By अंकित सिंह | Aug 02, 2020
जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 के हटने का 1 साल पूरा होने जा रहा है। हालांकि, आर्टिकल 370 के खात्मे के बाद जम्मू कश्मीर की स्थिति कितनी बदली यह एक बहस का और विचार का मुद्दा जरूर हो सकता है। लेकिन एक बात और भी है कि आर्टिकल 370 के हटने के बाद जम्मू कश्मीर की स्थितियों में बदलाव की शुरूआत हो गई है। जम्मू कश्मीर में विकास को आम जनजीवन तक पहुंचाना है तो उसके लिए वहां सबसे पहले शांति बहाल किए जाने की जरूरत है। दो केंद्र शासित प्रदेशों में बंटने के बाद जम्मू-कश्मीर की सरकार वहां शांति बहाल करने की कवायद में जुटी हुई है। ऐसा नहीं है कि आर्टिकल 370 के हटने के बाद वहां अचानक से शांति बहाल हो गई है। आर्टिकल 370 के खात्मे के बाद हमने देखा कि किस तरीके से वहां अब भी आतंकवाद और हिंसा जारी है। हम यह जरूर कह सकते हैं कि वहां पहले की तुलना में हिंसा में कमी जरूर आई है।
पिछले 1 साल में छिटपुट हिंसा से जम्मू कश्मीर में नेताओं को भी का शिकार होना पड़ा है। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान भारतीय जनता पार्टी हुई है। भाजपा के कई नेताओं को अपनी जान गंवानी पड़ी है।दरअसल, पिछले दिनों ही कश्मीर के बांदीपोरा जिले में भाजपा नेता शेख वसीम, उनके पिता वसीर अहमद और भाई उमर शेख की आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी। आतंकवादियों ने भाजपा नेता बारी पर साइलेंसर लगी रिवॉल्वर से गोलियां दागी। यह घटना मुख्य थाने से महज 10 मीटर की दूरी पर हुई। आतंकवादियों की इस खौफनाक हरकत के बाद घाटी के भाजपा नेताओं में डर का माहौल है। इससे पहले इससे पहले आतंकवादियों ने भाजपा नेता अनिल परिहार और उनके भाई अजीत परिहार को किश्तवाड़ा में गोली मारकर हत्या कर दी थी। अनिल और अजीत परिहार की हत्या के बाद भी घाटी में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर खूब सवाल उठे। हालांकि इसी दौरान एक और खौफनाक घटना को अंजाम देते हुए आतंकवादियों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता चंद्रकांत शर्मा और उनके पीएसओ की भी हत्या कर दी गई।
इसके अलावा अनंतनाग जिले में एक सरपंच की भी कुछ दिन पहले अज्ञात लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। मारे गए सरपंच का नाम अजय पंडिता था। वह कश्मीरी पंडित थे। यह भी कहा जा रहा था कि वह कांग्रेस से जुड़े हुए थे और वे आतंकवादियों के निशाने पर थे। हालांकि, कश्मीर से आर्टिकल 370 के खात्में के बाद कश्मीरी पंडितों को वापस लौटने की आस बंधी है। कश्मीरी पंडित अपनी जड़ों की ओर वापस लौटने के लिए अब जमीन तलाशने की शुरुआत कर चुके हैं। कश्मीरी पंडितों से जुड़ा संगठन वहां जाकर अपने पुराने दिनों को याद कर रहा और फिर से स्थापित होने की भी तैयारी कर रहा है। हालांकि कश्मीरी पंडितों के अंदर 90 के दशक का वह खौफनाक कत्लेआम का दर्द आज भी देखा जा सकता है
हालांकि, वर्तमान परिस्थिति में देखे तो कश्मीरी पंडितों के लिए अपने पुराने घर में लौट जाना भी इतना आसान नहीं है। सबसे पहले तो उनके घरों को हड़प लिया गया है। जमीनों पर कब्जा कर लिया गया है। ऐसे में वहां पुनः स्थापित होने के लिए फिर से संघर्ष करना पड़ेगा। इतना ही नहीं उनके घरों को भी बेच दिया गया है और किसी नए मालिक को दे दिया गया है। घर खरीदार नहीं मिले तो उसे या तो तोड़ दिया गया है या फिर जला दिया गया है। इसके अलावा कश्मीरी पंडित यह कभी नहीं चाहेंगे कि उन्हें जो दर्द 90 के दशक में झेलनी पड़ी उसे वह एक बार फिर से झेले। आज भी वह वापस लौटते हैं तो उन्हें उन्हीं लोगों के बीच में रहना पड़ेगा जिन लोगों ने उन्हें 90 के दशक में घाटी छोड़ने को मजबूर किया था। ऐसे में फिलहाल अगर कश्मीरी पंडित जम्मू कश्मीर में पुनर वापसी की कोशिश कर रहे हैं तो उन्हें सबसे पहले सुरक्षा मुहैया कराया जाना चाहिए। सुरक्षा के बाद ही उन्हें अपने पुराने घरों में वापसी का मौका मिल सकता है। हालांकि हमें इस बात की भी उम्मीद करनी चाहिए कि जल्द ही सरकार कश्मीरी पंडितों को ससम्मान घाटी में वापसी करवाएगी।