नेहरू और शेख अब्दुल्ला के मन में थी दलितों के लिए ऐसी सोच

By डॉ विजय सोनकर शास्त्री | Jun 29, 2018

जम्मू और कश्मीर में दलितों की स्थिति बहुत चिंताजनक है। धारा-370 के कारण जम्मू और कश्मीर राज्य में अनुसूचित जाति और जनजाति को भारतीय संविधान की ओर से उनके आर्थिक एवं शैक्षणिक उत्थान के लिए किए गए प्रावधान एवं आरक्षण का उन्हें कोई लाभ नहीं दिया जा रहा है। जम्मू-कश्मीर राज्य में धारा-370 के कारण राज्य की विधानसभा के बनाए नियम राज्य में लागू नहीं होते हैं। ऐसे में समझा जा सकता है कि 1950 में पंडित नेहरू और शेख अब्दुल्ला के मन में दलितों के लिए क्या सोच रही होगी? और यही कारण भी रहा कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में दलितों के उत्थान एवं सशक्तिकरण के बारे में कभी सोचा ही नहीं गया।

 

जम्मू-कश्मीर राज्य के दलितों की स्थिति की तुलना वहां की मुस्लिम महिलाओं एवं युवकों से भी की जा सकती है। जिस प्रकार महिलाओं के उत्थान एवं उनके सशक्तिकरण के लिए केंद्र सरकार अनेकों योजनाएं चल रही है, किन्तु धारा-370 के कारण उन्हें इन केंद्रीय सरकार की योजनाओं का लाभ न तो मिल रहा है और न ही उन लाभों को वह ले सकते हैं। उदाहरणार्थ-केंद्र की मोदी सरकार द्वारा जारी शासनादेश के अनुसार देश के प्रत्येक बैंक प्रत्येक वर्ष एक महिला एवं एक अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति को कम ब्याज की योजना वाला ऋणः देकर उद्यमी बनाएंगे I देश के प्रत्येक राज्य में यह योजना बड़ी सफलता के साथ चल रही हैं, किन्तु जम्मू-कश्मीर में इस योजना का कोई प्रभावी और सफल परिणाम सामने नहीं आया है। इसी तरह युवाओं के लिए उनके सशक्तिकरण एवं रोजगार की दृष्टि से अनेकों योजनाएं, जो धारा 370 के कारण जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होती है।

 

1956 में जम्मू-कश्मीर राज्य ने राज्य विधानसभा के शासनादेश से सफाई-कर्म के नाम पर बाल्मीकि समाज के लोगों को पंजाब के पठानकोठ, अमृतसर, जालंधर, होशियारपुर इत्यादि से लाकर जम्मू-कश्मीर राज्य के भिन्न-भिन्न स्थानों पर उनकी कालोनी बनाकर बसाया गयाI परन्तु धारा-370 का यह भी एक शर्मनाक रूप रहा कि उन्हें जातिगत आधार पर सरकारी दस्तावेजों में नौकरी को 'भंगी पेशा' नाम से जाना जाता है और उन्हें इस सफाई-कर्म के अलावा कोई भी अन्य नौकरी करना आधिकारिक रूप से प्रतिबंधित है। यह मानवता और मानवाधिकार के नाम पर कलंक है। इतना ही नहीं, उन्हें आज तक जम्मू-कश्मीर की पूर्ण नागरिकता भी नहीं दी गयी। आज भी लगभग पांच लाख दलित यानी बाल्मीकि सफाईकर्मी नागरिकता और सरकारी नौकरियों में समानाधिकार की बांट जोह रहे हैंI 

 

मानवाधिकार के लिए लड़ने वालो एवं तथाकथित दलित नेताओं के द्वारा इतनी महत्वपूर्ण बात को जानकर, उसकी अनभिज्ञता प्रदर्शित करना छदम धर्मनिरपेक्षता का एक बहुत बड़ा उदाहरण है। देश-विदेश से उच्च शिक्षा प्राप्त भी जम्मू-कश्मीर के बाल्मीकि लोग अपने राज्य में सफाईकर्म के अलावा कोई नौकरी नहीं कर सकते हैं। मायावती हो या मेवानी, पूरे देश के दलितों का ठेका लेकर, उन्हें मूर्ख बनाने का काम करते हैं। यदि उनमें दम ओर संवेदनशीलता हो तो वह धारा-370 का विरोध करके जम्मू-कश्मीर राज्य के अपने लाखों-लाख दलित भाइयों एवं बहनों की चिंता करनी चाहिए। भाजपा ने तो न केवल धारा-370 को समाप्त करने की बात करती हैं, बल्कि वर्षों से भाजपा एवं भाजपा के अनुसूचित जाति एवं जनजाति मोर्चा की ओर संघर्ष भी कर रही है।

 

धारा-370 के कारण आज तक जम्मू-कश्मीर राज्य में अनुसूचित जनजाति की 10.9 प्रतिशत जनसंख्या होने के बाद भी एक भी सीट आरक्षित नहीं है। जबकि उत्तर प्रदेश में आधा प्रतिशत (.40 प्रतिशत) होने के कारण दो आरक्षित सीट हैं। इस प्रकार जम्मू-कश्मीर के जम्मू एवं लद्दाख क्षेत्र में लगभग 9 सीटें बढ़ सकती हैं। यदि ऐसा हो जाए तो जम्मू-कश्मीर की राजनीती की दिशा एवं दशा बदल जाएगी।

 

कुल मिलाकर जम्मू-कश्मीर राज्य में धारा-370 की आड़ में दलित वर्ग की दशा स्वतंत्रता के पूर्व वाली है। राज्य सरकार केवल बाल्मीकि जाति को सफाई कर्मचारी की नौकरी के आलावा उनके सशक्तिकरण के लिए आज तक कोई योगदान नहीं किया है। इस प्रकार भारत में रह कर भी जम्मू-कश्मीर के दलित एक विचित्र स्थिति में जीवनयापन कर रहे हैं। उन्हें आधार कार्ड तो मिल रहा हैं, जो उनकी अपनी भारतीय पहचान है, किन्तु उन्हें अपने ही देश में एक शरणार्थी की तरह जीना पड़ रहा है और उनकी हालत बांग्लादेशियों की तरह है।

 

डॉ विजय सोनकर शास्त्री

पूर्व सांसद एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता

भारतीय जनता पार्टी

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