By नीरज कुमार दुबे | Sep 05, 2023
अभी एक देश एक चुनाव, एक देश एक नागरिक संहिता पर बहस चल ही रही थी कि अब 'एक देश एक नाम' भी आ गया है। हम आपको बता दें कि राष्ट्रपति भवन की ओर से नेताओं को जी-20 रात्रिभोज में शामिल होने के लिए भेजे गये निमंत्रण में राष्ट्रपति को ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ की जगह ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ बताया गया है। इस बात को मुद्दा बनाते हुए कांग्रेस ने कहा है कि यह राज्यों के संघ पर हमला है। इस पर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा है कि कांग्रेस के मन में न तो देश के लिए और न ही संविधान और संवैधानिक संस्थाओं के प्रति कोई सम्मान है। उन्होंने भारत की सबसे पुरानी पार्टी से सवाल किया है कि ‘भारत माता की जय’ के उद्घोष से वह नफरत क्यों करती है?
'प्रेसिडेंट ऑफ भारत' सुनते ही विपक्षी गठबंधन इंडिया में शामिल दलों के नेता आग बबूला हो गये हैं और कह रहे हैं कि हमारी ताकत से डर कर देश का नाम बदला जा रहा है लेकिन विपक्ष को यहां यह समझने की जरूरत है कि देश का प्राचीन नाम भारत ही था। विपक्ष को यह भी पता होना चाहिए कि देश का नाम नहीं बदला जा रहा है बल्कि उसको सिर्फ उसके प्राचीन नाम और उस नाम से पुकारा जा रहा है जिसे संविधान में भी लिखा गया है। विपक्ष को समझना होगा कि संविधान का आर्टिकल वन ही कहता है कि इंडिया देट इज भारत। इसलिए जब देश को संविधान में ही भारत नाम से पुकारा गया है तो यह बात कहां से आ गयी कि देश का नाम बदला जा रहा है।
विपक्ष को शायद पता नहीं है कि इंडिया नाम हमें विदेशियों ने दिया था। आज जब देश औपनिवेशिक काल की हर निशानी को मिटा रहा है तो देश के प्राचीन नाम को ही प्रमुखता दी जानी चाहिए। जो लोग कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अगर इंडिया नाम से दिक्कत है तो वह अपनी योजनाओं के नामों में इंडिया क्यों लगाते हैं? उन्हें समझना चाहिए कि योजनाओं के नामों में भले इंडिया हो लेकिन देश की आत्मा और मन भारत ही है। देश को माँ माना जाता है और इस माँ के स्वरूप की जब भी हम कल्पना करते हैं तो भारत माता ही हमारे सामने प्रकट होती हैं इंडिया माता नहीं। जब हम किसी को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देते हैं तो वह भारत रत्न होता है इंडिया रत्न नहीं। इंडिया का इतिहास कुछ सौ वर्षों पुराना हो सकता है लेकिन भारत का इतिहास सैंकड़ों शताब्दियों पुराना है। सभ्यता इंडिया में नहीं भारत में पहले आई थी। हमारे वेद ग्रंथ इंडिया के जमाने के नहीं भारत काल के हैं। दुनिया को जीरो इंडिया ने नहीं भारत ने दिया था। विश्व गुरु भारत ही था इंडिया नहीं। हम कोई मैच जीतते हैं, उपलब्धि हासिल करते हैं या दुश्मन पर फतेह हासिल करते हैं तो भारत माता की जय के नारे लगाते हैं इंडिया माता के नहीं।
देखा जाये तो हमारा संविधान भारत और इंडिया दोनों नामों को मान्यता देता है लेकिन यह हम नागरिकों पर निर्भर है कि हम देश को किस नाम से बुलाते हैं। जब फैसला हमको करना है तो हमें अपने प्राचीन नाम को ही वरीयता देनी चाहिए क्योंकि वही असली नाम है। संविधान विशेषज्ञों का तो यहां तक मानना है कि यदि सरकार एक सामान्य नोटिफिकेशन निकाल कर भी कह दे कि संविधान में जहां जहां इंडिया है उसे भारत समझा जाये तो वह मान्य होगा। इसलिए विपक्ष के सवालों में सिर्फ राजनीति ही झलकती है।
इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह का कहना है कि सरकार देश का नाम तो बदल ही नहीं रही है। उन्होंने कहा कि हमारे देश के बारे में तो नये नामकरण का सवाल ही नहीं है इसलिए कोई विवाद होना ही नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि यूरोप में तो कई देशों के नाम बदले गये हैं। उन्होंने कहा कि हर देश का यह अधिकार है कि वह यह तय करे कि उसे किस नाम से जाना जाये। उन्होंने कहा कि संविधान में इंडिया शब्द लिखा गया है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भारत कोई संविधान से परे है। उन्होंने कहा कि भारत नाम से पुकारे जाने पर कोई विपरीत वैश्विक असर भी नहीं पड़ेगा।