By अभिनय आकाश | Apr 02, 2022
चंडीगढ़ को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच लंबे समय से चल रहा विवाद इस हफ्ते तब और भड़क गया जब केंद्र ने केंद्र शासित प्रदेश में कर्मचारियों के लिए पंजाब सर्विस रूल्स के बजाय सेंट्रल सर्विस रूल्स अधिसूचित किए। केंद्र ने पहले भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) में नियुक्तियों के नियमों में बदलाव किया था। बीजेपी को छोड़ पंजाब की सभी सियासी दलों ने इस कदम का विरोध किया। जिसके बाद 1 अप्रैल को पंजाब विधानसभा ने विशेष सत्र में चंडीगढ़ पर राज्य के दावे को दोहराते हुए सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया। जिसे लगभग सभी प्रमुख दलों ने अपना समर्थन दिया है। 1 अप्रैल को पंजाब विधानसभा को संबोधित करते हुए भगवंत मान ने केंद्र सरकार पर केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ का प्रशासनिक संतुलन बिगाड़ने का आरोप लगाते हुए क्या मैंने पंजाब के लोगों को गारंटी दी थी कि मैं राज्य के अधिकारों के लिए लड़ूंगा। पंजाब पुनर्गठन एक्ट, 1966 के जरिए पंजाब को हरियाणा में पुनर्गठित किया गया था। केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ और पंजाब के कुछ हिस्से तब के केंद्रशासित प्रदेश हिमाचल को दे दिए गए थे। तब से लेकर अब तक भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड जैसी साझी संपत्तियों के प्रशासनिक ढांचे में एक संतुलन बना हुआ था। अब केंद्र सरकार इस संतुलन को बिगाड़ने की कोशिश कर रही है।
अपने संबोधन के दौरान भगवंत मान ने कहा कि चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी के तौर पर बनाया गया था। पंजाब पूरी तरह से चंडीगढ़ के ऊपर अपना दावा पेश कर रहा है। ऐसे में आज आपको बताते हैं कि चंडीगढ़ क्यों पंजाब, हरियाणा और केंद्र के बीच खींचतान का मुद्दा बना है। इतिहास से आइने से आपको समझाते हैं कि क्या है आनंदपुर साहिब प्रस्ताव, राजीव गांधी और लोंगोवाल समझौता क्या है व क्यों चंडीगढ़ विवाद की वजह बना हुआ है।
चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी कब और कैसे बनी?
बंटवारे के बाद भारत दो भागों में बंट गया। उस वक्त पंजाब का काफी हिस्सा पाकिस्तान के पास चला गया। उस वक्त पंजाब की राजधानी लाहौर हुआ करती थी। लेकिन 1947 के विभाजन के बाद लाहौर पाकिस्तान के हिस्से में चला गया। विभाजन के बाद शिमला को भारतीय पंजाब की अस्थायी राजधानी बना दिया गया। प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू लाहौर को पंजाब की राजधानी के रूप में बदलने के लिए एक आधुनिक शहर चाहते थे, जिसके बाद चंडीगढ़ के विचार की कल्पना की गई थी। 21 सितंबर, 1953 को राजधानी को आधिकारिक तौर पर शिमला से चंडीगढ़ स्थानांतरित कर दिया गया। राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने 7 अक्टूबर, 1953 को नई राजधानी का उद्घाटन किया। हरियाणा के जन्म तक, चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी बना रहा।
पंजाब का पुनर्गठन और चंडीगढ़ बना केंद्र शासित प्रदेश ?
चंडीगढ़ एक ऐसा शहर है जो पंजाब व हरियाणा दोनों की राजधानी है और साथ ही केंद्र शासित प्रदेश भी है। 1966 में पंजाब से अलग होकर 1 नवंबर को हरियाणा अलग राज्य बना था। दोनों राज्यों ने चंडीगढ़ को अपनी राजधानी के रूप में दावा किया। पंजाब को यहां की संपत्तियों में 60 फीसदी हिस्सा मिला, जबकि हरियाणा को 40 फीसदी हिस्सा हाथ लगा। इसके अलावा, केंद्रशासित प्रदेश के तौर पर यहां केंद्र के पास सीधा नियंत्रण रहा। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1966 ने 1952 में तय की गई व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं किया।
क्या है आनंदपुर साहिब प्रस्ताव
पंजाब की राजनीति में इस दौरान एक परिवर्तन का दौर देखने को मिल रहा था। अकाली दल कांग्रेस का विकल्प बनकर उभर चुकी थी। इंदिरा गांधी ने इसके जवाब के तौर पर 1972 में सरदार ज्ञानी जैल सिंह को पंजाब के मुख्यमंत्री के तौर पर खड़ा किया। 1973 में सिखों ने पंजाब के स्वायत्तता की मांग की1 1978 में पंजाब की मांगों पर अकाली दल ने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पारित किया। इसके मूल प्रस्ताव में सुझाया गया था कि भारत की केंद्र सरकार का केवल रक्षा, विदेश नीति, संचार और मुद्रा पर अधिकार हो जबकि अन्य सब विषयों पर राज्यों के पास पूर्ण अधिकार हों। वे ये भी चाहते थे कि भारत के उत्तरी क्षेत्र में उन्हें स्वायत्तता मिले। अकालियों की पंजाब संबंधित माँगें ज़ोर पकड़ने लगीं। अकालियों की प्रमुख मांगें थीं - चंडीगढ़ पंजाब की ही राजधानी हो, पंजाबी भाषी क्षेत्र पंजाब में शामिल किए जाएं, नदियों के पानी के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय की राय ली जाए। आनंदपुर साहिब के संकल्प और उद्देश्य शिरोमणि अकाली दल की कार्यकारी समिति ने व्यापक नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करने के लिए
11 दिसंबर, 1972 को 12 सदस्यीय उप-समिति का गठन किया।
उपसमिति में एस सुरजीत सिंह बरनाला, एस. गुरचरण सिंह टोहरा, एस. जीवन सिंह उमरानंगल, दिवंगत एस. गुरमीत सिंह मुक्तसर, डॉ. भगत सिंह, एस. बलवंत सिंह, दिवंगत एस. ज्ञान सिंह रारेवाला, एस. प्रेम सिंह लालपुरा, एस. जसविंदर सिंह बराड़, एस. भाग सिंह, मेजर जनरल गुरबख्श सिंह, और एस. अमर सिंह अंबालावी शामिल है
समिति ने कई बैठकों में गंभीर विचार-विमर्श के बाद एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसे कार्य समिति द्वारा 17 अक्टूबर, 1973 को श्री आनंदपुर साहिब में एक सर्वसम्मत प्रस्ताव के माध्यम से अपनाया गया।
सिख जीवन शैली का प्रचार और नास्तिकता और गैर-सिख सोच को दूर करना।
सिख पंथ की एक अलग स्वतंत्र इकाई की भावना को बनाए रखना और एक ऐसा वातावरण बनाना जिसमें सिखों की "राष्ट्रीय अभिव्यक्ति" पूर्ण और संतोषजनक हो सके।
एक नया अखिल भारतीय गुरुद्वारा कानून लाना जो अधिक कुशल और सुनिश्चित करेगा और वर्तमान की तुलना में पूजा स्थलों और सामुदायिक केंद्रों का सार्थक प्रबंधन और उनके वित्तीय संसाधनों और संपत्ति पर अतिक्रमण किए बिना एक गतिशील सिख समाज में प्राचीन सिख उपदेश आदेशों (जैसे उदासी और निर्मला) के पुन: एकीकरण की उपलब्धि में मदद करना।
दुनिया के सभी गुरुद्वारों को एक संगठन के बैनर तले लाना ताकि सिख धार्मिक प्रक्रियाओं और कार्यवाही को दुनिया भर में एक समान बनाया जा सके और धार्मिक प्रचार के समग्र संसाधनों को एकत्रित और प्रभावी बनाया जा सके।
इस नए पंजाब में केंद्र की सत्ता देश की रक्षा, विदेश संबंध, संचार, रेलवे और मुद्रा तक ही सीमित रहनी चाहिए।
सभी अवशिष्ट विषय (विभाग) पंजाब के अधिकार क्षेत्र में होने चाहिए जिन्हें इन विषयों के लिए अपना संविधान बनाने का अधिकार होना चाहिए।
हरियाणा के लिए एक अलग राजधानी और राजीव गांधी-लोंगोवाल समझौता
पंजाब हमेशा से चंडीगढ़ को लेकर अपना दावा करता रहा है। इसके पीछे 1985 के राजीव गांधी और लोंगोवाल समझौते का भी जिक्र किया जाता है। बता दें कि अगस्त 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के संत हरचंद सिंह लोंगोवास के बीच समझौता हुआ था। इस समझौता के अनुसार, चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपना तय हुआ। यह समझौता हुआ कि चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी रहेगी और हरियाणा की अलग राजधानी बनाई जाएगी। हालांकि कुछ प्रशासनिक कारणों के चलते इस हस्तांतरण में देरी हुई और यह मामला अधर में अटकता चला गया।
पंजाब की पहले की भी सरकारी करती रही है ऐसे प्रस्ताव पास
पंजाब विधानसभा में 1 अप्रैल को चंडीगढ़ पर दावा पेश करने वाला अपनी तरह का सातवां प्रस्ताव था। पहला प्रस्ताव 18 मई, 1967 को आचार्य पृथ्वी सिंह आजाद द्वारा लाया गया था, और दूसरा चौधरी बलबीर सिंह द्वारा 19 जनवरी, 1970 को दोनों गुरनाम सिंह की सरकार के दौरान लाया गया था। सुखदेव सिंह ढिल्लों ने 7 सितंबर 1978 को एक प्रस्ताव लाया जब प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री थे और बलदेव सिंह मान ने 31 अक्टूबर 1985 को सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार के दौरान एक समान प्रस्ताव लाया। 23 दिसंबर 2014 को बादल सरकार के दौरान गुरदेव सिंह झूलन ने एक प्रस्ताव लाया। 12 जुलाई 2004 को पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर द पंजाब टर्मिनेशन ऑफ वाटर एग्रीमेंट पारित करवाया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की ओर से वर्ष 2016 में जब एसवाईएल के मुद्दे फैसला दिया गया तो तत्कालीन प्रकाश सिंह बादल सरकार ने भी विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया था। बादल सरकार की ओर से बुलाए गए। विशेष सत्र बुलाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने से इनकार करते हुए। किसानों को नहर की जमीन लौटाने का कानून बनाया था। केंद्र सरकार की ओर से हाल ही में बीएसएफ का दायरा बढ़ाए जाने पर तत्कालीन चरणजीत सिंह चन्नी सरकार ने भी विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर प्रस्ताव पारित किया था। इसके बावजूद केंद्र सरकार संह ने पंजाब सरकार की ओर से पारित का किए गए प्रस्ताव को गंभीरता से नहीं लिया और बीएसएफ का दायरा अभी भी बरकरार है। पंजाब के विधानसभा में पारित किए गए प्रस्ताव की व्यवहारिकता पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस विधायक सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कहा कि प्रस्ताव पहले भी पारित होते रहे हैं। इस प्रस्ताव के बाद कानूनी कार्रवाई की जाए तो बेहतर होगा।
चंडीगढ़ के सवाल पर हरियाणा का क्या कहना है?
2018 में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सुझाव दिया कि चंडीगढ़ के विकास के लिए एक विशेष निकाय का गठन किया जाना चाहिए। लेकिन पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस विचार को खारिज कर दिया, उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ निर्विवाद रूप से पंजाब का है। हरियाणा एक अलग उच्च न्यायालय की मांग कर रहा है और विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कर पंजाब के कब्जे वाले विधानसभा परिसर में 20 कमरे की मांग की है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने गुड़गांव में कहा, 'पंजाब सरकार के एकतरफा प्रस्ताव का कोई मतलब नहीं है। यह हरियाणा का विषय है। चंडीगढ़ पंजाब और हरियाणा की राजधानी है...और दोनो की ही रहेगी।
-अभिनय आकाश