अद्भुत बौद्धिक क्षमता और दूरदर्शिता पूर्ण व्यक्तित्व के धनी थे अरुण जेटली

By अजेंद्र अजय | Aug 25, 2019

अब तक के अपने राजनीतिक जीवन में मुझे अनेक वरिष्ठ राजनेताओं से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ है। मगर मुझे सर्वाधिक प्रभावित किसी ने किया है, तो वह अरुण जेटली जी थे। वर्ष 2003-04 के आसपास मुझे प्रदेश भाजपा में प्रदेश सह मीडिया प्रभारी की जिम्मेदारी मिली थी। सह मीडिया प्रभारी के नाते मुझे पार्टी के मीडिया सेल द्वारा समय-समय पर राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली कार्यशालाओं में भाग लेने का अवसर मिला। इन्हीं कार्यशालाओं में अरुण जी (पार्टी में श्रद्धा के साथ उनको यही पुकारा जाता था) निकट से देखने-समझने और फिर कई मुलाकातों का संयोग बना। उनके व्यक्तित्व में एक गजब का आकर्षण था। वो किसी भी विषय पर बोलते थे तो विरोधी भी उनकी बात को गंभीरता से सुनते थे। उनके पास अकाट्य तर्कों की भरमार थी, जो किसी को भी निरुत्तर करने में सक्षम थे। बौद्धिक वर्ग में अरुण जी के बारे में यह प्रचलित था कि अगर वे सामान्य बातचीत भी कर रहे होते हैं, तो उसमें भी तमाम तथ्यों की भरमार होती है। उनमें अद्भुत बौद्धिक क्षमता थी। दूरदर्शिता पूर्ण व्यक्तित्व था। 

 

वो अपनी सीमाओं व क्षमताओं को पहचानते थे। सीमाओं को पहचानने का अर्थ आज की राजनीति में बेहद प्रासंगिक और राजनेताओं को सीख देने वाली कि उनकी उपयोगिता किस कार्य में है, वो उसी भूमिका में रहें। उदाहरण स्वरूप इस बात का उल्लेख करना समचीन होगा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी जी को प्रधानमंत्री पद के चेहरे के रूप में उतारने पर बहस चल रही थी। उस दौरान चर्चा में यह बात उभर कर आई कि भाजपा संगठन में विश्वास करती है तो फिर व्यक्ति विशेष को चेहरा बनाने का क्या अर्थ है? तब अरुण जी जैसे लोगों ने समय की जरूरत और देश के मानस के मूड के अनुरूप निर्णय की बात कही थी। यह उनकी दूरदर्शिता थी। 

इसे भी पढ़ें: अरूण जेटली राजनीतिक आदर्शों की ऊंची मीनार थे

अरुण जी से मैं जितनी बार भी मिला या मैंने उनको सुना, वो हमेशा सुधारों की बात करते रहे। उनके एजेंडे में हर क्षेत्र में सुधार प्राथमिकता में शामिल रहे। मुझे याद है केंद्र में मोदी सरकार के गठन से पूर्व एक बार दिल्ली में मैं उनसे मिला था। तब कुछ वरिष्ठ पत्रकार भी वहां बैठे थे। वो पत्रकारों से मुखातिब थे और उनसे अमेरिका की राष्ट्रपतीय राजनैतिक व्यवस्था की खूबियों व खामियों की चर्चा कर रहे थे। अरुण जी भारत को विकसित देशों की तरह देखना चाहते थे। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी जी की पहली सरकार में सुधारवादी अरुण जी अपनी प्रभावी भूमिका में नजर आए।

 

अरुण जी का ये सुधारवादी रवैया कई लोगों को अखरने वाला रहा होगा। मगर उन्होंने अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन नहीं किया। इसका उदाहरण 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी हार को माना जा सकता है। वो तात्कालिक लाभ के लिए अपने नज़रिए में बदलाव नहीं लाना चाहते थे। वो राजनीति को राजनीति की शर्त पर नहीं, अपितु अपनी शर्तों पर जीते थे। 

 

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता, अर्थशास्त्री, भाजपा के वरिष्ठ नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री जैसे आभूषणों का अरुण जी के लिए कोई महत्व नहीं था। इन सबसे हट कर एक स्तर पर उनका अलग व्यक्तित्व था। उनके व्यक्तित्व में नैतिकता भरा साहस था। कई बार न्यायपालिका द्वारा अपनी सीमा रेखा पार कर कार्यपालिका व विधायिका के कार्यों में हस्तक्षेप करने पर अरुण जी अपने न्याय संगत तर्कों के जरिए उनको सीमा में रहने की नसीहत देते दिखे। न्यायपालिका की अति सक्रियता पर अरुण जी ने संसद में यह तक कह डाला था कि अब बजट बनाने और टैक्स वसूलने का काम ही शेष बच गया है, जिसे भी न्यायपालिका को अपने हाथ में ले लेना चाहिए। वो न्यायिक सुधारों के लिए भी विभिन्न मंचों पर जोरदार पैरवी करते दिखे।

इसे भी पढ़ें: व्यक्ति, विचार, संस्था और संकटमोचक थे अरुण जेटली

अरुण जी का हर चीज को देखने का अपना नजरिया था। उनके नज़रिए में खामी निकालना किसी के लिए संभव नहीं था। बहुत तार्किक व नपे- तुले अंदाज में बातों को रखना उनके व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा था। जीएसटी, नोट बंदी जैसे क़दमों के बाद उनके हिस्से में कई नाराज़गी भरे स्वर भी आए। मगर उन्होंने उफ्फ तक नहीं की, क्योंकी शायद वे जानते थे कि कोई कठोर कदम उठाना है, तो ये सामान्य बातें हैं। 

 

अरुण जी लोक लुभावन बातों और राजनीति से दूर रहे। वो एक "दुर्लभ" रणनीतिकार थे। सख्त प्रशासक थे। वर्ष 2017 के विधान सभा चुनाव के दौरान फरवरी माह में वे उत्तराखंड भाजपा के 'विजन डॉक्यूमेंट' का लोकार्पण करने देहरादून आए। विजन डॉक्यूमेंट कमेटी के सचिव के नाते होटल में मैं उन्हें कार्यक्रम से पूर्व विजन डॉक्यूमेंट की कॉपी लेकर गया। डॉक्यूमेंट पर चर्चा हुई। उन्होंने मुझसे बड़ी बेबाकी से कहा कि लोक लुभावन बातों से बचना चाहिए। यथार्थ परक बातें भविष्य की नींव कायम करती हैं।

इसे भी पढ़ें: भारतीय राजनीति के जेंटलमैन, प्रखर वक्ता और यारों के यार थे जेटली

उत्तराखंड के बारे में उनकी जानकारी बेहद परिपूर्ण थी। वो कुमायूं के कई इलाकों में घूमे थे। जब उत्तराखंड के बारे में वे चर्चा करते थे, तो यहां के किसी व्यक्ति से ज्यादा जानकारी उनके पास होती थी। 

 

वो भारतीय राजनीति के एक चमकीले सितारे थे। अभी उनकी उम्र 67 ही साल तो थी। यह उम्र बहुत ज्यादा तो नहीं होती है। मगर विधाता की लेखनी को कौन टाल सकता है? उनकी विद्वता भरी वाणी और विचारों की रिक्तता की पूर्ति शायद ही पूरी हो?  

 

- अजेंद्र अजय

(लेखक उत्तराखंड भाजपा के नेता और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

 

प्रमुख खबरें

Hair Growth Toner: प्याज के छिलकों से घर पर बनाएं हेयर ग्रोथ टोनर, सफेद बाल भी हो जाएंगे काले

Vivo x200 Series इस दिन हो रहा है लॉन्च, 32GB रैम के अलावा जानें पूरी डिटेल्स

Kuber Temples: भारत के इन फेमस कुबेर मंदिरों में एक बार जरूर कर आएं दर्शन, धन संबंधी कभी नहीं होगी दिक्कत

Latur Rural विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने किया दशकों तक राज, बीजेपी को इस चुनाव में अपनी जीत का भरोसा