चारधाम को मिलेगा नया आयाम, चीन सीमा तक सेना की पहुंच होगी आसान, जानें क्या है इससे जुड़ा विवाद और SC की मंजूरी की कहानी

By अभिनय आकाश | Dec 15, 2021

सुप्रीम कोर्ट ने चारधाम सड़क परियोजना पर केंद्र सरकार को राहत देते हुए एक बड़ा फैसला लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर चार धाम के लिए ऑल वेदर रोड की इजाजत दे दी है। अब चीन बॉर्डर तक डबल लेन सड़क बनने का रास्ता साफ हो गया है। मंगलवार का दिन केंद्र की मोदी सरकार और उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार के लिए राहत भरी खबर लेकर आया। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड चारधाम रोड प्रोजेक्ट के तहत डबल लेन सड़क बनाने को मंजूरी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने सेनाओं के लिए इसके रणनीतिक महत्व को देखते हुए डबल लेन बनाने की मंजूरी दी है। कोर्ट ने इसकी अनुमति देते हुए कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी प्रोजेक्ट्स की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती है। ऐसे में आज के इस विश्लेषण में आपको बताते हैं कि क्या है चारधाम प्रोजेक्ट, सैन्य दृष्टि के क्यों इसे माना जा रहा है बेहद महत्वकांक्षी और सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अब कैसे गंगोत्री और यमुनोत्री का सफर आसान होगा। 

क्या है चारधाम प्रोजेक्ट

ये एक हाइवे प्रोजेक्ट है और इसके तहत केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे उत्तराखंड के चार धाम को आपस में हाइवे के जरिए जोड़ने की योजना है। परियोजना के जरिए करीब 9 हजार किलोमीटर लंबी सड़कों को चौड़ा किया जा रहा है और उन्हें हाइवे में बदला जा रहा है। करीब 900 किलोमीटर की इस सड़क पर 16 बायपास, 101 छोटे पुल, 3516 पुलिया और 15 फ्लाई ओवर बनाए जा रहे हैं। इस पूरे प्रोजेक्ट पर 12 हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा। ये एक राष्ट्रीय महत्व से जुड़ी परियोजना भी है। आप कह रहे होंगे की सबकुछ इतना बढ़िया है तो फिर दिक्कत कहां आई। दरअसल, इसे समझने के लिए आपको इतिहास में थोड़ा पीछे लिए चलते हैं, छोड़ा इसलिए क्योंकि यही कोई 4 बरस पहले। साल 2017 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले का वक्त यानी 27 दिसंबर 2016 में  उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में एक बड़े कार्यक्रम का मंच और उस मंच पर मौजूद थे देश के प्रधान नरेंद्र मोदी जबकि ठीक बगल में थे तत्कालीन कांग्रेस शासित राज्य के मुख्यमंत्री हरीश रावत। ऐसा कम ही मौका होगा जब पीएम मोदी के बगल में हरीश रावत हो। अतुल्नीय मौकों में से एक मौका था उत्तराखंड में सड़क चौड़ीकरण की योजना का शिलान्यास होना था। उत्तराखंड में 900 किमी लंबा डबल लेन हाइवे बनाने की योजना थी। यानी जो सड़के पहले से हैं उनको चौड़ा करना था।  पहले इस प्रोजेक्ट का नाम ‘ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट’ था। लेकिन बाद में नाम बदलकर ‘चारधाम प्रोजेक्ट’ किया गया।

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सरकार ने इस प्रोजेक्ट को यात्रियों और उत्तराखंड के लिए एक बड़ी सौगात के रूप में प्रस्तुत किया। इसके फायदों में जो सबसे महत्वपूर्ण बात सरकार की तरफ से गिनाई गई वो थी इसके बनने से भारतीय सेना चीन की सीमा तक आसानी से पहुंच सकेगी। पीएम मोदी ने इस प्रोजेक्ट को 2013 की केदारनाथ त्रासदी में मरने वाले लोगों के लिए श्रद्धांजलि बताया था। लेकिन पर्यावरण विद कहने लगे कि ये प्रोजेक्ट नहीं रोका गया तो और तबाही आ सकती है। 2013 जैसी और त्रासदियां हमारे सामने आ सकती हैं। पर्यावरण विदों ने भूस्लखन की चेतावनी देते हुए याचिका भी दाखिल कर दी। फिर मामला सुप्रीम कोर्ट गया और 25 सदस्यों वाली कमेटी गठित की गई। कमेटी की तरफ से दो रिपोर्ट दी गई और फिर सितबंर 2020 में अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि सिर्फ 5.5 मीटर चौड़ी सड़क ही बना सकते हैं। जबकि सरकार की चारधाम परियोजना में 12 मीटर चौड़ी सड़क बननी थी। 

याचिकाकर्ता की दलील

गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सिटिजन फॉर ग्रीन दून ने सड़क के चौड़ीकरण कार्य के खिलाफ याचिका दायर की थी। एनजीओ ने कहा था कि सड़क को ‘डबल लेन’ नहीं किया जा सकता क्योंकि यह लोगों या सेना के हित में नहीं है और भूस्खलन के कारण लोगों के जीवन के लिए जोखिम उत्पन्न होगा। पहाड़ियों को काटकर पक्की सड़क बनाने से मलबा निकलेगा जिससे हिमालयी पर्यावरण को नुकसान होगा। एनजीओ की तरफ से इसे रक्षा मंत्रालय की पहल की बजाय सड़क मंत्रालय द्वारा बद्रीनाथ तक बढ़ाए जाने की बात कही।

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चीन से लगी भारत की सीमा की हिफाजत

इस सब के बाद सरकार को एक जरूरी बात जो 2016 वाले कार्यक्रम में कही थी। नेशनल सिक्योरिटी, यानी चीन से लगी भारत की सीमा की हिफाजत। सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में फैसले में संशोधन के लिए याकिता लगा दी। रक्षा मंत्रालय ने दलील दी कि ये सड़के भारत-चीन सीमा तक जाने के लिए फीडर रोड का काम करेगी। चीन कॉरिडोर के कारण इस सड़क की जरूरत और बढ़ गई है। 2012 और 2018 के सर्कुलर में रक्षा जरूरतों पर गहनता से विचार नहीं किया गया था। रक्षा मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि  1962 जैसी स्थिति से बचने के लिए सीमा पर सेना को सड़कों की जरूरत है। टैंक, रॉकेट लॉन्चर और तोप ले जाने वाले ट्रकों को इन सड़कों से गुजरना पड़ सकता है। ऋषिकेश से गंगोत्री, ऋषिकेश से माना और तनकपुर से पिथौरागढ़ जैसी सड़कें जो देहरादून और मेरठ के आर्मी कैंप को चीन की सीमा से जोड़ती है। इन कैंपों में मिसाइल लॉन्चर और हेवी आर्टिलरी मौजूद हैं। केंद्र सरकार ने कहा कि आर्मी को किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहने की जरूरत है। सभी जगह सड़क की चौड़ाई 10 मीटर करने की अनुमति दी जाए।  

यहां अटकी थी परियोजना

उत्तरकाशी से गंगोत्री तक 89 किमी में नहीं शुरू हो पाया था काम।

पालीगाड़ से हनुमानचट्टी तक रुका था 21 किमी का काम।

परियोजना के तहत कुल 13 सेक्शन पर रुके थे काम।

टनकपुर-पिथौरागढ़ मार्ग पर चंपावत, लोहाघाट में बाईपास का काम रुका था।

ऋषिकेश और जोशीमठ में भी नहीं बन पाए थे बाईपास।

बद्रीनाथ हाइवे पर भूस्खलन जोन तोताघाटी में प्रोटेक्शन के काम अटके थे। 

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

जस्टिस डीवाई चंद्रडूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रमनाथ की पीठ ने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता का ये तर्क की अदालत संस्थान से नीति को लेकर पूछताछ करे ये बिल्कुल अस्वीकार्य है। कोर्ट ने कहा कि देश की सुरक्षा चुनौतियां समय के साथ बदल सकती हैं तथा हाल के समय में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं। न्यायिक समीक्षा में सशस्त्र बलों की अवसंरचना की जरूरत का अनुमान नहीं लगा सकती। अदालत ने कहा,‘‘याचिकाकर्ता ने सेना प्रमुख की ओर से सैनिकों की आवाजाही के लिए पर्याप्त अवंसरचना को लेकर वर्ष 2019 में मीडिया में दिए गए साक्षात्कार का संदर्भ दिया है। हम रक्षा मंत्रालय के लगातार रुख के मद्देनजर मीडिया में दिए गए बयान पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। अब इस फैसले के बाद चारधाम प्रोजेक्ट की अड़चने खत्म हो गई हैं। डबल लेन सड़क बनाने का रास्ता भी साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने ये माना की ये प्रोजेक्ट सामरिक महत्व रखता है और ये फैसला सीमाओं की सुरक्षा के चलते लिया गया है। 

सैन्य दृष्टि से है बेहद महत्वकांक्षी 

चारधाम परियोजना के तहत भारत की चीन तक पहुंच और आसान हो जाएगी और किसी भी मौसम में भारतीय सेना चीन से सटी सीमाओं पर पहुंच  सकेगी। पीएम मोदी ने 2016 में प्रोजेक्ट की आधारशीला रखते हुए इसे केदानाथ त्रासदी मेंमृतकों के लिए श्रद्धांजलि बताया था। 

पहला रास्ता

ऋषिकेश से धरासू होते हुए हनुमानचट्टी तक है। हनुमानचट्टी ही यमुनोत्री का प्रवेश द्वार है। ऋषिकेश से इसकी दूरी 140 किलोमीटर होगी। इस मार्ग पर बड़ेथी तक चौड़ीकरण का काम हो चुका है।

दूसरा रास्ता

ऋषिकेश-धरासू मार्ग से ही एक और रास्ता गंगोत्री धाम को जाता है। इस मार्ग की दूरी 126 किलोमीटर है। उत्तरकाशी से गंगोत्री धाम तक 89 किलोमीटर सड़क चौड़ी की जानी है।

तीसरा रास्ता

ऋषिकेश से रूद्रप्रयाग तक 136 किलोमीटर का मार्ग है। रुद्रप्रयाग से दो रास्ते हैं। पहला रास्ता केदारनाथ धाम जाने के लिए है। इस पूरे मार्ग को गौरीकुंड तक चौड़ा किया जाना है। दूरी 76 किलोमीटर है। इस मार्ग पर फाटा के पास दो किमी काम बाकी रह गया है।

चौथा रास्ता

ये मार्ग रुद्रप्रयाग से बद्रीनाथ धाम के लिए माना गांव तक है। सामरिक और सैन्य दृष्टि से ये मार्ग काफी अहम है। रुद्रप्रयाग से ये मार्ग 154 किलोमीटर है। जोशीमठ बाईपास को छोड़कर बाकी काम हो चुका है।

पांचवां रास्ता

ये मार्ग टनकपुर से पिथौरागढ़ तक है। इसकी कुल लंबाई 135 किलोमीटर है। इसमें चंपावत, लोहाघाट और पिछारौगढ़ में बाइपास बनने हैं।

फैसले के बाद क्या...

165 किमी के 13 प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो पाएगा

गंगोत्री और उत्तरकाशी से गंगोत्री मार्ग के चौड़ीकरण का काम रुका था

5 शहरों में बाईपास बनेंगे

2022 तक पूरा होना था काम

अब परियोजना के 2024 तक पूरा होने का अनुमान है

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देश की सुरक्षा के लिए सेना को भी अदालत के चक्कर काटने पड़ते हैं

भारत शायद दुनिया का एकलौता ऐसा देश है जहां देश की सुरक्षा के लिए सड़कें चौड़ी करनी हो तो रक्षा मंत्रालय और सेना को भी अदालत के चक्कर काटने पड़ते हैं। क्योंकि हमारे देश के एजीओ और पर्यावरण विद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए और उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में चार धाम रोड चौड़ी नहीं होनी चाहिए क्योंकि पेड़ों को नुकसान होगा। सरकार को ये बताना पड़ा की भारत और चीन सीमा पर हमें नई लेटेस्ट मिसाइल तैनात करनी है। हमें वहां एस-400 तैनात करना है और ये जो बड़े बड़े हथियार और मिसाइल हैं इन्हें वहां ले जाने के लिए हमें चौड़ी सड़क की आवश्यकता है। हमें चौड़ी सड़क बनाने दी जाए। तब जाकर इसकी इजाजत मिली है। 

-अभिनय आकाश 

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