तो क्या गृह मंत्रालय में शाह के होने से बढ़ा कामकाज

By अनुराग गुप्ता | Jun 17, 2019

लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली भाजपा ने यह तो सिद्ध कर ही दिया कि पार्टी में नंबर वन की भूमिका और नरेंद्र मोदी की सरकार में नंबर दो की भूमिका आखिर किसकी है क्योंकि भारत में राजनीतिक दृष्टिकोण के लिहाज से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे करीबी और शक्तिशाली व्यक्तित्व के धनी तो सिर्फ एक ही व्यक्ति हैं। वो हैं अमित शाह। कभी नरेंद्र मोदी की सरकार में दूसरा सबसे शक्तिशाली पद राजनाथ सिंह का हुआ करता था लेकिन अब यह पद अमित शाह के पास है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुमत के साथ एक बार फिर चुने गए और उन्होंने गृह विभाग का जिम्मा अपने सबसे करीबी अमित शाह को सौंपा तो रक्षा विभाग का जिम्मा उन्होंने राजनाथ सिंह को दिया। जिनकी अध्यक्षता में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने आम चुनावों में बहुमत हासिल की थी। 

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सरकार में नंबर दो की भूमिका में रहने वाले अमित शाह फिलहाल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने रहेंगे। ऐसा फैसला पार्टी ने किया और वो भी इसलिए ताकी आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा एक बार फिर से अपना शानदार प्रदर्शन दोहरा सकें। भाजपा के पूरे इतिहास में अभी तक अमित शाह जैसा शक्तिशाली व्यक्ति नहीं रहा। जिसने न केवल जीत की रणनीति बनाई बल्कि कब किस विपक्षी पार्टी को कैसे मात देने है उसका पूरा खाका भी तैयार किया। शायद यही वजह है कि पार्टी ने झारखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनावों तक शाह को अध्यक्ष पद पर बने रहने की बात कहीं। हालांकि इसे हम सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरगामी सोच का नतीजा भी समक्ष सकते हैं। क्योंकि मोदी और शाह की जोड़ी ने गुजरात से शुरुआत कर आज पूरे देश में भाजपा के नाम का परचम लहराया है।

 

इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई सरकार के कामकाज की शुरुआत करते हुए 8 समितियां गठित कीं और इन सभी समितियों में अमित शाह हैं। जबकि प्रधानमंत्री खुद 6 समितियों में हैं। शाह को सौंपी गई 2 समितियां ऐसी हैं जो गृह मंत्रालय के अंतर्गत तक नहीं आती हैं। उनमें से एक नौकरियों से संबंधित तो दूसरी आर्थिक ग्रोथ को बढ़ाने संबंधित समिति है। मुंबई में जन्में शाह 30वें गृहमंत्री हैं। गृहमंत्री के तौर पर अपना कामकाज संभालने के तुरंत बाद से ही अमित शाह ने मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले सभी 19 विभागों का जायजा लिया और उनका कामकाज समझने का प्रयास भी किया। इतना ही नहीं ईद के दिन भी शाह ने मंत्रालय में कामकाज निपटाया। मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात का दावा किया जा रहा है कि शाह पिछले गृहमंत्रियों की तुलना में दफ्तर में ज्यादा वक्त गुजारते हैं। इतना ही नहीं यहां तक कहा जा रहा है कि राजनाथ सिंह लंच के बाद घर चले जाते थे और घर से ही मंत्रालय का सारा काम देखते थे। जबकि शाह सुबह 9:45 में नॉर्थ ब्लॉक जाते हैं और रात 8 बजे तक वहीं से कामकाज देखते हैं। 

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गृहमंत्रालय में इन दिनों राज्यपाल, मुख्यमंत्रियो और मंत्रियों का आना जाना लगा हुआ है। अब तक केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण कामकाज की दिशा में प्रधानमंत्री कार्यालय के बाद वित्त मंत्रालय ही आता था लेकिन शाह की एनर्जी और लगातार चल रही बैठकों पर ध्यान दें तो अरुण जेटली के सरकार में न होने के बाद से गृह मंत्रालय ने सुर्खियां बटोरी हुई है। हालांकि पार्टी प्रमुख होने के नाते अमित शाह का मंत्रियों और नेताओं से मिलना तो स्वभाविक था। पिछली मोदी सरकार में गृहमंत्रालय के काम कर चुके एक ब्यूरोक्रेट बताते हैं कि यह पहली बार है गृह मंत्रालय के तहत अंतर-मंत्रालयी बैठक हो रही है। जबकि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में यह बमुश्किल आयोजित होती थीं। गौरतलब है कि सालों पहले सरदार वल्लभ भाई पटेल को देश के सबसे निर्णायक गृह मंत्रियों के रूप में देखा जाता था और ऐसा ही उदाहरण लालकृष्ण आडवाणी ने भी पेश करने का प्रयास किया था लेकिन अब अमित शाह यह जिम्मा निभा रहे हैं।

 

शाह के समझ आने वाली चुनौतियां 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा एक बार फिर से अमित शाह पर भरोसा जताए जाने के बाद अब उन्हें खुद को सिद्ध करना पड़ेगा। क्योंकि अमित शाह ने खुद चुनावी रैलियों के समय कश्मीर से धारा 35ए और धारा 370 को समाप्त करने एवं राम जन्मभूमि बनाने की बात कही थी। इतना ही नहीं उन्होंने कहा था कि हमारी सरकार बनने के बाद हम एनआरसी को नए सिरे से लागू करेंगे। शाह के इन वादों के बाद देखते ही देखते चुनावों में जय श्री राम का नारा भी गूंजने लगा, जो आज ममता बनर्जी के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। बीते दिनों सामने आए वीडियो के मुताबिक ममता बनर्जी जय श्री राम का नारा सुनकर इतना आक्रोशित हो गईं कि उन्होंने नारे लगाने वालों को जेल में डालने तक की धमकी दे डाली और यह कहा कि यह गुजरात नहीं बल्कि बंगाल हैं।

 

खैर अमित शाह ने अगर खुद के द्वारा किए गए वादों को पूरा कर दिया तो वह अपने-आप ही सर्वस्वीकृत नेता बन जाएंगे। इसलिए जरूरी है कि वह अब वादों को पूरा करने की दिशा में काम करें। हालांकि उन्होंने कश्मीर में दिलचस्पी दिखाते हुए राज्यपाल सत्यपाल मलिक से कश्मीर के हालातों पर बातचीत की और प्रभावी कदम उठाने का वादा भी किया। इतना ही नहीं वह अमरनाथ यात्रा से पहले कश्मीर का दौरा भी करने वाले हैं।

 

- अनुराग गुप्ता

 

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