By नीरज कुमार दुबे | Aug 25, 2021
क्या तालिबान की चेतावनी के आगे झुक गया है अमेरिका? क्या जल्दबाजी में आतंकवादियों को अमेरिकी विमानों में बिठा कर अपने देश ले आया है अमेरिका? क्या तालिबान से डर कर भाग रही अफगानी जनता के साथ भीड़ में घुसकर आतंकवादी भी पहुँच गये हैं अमेरिका या अन्य विकसित देशों में ? यह सब सवाल इसलिए उठ खड़े हुए हैं क्योंकि अमेरिका अफगानिस्तान में गलतियां ही गलतियां करता जा रहा है। एक तो राष्ट्रपति जो बाइडन ने दोहराया है कि वह 31 अगस्त तक अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की पूर्ण वापसी के फैसले पर अडिग हैं। हम आपको बता दें कि बाइडन के इस ऐलान से ठीक पहले तालिबान ने चेतावनी दी थी कि अमेरिका द्वारा विमान के जरिये अफगानिस्तान से लोगों को ले जाने की कार्रवाई 31 अगस्त तक खत्म हो जानी चाहिए। दूसरा अमेरिका ने जिन अफगानिस्तानियों को अब तक वहाँ से निकाला है उनका किसी भी प्रकार का कोई सत्यापन नहीं किया गया और जो लोग अब अमेरिका सहित अन्य देशों में पहुँच चुके हैं उनके बारे में अंदाजा लगाया जा रहा है कि इनमें से कुछ आतंकवादी भी हो सकते हैं जो समय आने पर खतरा बन सकते हैं। अमेरिकी गलतियां यहीं खत्म नहीं होतीं। एक तरह से तालिबान शासन को मान्यता देने की राह पर आगे बढ़ते हुए अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के निदेशक ने काबुल में तालिबान के शीर्ष राजनीतिक नेता से मुलाकात की और लोगों को निकालने के लिए चल रहे अमेरिकी अभियानों में बाधा नहीं पहुँचाने का आग्रह किया।
अमेरिकी राजनीति में आया उबाल
तालिबान के आगे हाथ जोड़ते अमेरिकी नेतृत्व को देखकर वहां की राजनीति में भी उबाल आ गया है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस मुद्दे पर कहा है कि तालिबान के सामने बाडइन ने घुटने टेक दिये हैं और सैनिकों को वापस बुला कर, हजारों अमेरिकियों को मरने के लिए छोड़ दिया है। ट्रंप ने कहा कि हमें पता चला है कि निकाले गए 26,000 लोगों में से केवल चार हजार अमेरिकी थे। ट्रंप ने दावा किया कि तालिबान ने निकासी उड़ानों में सबसे प्रतिभाशाली लोगों को चढ़ने की अनुमति नहीं दी। डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि हम केवल कल्पना कर सकते हैं कि अफगानिस्तान से कितने आतंकवादियों को हवाई मार्ग के जरिए निकाला गया। उन्होंने कहा कि यह एक भयानक विफलता है क्योंकि जिसे लाया गया उसका कोई पुनरीक्षण नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि जो बाइडन कितने आतंकवादी अमेरिका लाएंगे? हमें नहीं पता।
पूरी दुनिया अमेरिका से निराश
दूसरी ओर, जी-7 के देश भी निराश हैं कि बाइडन ने उनकी यह बात नहीं मानी कि 31 अगस्त के बाद भी अफगानिस्तान में अमेरिकी फौजों को बनाये रखा जाये। इस मुद्दे पर बाइडन का जी-7 देशों के साथ टकराव भी देखने को मिला है। दरअसल अमेरिका के सहयोगी देश इस बात से निराश हैं कि जब अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ अभियान चलाने की बात आई थी तब अमेरिका के सहयोगी नाटो देशों के सैनिकों ने वहां अमेरिका का पूरा साथ दिया लेकिन अभी अमेरिका के सहयोगी देश अफगानिस्तान से अपने सभी लोगों को पूरी तरह निकाल नहीं पाये हैं, ऐसे में भी अमेरिका वहां अपना अभियान समाप्त करना चाहता है। अमेरिका के सहयोगी देश इस बात को समझ रहे हैं कि अमेरिका के पूरी तरह निकलने के बाद उन लोगों के लिए अपनों को अफगानिस्तान से निकालना बेहद मुश्किल हो जायेगा। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी अफगानिस्तान को अराजकता वाले हाल में छोड़ने के लिए अमेरिका की आलोचना करते हुए कहा है कि आतंकवादी उथल-पुथल हालात का इस्तेमाल अफगानिस्तान की सीमा से लगे मध्य एशियाई देशों को अस्थिर करने के लिए कर सकते हैं।
अफगानिस्तान में और बिगड़ेंगे हालात
यही नहीं बाइडन के अड़ियल रवैये से अब अफगानिस्तान में हालात और जटिल होने के आसार हैं क्योंकि ज्यादा से ज्यादा अफगानी जल्द से जल्द देश छोड़ना चाहेंगे क्योंकि उन्हें पता है कि 31 अगस्त के बाद वह ऐसा बिलकुल नहीं कर पाएंगे। बताया जाता है कि 80 हजार से ज्यादा अफगानी लोग देश छोड़ने को आतुर हैं लेकिन तालिबान ने अब जब अफगानियों को हवाई अड्डे तक आने से मना कर दिया है ऐसे में लोग यदि छिप-छिपाकर आएंगे तो उन्हें ज्यादा खतरा है। यह भी बताया जा रहा है कि तालिबान ने अफगानी महिलाओं को घर के भीतर ही रहने के निर्देश दिये हैं इसके पीछे तर्क दिया गया है कि तालिबानी लड़ाकों को अभी महिलाओं का सम्मान करने के बारे में प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। अब देखना होगा कि महिलाओं का सम्मान करने के प्रशिक्षण के दौरान कितना सम्मान करना है, कब-कब सम्मान करना है, आदि बातें भी सिखायी जाती हैं क्या।
-नीरज कुमार दुबे