By अनन्या मिश्रा | Dec 05, 2023
अरबिंदो घोष को आध्यात्मकि गुरु, विद्वान्, दार्शनिक, महान कवि, योगी और स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने देश को आजाद करवाने के लिए काफी संघर्ष किया। अरबिंदो घोष ने भारत की राजनीति को एक नई दिशा देने का काम किया था। वहीं अंग्रेजी दैनिक पत्रिका वंदे मातरम के जरिए ब्रिटिश सरकार की जमकर विरोध किया था। आज ही के दिन यानी की 5 दिसंबर को अरबिदों घोष की मृत्यु हो गई थी। उनका मुख्य मकसद मानव जीवन में दिव्य शक्ति और दिव्य आत्मा को लाना था। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर अरबिंदो घोष के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
बंगाल प्रान्त के कोलकाता 15 अगस्त 1872 को अरबिंदो घोष का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम कृष्ण धुन घोष और माता का नाम स्वर्णलता देवी था। अरबिंदो के पिता बंगाल के रंगपुर में सहायक सर्जन थे। साथ ही उनको अंग्रेजी और संस्कृति भाषा अधिक प्रभावित करती थी। जिसके कारण उन्होंने अपने बच्चों को शिक्षा के लिए इंग्लिश स्कूल में डाल दिया। क्योंकि कृष्ण धुन घोष चाहते थे कि उनके बच्चे क्रिश्चन धर्म के बारे में भी ज्ञान प्राप्त कर सकें।
स्वतंत्रता संग्राम में निभाई अहम भूमिका
शिक्षा खत्म होने के बाद साल 1893 में अरबिंदो घोष बरोदा के गायकवाड के यहां नौकरी करने लगे। उनके कई देशों की भाषाओं का ज्ञान था। लेकिन उनको भारतीय संस्कृति की जानकारी काफी कम थी। बरोदा में 12 साल तक उन्होंने बतौर शिक्षक कार्य किया था। वहीं कुछ समय के लिए वह गायकवाड महाराजा के सचिव पद पर भी रहे। कुछ समय बाद उन्होंने बरोदा कॉलेज के वाईस प्रिंसिपल पद की जिम्मेदारी संभाली।
इस दौरान उनको भारतीय संस्कृति और भाषा के बारे में जानकारी हासिल हुई। भारत में कुछ सालों तक रहने के बाद अरबिंदो घोष को यह एहसास हुआ कि अंग्रेज भारतीय संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं। जिसके चलते वह धीरे-धीरे राजनीति में रुचि लेने लगे। हांलाकि अरबिंदो घोष ने शुरूआत से ही भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग पर जोर दिया था। जब साल 1905 में वायसराय लॉर्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन किया, तो पूरे देश में आंदोलन शुरू हो गए। इस दौरान साल 1906 में अरबिंदो घोष भी कोलकाता आ गए।
हांलाकि अरबिंदो घोष असहकार और शांत तरीके से ब्रिटिश सरकार का विरोध करते रहे। लेकिन अंदर से वह क्रांतिकारी संगठन के साथ जुड़कर काम करते रहे। वह बंगाल के कई क्रांतिकारियों के साथ रहते थे। अरबिंदो घोष ने जतिन बनर्जी, बाघा जतिन और सुरेन्द्रनाथ टैगोर को प्रेरित करने का काम किया था।
कारावास और आध्यात्म
जब ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपने विद्रोह विचारों से अरबिंदो घोष देशवासियों के अंदर स्वतंत्रता पाने की अलख जगा रहे थे। इसी बीच चर्चित अलीपुर बम षडयंत्र कांड हुआ। जिसके कारण अंग्रेज सैनिकों ने अरबिंदो घोष को गिरफ्तार कर लिया और जेल में डाल दिया। जेल की सजा के दौरान ही अरबिंदो घोष के जीवन में बड़ा बदलाव आया और उनका आध्यात्म की ओर रुझान हुआ। इस दौरान उनका मन संसारिक कामों से विमुख हो गया। उनकी रुचि ध्यान और योग की तरफ बढ़ने लगा। बता दें कि जेल से रिहाई के बाद अरबिंदो घोष ने खुद को पूरी तरह से ध्यान और योग में समर्पित कर दिया।
आध्यात्म को लेकर उन्होंने कई लेख लिखे और साल 1910 में वह कोलकाता छोड़कर पाडुचेरी चले गए। वहां पर अरबिंदो घोष पहले अपने साथियों के साथ रहे, बाद में उनके विचारों से प्रभावित होकर दूर-दूर से लोग उनके पास आने लगे। इस तरह से अरबिंदो घोष ने एक योग आश्रम की स्थापना की।
मृत्यु
अरबिंदो घोष ने आध्यात्म और तत्वज्ञान के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया। भारत के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू और राष्टपति डॉ राजेंद्र प्रसाद से भी घोष को प्रशंसा मिली। वहीं 5 दिसंबर 1950 को अरबिंदो घोष की मृत्यु हो गई।