By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Sep 22, 2019
एकातेरिनबर्ग। भारतीय मुक्केबाज अमित पंघाल का पुरूष विश्व चैम्पियनशिप में शानदार सफर रजत पदक के साथ समाप्त हुआ। वह 52 किग्रा वर्ग के फाइनल में शनिवार को ओलंपिक चैम्पियन उज्बेकिस्तान के शाखोबिदिन जोइरोव से 0-5 से हार गए। हालांकि भारतीय मुक्केबाज 0-5 के स्कोर से हारे लेकिन उन्होंने अपने से कहीं मजबूत प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ कड़ी चुनौती पेश की। पंघाल ने मुकाबला गंवाने के बाद कहा कि मुझे लगता है कि आज मेरे पंचों में ताकत की थोड़ी कमी थी, मैं इस पर काम करूंगा। जोइरोव मुझसे अधिक समय से इस भार में रहे हैं, जिसने उनकी मदद मिली। उन्होंने कहा कि बहरहाल, यह मेरे करियर का सबसे बड़ा पदक है, मैं इसे अपने देश को समर्पित करता हूं।
दूसरे वरीय पंघाल इस तरह विश्व चैम्पियनशिप में रजत पदक जीतने वाले पहले भारतीय मुक्केबाज बन गये हैं और देश ने इस बार दो पदक के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन भी किया। मनीष कौशिक (63 किग्रा) ने सेमीफाइनल में हारकर कांस्य पदक हासिल किया था। पंघाल ने फिर से अपने से लंबे और ताकतवर प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया लेकिन उनके पंच सीधे संपर्क में नहीं आ सके। एशियाई खेलों और एशियाई चैम्पियनशिप के स्वर्ण पदकधारी की यह ऐतिहासिक उपलब्धि है। इस मुकाबले में दोनों मुक्केबाजों ने ज्यादा से ज्यादा जवाबी हमला करने पर ध्यान दिया। शुरूआती तीन मिनट में पंघाल और जोइरोव ने एक दूसरे के खेल को समझने की कोशिश की।
दूसरे दौर में दोनों मुक्केबाजों ने एक दूसरे पर प्रहार करना शुरू किया। पंघाल ने विरोधी खिलाड़ी के ‘लो गार्ड’ का फायदा उठाने की कोशिश की लेकिन जोइरोव की तेजी का उनके पास कोई जवाब नहीं था। पंघाल तीसरे दौर में ज्यादा आक्रामक रहे लेकिन जोइरोव सटीक प्रहार कर अधिक अंक जुटाने में सफल रहे। पंघाल ने कहा कि मुझे यकीन है कि अगली बार जब हम एक-दूसरे के आमने सामने होंगे तो मैं उसे हरा दूंगा। मेरे खेल में कुछ कमियां हैं, मैं सुनिश्चित करूंगा कि अगली बार उसमें सुधार किया जाए। राष्ट्रीय कोच सीए कटप्पा कहा कि उसने जैसा प्रदर्शन किया, उससे बेहतर कर सकता था। उसे बस ज्यादा आक्रामक और अधिक पंच लगाने की आवश्यकता थी।
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विश्व चैम्पियनशिप का रजत पदक भारतीय मुक्केबाजी में पंघाल के ऊपर चढ़ने का शानदार ग्राफ दर्शा रहा है जिसकी शुरूआत 2017 एशियाई चैम्पियनशिप में 49 किग्रा वर्ग में कांस्य पदक से हुई थी। रोहतक के इस मुक्केबाज ने बुल्गारिया में प्रतिष्ठित स्ट्रांदजा मेमोरियल में लगातार स्वर्ण पदक हासिल किये और फिर वह 2018 में एशियाई चैम्पियन बना। इस साल उन्होंने एशियाई चैम्पियनशिप का स्वर्ण पदक अपने नाम कर किया और फिर 49 किग्रा के ओलंपिक कार्यक्रम से हटने के बाद 52 किग्रा में खेलने का फैसला किया। भारत ने कभी भी विश्व चैम्पियनशिप के एक चरण में एक से ज्यादा कांस्य पदक हासिल नहीं किया था। इससे पहले विजेंदर सिंह (2009), विकास कृष्ण (2011), शिव थापा (2015) और गौरव बिधुड़ी (2017) ने विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक हासिल किये थे।
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टूर्नामेंट में 78 देश भाग ले रहे हैं जिसमें नौ देश के मुक्केबाज फाइनल में पहुंचने में सफल रहे और पहली बार इस सूची में भारत का भी नाम था। खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन पर भारतीय मुक्केबाजी संघ (बीएफआई) के अध्यक्ष अजय सिंह ने कहा कि यह बीएफआई के उस प्रयास का नतीजा है जिसने पिछले कुछ समय में खेल की पूरी संरचना को बदला है ताकि हमारे मुक्केबाजों को सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षण मिल सके और वे विश्व स्तर पर आत्मविश्वास के साथ प्रदर्शन कर सकें। उन्होंने कहा कि तोक्यो ओलंपिक में अब एक साल से भी कम का समय बचा है, ऐसे में इस प्रदर्शन से मनोबल बढ़ेगा और बीएफआई उन्हें हर तरीके से प्रोत्साहित करेगा ताकि वे इस लय को जारी रख सकें और देश के लिए पदक जीत सकें।