Gyan Ganga: अथ श्री महाभारत कथा- जानिये भाग-10 में क्या क्या हुआ

By आरएन तिवारी | Jan 19, 2024

ॐ नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्  देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॐ


अथ श्री महाभारत कथा, अथ श्री महाभारत कथा

कथा है पुरुषार्थ की ये स्वार्थ की परमार्थ की

सारथि जिसके बने श्री कृष्ण भारत पार्थ की

शब्द दिग्घोषित हुआ जब सत्य सार्थक सर्वथा

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत 

अभ्युत्थानमअधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम।

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम 

धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।

भारत की है कहानी सदियो से भी पुरानी

है ज्ञान की ये गंगाऋषियो की अमर वाणी॥ 

ये विश्व भारती है वीरो की आरती है

है नित नयी पुरानी भारत की ये कहानी

महाभारत महाभारत महाभारत महाभारत।।


पिछले अंक में हम सबने पढ़ा कि युद्ध आरंभ होने से पहले युधिष्ठिर द्वारा यह घोषणा की गई थी कि यदि कोई अपना पक्ष बदलना चाहता है तो बदल सकता है, तब कौरवों का सौतेला भाई युयुत्सु कौरवों का साथ छोड़कर पांडवों की ओर चला जाता है।

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युद्ध के पहले दिन पांडवों को काफी हानि हुई। तथा राजा विराट के दोनों पुत्र उत्तर और श्वेत वीरगति को प्राप्त हो गए। आइए ! आगे के प्रसंग में चलें -- 


युद्ध के दूसरे दिन किसी की मृत्यु का समाचार नही मिला। साथ ही अर्जुन ने भीष्म पितामह को अपने साथ युद्ध में कड़ी टक्कर दी। जिसके परिणामस्वरूप पांडवों को अधिक नुकसान नहीं हुआ।


युद्ध के तीसरे दिन दुर्योधन ने भीष्म पितामह पर पक्षपात का आरोप लगाया। जिसके फलस्वरूप भीष्म पितामह ने युद्ध में पांडवों की सेना में खलबली मचा दी। जिससे पांडवों को काफी नुकसान हुआ। युद्ध के चौथे दिन भीष्म पितामह समस्त पांडवों पर भारी पड़ गए। युद्ध के पांचवे दिन अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से भीष्म पितामह का सामना हुआ। उस समय अभिमन्यु मात्र सोलह वर्ष का था, जिसका साहस और सामर्थ्य देखकर भीष्म पितामह दंग रह गए। अभिमन्यु ने दिनभर भीष्म पितामह को युद्ध में उलझाए रखा और शाम तक हार नही मानी। इसी बीच भीष्म पितामह के बल से डरकर सात्यकि युद्ध मैदान छोड़कर भाग गया था। युद्ध के छठे दिन भगवान श्री कृष्ण ने भीष्म पितामह से कहा, कि वे अपने अस्त्र-शस्त्र त्याग दें। जब भीष्म पितामह ने उनकी बात नहीं सुनी तब भगवान ने अपने विराट रूप के दर्शन कराए। भगवान का विराट स्वरूप देखने के पश्चात भीष्म पितामह ने पांचों पांडवों को अपनी मृत्यु का रहस्य बता दिया।


उन्होंने बताया कि तुम्हारी सेना में शिखंडी नाम का एक अर्धनारी रूप में एक योद्धा मौजूद है जो देवी अंबा का पुनर्जन्म है। उसका हरण मैंने माता सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य के विवाह के लिए किया था। लेकिन वह किसी और से प्रेम करती थी।


परंतु बाद में उसके प्रेमी ने उसे अपनाने से इंकार कर दिया था। जिसके फलस्वरूप अंबा ने भीष्म पितामह के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था। परंतु भीष्म पितामह ने आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ले रखी थी। जिसके बाद राजकुमारी अंबा भगवान परशुराम के पास जाती है और तत्पश्चात् भीष्म पितामह और परशुराम के बीच भीषण युद्ध होता है। उस युद्ध को रोकने के लिए भगवान शंकर को मध्यस्थता करनी पड़ती है। उसी समय भीष्म पितामह प्रतिज्ञा करते हैं कि जब भी देवी अंबा युद्ध भूमि में मेरे सामने होंगी तब मैं युद्ध नहीं करूँगा और अपने अस्त्र शस्त्र त्याग दूंगा। इस प्रकार महाभारत के युद्ध में देवी अंबा ने शिखंडी के रूप में अवतार लिया था और वही शिखंडी भीष्म पितामह की मृत्यु का कारण बना था। युद्ध के सांतवे दिन शिखंडी ने अर्जुन के रथ पर सवार होकर युद्ध भूमि में प्रवेश किया। जिसे देखकर भीष्म पितामह ने अपने शस्त्र त्याग दिए और फिर अर्जुन ने उन पर बाणों की वर्षा कर दी और मानो भीष्म पितामह के लिए बाणों की शैय्या तैयार कर दी थी। भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था। साथ ही वह तब तक प्राण नही त्याग सकते थे, तब तक हस्तिनापुर में धर्म की स्थापना नही हो जाती। हालांकि अर्जुन ने जब भीष्म पितामह पर बाणों से प्रहार किया तब उनके नेत्रों से अश्रु धारा बह रही थी। युद्ध के आठवें दिन कौरवों के सेनापति गुरु द्रोणाचार्य को बनाया जाता है। इस दिन अभिमन्यु और दुर्योधन युद्धभूमि में आमने सामने थे। अभिमन्यु ने दुर्योधन को कड़ी चुनौती दी थी। युद्ध के नौंवे दिन महाबली भीम ने सत्रह कौरवों का वध कर दिया। युद्ध के दसवें दिन गुरु द्रोणाचार्य युधिष्ठिर को बंदी बनाने के उद्देश्य से आगे बढ़ते है लेकिन अर्जुन उन्हें रोक लेता है। युद्ध के ग्यारहवें दिन गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वस्थमा का युद्ध अभिमन्यु से होता है तो दूसरी तरफ अर्जुन का युद्ध गुरु द्रोणाचार्य से होता है। युद्ध के बारहवें दिन अर्जुन का युद्ध त्रिगर्त राजा से होता है। राजा त्रिगर्त अर्जुन को युद्ध भूमि से को दूर ले जाते हैं ताकि कौरव दल के योद्धा युधिष्ठिर को आसानी से बंदी बना सके, परंतु राजा त्रिगर्त की दाल  नहीं गल पाती और उसी युद्ध के दौरान राजा त्रिगर्त को परास्त करके अर्जुन लौट आते हैं।

 

शेष अगले प्रसंग में ------

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । 


- आरएन तिवारी

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