तेल और साबुन बेचने वाली कंपनी को अजीम प्रेमजी ने बनाया 'Wipro', आज हैं देश के सबसे बड़े दानवीर

By अंकित सिंह | Jul 24, 2022

भारत के मशहूर उद्योगपति अजीम प्रेमजी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। अपने व्यापार के साथ-साथ अपने परोपकारी स्वभाव के लिए भी वह देश-दुनिया में जाने जाते हैं। उन्हें दानवीर के रूप में भी ज्यादा पहचान मिली है। आपको बता दें कि अजीम प्रेमजी आज अपना जन्मदिन मना रहे हैं। अजीम प्रेमजी ने भारत के टॉप मोस्ट आईटी कंपनी विप्रो की स्थापना की थी। अजीम प्रेमजी जितने दिमाग के बड़े हैं, उतना ही उनका दिल भी विशाल है। अपने पिता के चावल वाले व्यापार को आगे बढ़ाते हुए आज अजीम प्रेमजी दुनिया की टॉप मोस्ट आईटी कंपनी विप्रो की स्थापना कर चुके हैं। वर्तमान समय में बात करें गौतम अडानी और मुकेश अंबानी के बाद अजीम प्रेमजी भारत में तीसरे नंबर पर अमीर हैं। लेकिन वही दान देने की बात करें तो वह भारत ही नहीं, बल्कि एशिया में नंबर वन बने हुए हैं। 

 

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अजीम प्रेमजी का जन्म 24 जुलाई 1945 को मुंबई में हुआ था। उनके पिता हासिम प्रेमजी चावल के व्यापारी थे। बताया जाता है कि म्यंमार में इनके पिता का बड़ा कारोबार था। यही कारण था कि उन्हें राइस किंग ऑफ बर्मा कहा जाता था। बाद में उनका परिवार भारत आया और गुजरात में रहने लगा। यहां भी चावल का कारोबार शुरू किया। धीरे धीरे उनके पिताजी ने वनस्पति घी बनाने का भी काम शुरू किया। अजीम प्रेमजी ने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग में स्नातक किया हुआ है। अपने पिता के घाटे में जा रही कंपनी को अजीम प्रेमजी ने महज 21 वर्ष की उम्र में संभाला था। अजीम प्रेमजी ने कई कारोबार में हाथ आजमाए। कुछ में सफल हुए, कुछ में असफल हुए। हालांकि, हमेशा वह परोपकार के काम में आगे रहे। 1968 में महज 23 वर्ष की उम्र में अजीम प्रेमजी वेस्टर्न इंडिया वेजिटेबल प्रोडक्ट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक चुने गए। 

 

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इस कंपनी के बैनर तले अजीम प्रेमजी ने शुरू में वनस्पति तेल और साबुन का कारोबार शुरू किया। इसके बाद हाइड्रोलिक कंपोनेंट्स बनाने में भी उन्होंने कदम रखा। लेकिन अजीम प्रेमजी को उस समय बड़ी कामयाबी मिली जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने आईबीएम को देश छोड़ने के लिए कहा। अजीम प्रेमजी ने इस अवसर का लाभ उठाने के लिए कंप्यूटर के क्षेत्र में उतरने का फैसला किया और लाइसेंस के लिए अप्लाई कर दिया। 1979 के आखिर तक प्रेमजी को इस कंपनी के लिए लाइसेंस में मिल गया। साल 1982 में कंपनी का नाम बदलकर विप्रो कर दिया गया। तब से अजीम प्रेमजी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इलेक्ट्रॉनिक सिटी के रूप में उस वक्त उभरने वाली बेंगलुरु में उन्होंने अपने व्यापार को आगे बढ़ाया। उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के प्रोफेसर केजी राव को अपना सलाहकार नियुक्त किया। विप्रो इन्फोटेक की स्थापना की। अजीम प्रेमजी ने अधिकारियों को इस क्षेत्र में काम करने के लिए खुली छूट दी। धीरे-धीरे विप्रो सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में अच्छा खासा नाम कमाने लगा। 

 

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अजीम प्रेमजी ने 1995 में अपनी दोबारा से पढ़ाई शुरू की। आज अजीम प्रेमजी के मेहनत के दम पर ही विप्रो का कारोबार 110 देशों में फैला हुआ है। फिलहाल विप्रो के चेयरमैन पद से अजीम प्रेमजी रिटायर हो चुके हैं। 2019 में उनके बेटे रिशद प्रेमजी ने उनकी जगह ली थी। 2019 में ही अजीम प्रेमजी ने 52750 करोड रुपए के शेयर को उन्होंने अजीम प्रेमजी फाउंडेशन को दान कर दिया। यह पैसा गरीबों के कल्याण के लिए लगाया जाता है। वदेश के सबसे बड़े दानदाताओं में से एक हैं अजीम प्रेमजी गरीबों की लगातार सेवा करते हैं और इसकी प्रेरणा उन्हें अपने मां से मिली है। 7.5 अरब डॉलर से अधिक दान उन्होंने एजुकेशन सेक्टर को दिया है। 2011 में सरकार की ओर से भारत का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्म विभूषण उन्हें दिया गया। 

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