नहीं था। ऐसे में कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति को न सिर्फ घर बल्कि समाज से भी बाहर कर दिया था। उन असहाय पीड़ितों की सेवा का जिम्मा बाबा आमटे ने उठाया और उनकी सेवा के लिए कई आश्रम भी खोले। जिनमें से महाराष्ट्र के चंद्रपुर का आनंदवन सबसे फेमस है।
आमटे के जीवन का पहला बदलाव
मुरलीधर आमटे यानी की बाबा आमटे ने साल 1942 में स्वंतत्रता आंदोलन के भारतीय नेताओं के बचाव के वकील के रूप में काम किया था। उन नेताओं ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था। इस दौरान बाबा आमटे को गांधी जी के सेवाश्रम में समय बिताने का मौका मिला था। इसके बाद वह महात्मा गांधी के अनुयायी बन गए। महात्मा गांधी ने बाबा आमटे को 'अभय साधक' नाम दिया था।
आमटे के जीवन की दूसरी घटना
गांधी जी से प्रभावित होकर बाबा आमटे ने खादी अपनाई और पूरे देश का भ्रमण किया। इस दौरान उन्होंने गरीबी और गरीबों के प्रति हो रहे अन्यायों को बेहद करीब से देखा और इससे काफी द्रवित भी हुए। लेतिन असली बदलाव आना अभी भी बाकी था। बाबा आमटे ने कहा था कि वह जिंदगी में कभी किसी चीज से नहीं डरे। भारतीय महिला की रक्षा के लिए अंग्रेजों से भिड़े और सफाई कर्मियों की चुनौतियों को स्वीकारते हुए गटर साफ किए।
बाबा आमटे के अनुसार, कुष्ठ रोगियों की सच्ची सेवा तभी होगी, जब समाज की मानसिक कुष्ठता को दूर किया जाएगा। साथ ही समाज इस रोग के प्रति अनावश्यक डर को खत्म कर देगा। बाबा आमटे ने यह साबिक करने के लिए कि यह बीमारी संक्रमण रोग नहीं है, इसके लिए उन्होंने बैसिली बैक्टीरिया का खुद को इंजेक्शन लगा लिया था। क्योंकि उस दौर में इस रोग को सामाजिक कलंक के तौर पर देखा जाता था। इसलिए बाबा आमटे ने कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए हर संभव प्रयास किए।
मौत
बता दें कि 9 फरवरी 2008 को 94 साल की उम्र में बाबा आमटे ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया। आमटे भादर के प्रमुख व सम्मानित समाजसेवियों में शामिल रहे।