समाज के प्रभावशाली, शक्तिशाली, वैभवशाली व्यक्ति शहर के मेयर की तरह होते हैं। वे हमेशा टॉप गियर में रहते हैं। अपनी पसंद के अनुसार वे जो चाहे करवा सकते हैं। आम लोगों की परेशानियों के बारे जानकर, सबसे पहले वे कहा करते हैं कि अभी तक हमारे संज्ञान में कुछ नहीं आया है। बात बिलकुल सही है। यह उन जैसे उच्च स्तरीय व्यक्ति की ज़िम्मेदारी थोड़ा भी है कि वे छोटी या मोटी, बात या घटना का संज्ञान लें। यह उनका नैतिक कर्तव्य बिलकुल नहीं है कि खुद संज्ञान लें कि वातावरण या पर्यावरण में क्या गलत हो रहा है या क्या गलती से ठीक हो रहा है।
यह तो घटना, कागज़ या बात की ज़िम्मेदारी है कि सही समय और उचित मुहर्त में उनके संज्ञान के मुख्य द्वार के सामने जाकर खड़े हों। दोनों हाथ पांव जोड़कर गुजारिश करें, अगर उन्होंने देख लिया और उन्होंने उचित समझा तभी वे अपने संज्ञान को अनुमति देंगे और संभवत बात सुनेंगे, नहीं तो पलक ज़रा सी भी उठाकर नहीं देखेंगे। उनके परिवेश में सशरीर प्रवेश करना तो बहुत दूर की कौड़ी है। बढ़िया महंगी कुर्सी पर बैठने वाले यह लोग बहुत साफ़ सुथरी, बिलकुल स्पष्ट, बिना डर और बिना किसी दबाव के बात करते हैं। वह बात विशेष है कि वे सरकारजी के भी ख़ास होते हैं।
मेयर की तरह बात करना मज़ाक नहीं है, आसान तो है ही नहीं, बहुत मुश्किल काम है। उन्हें कितने ही तरह के सांस्कृतिक व ऐतिहासिक पाइपों से अपने शरीर, भावनाओं और इच्छाओं को गुजारना पड़ता है तब कहीं घूमने वाली कुर्सी नसीब होती है। कुर्सी के कारण उन्हें हर काम बहुत सूझ बूझ के साथ करना पड़ता है। उन्हें अपने हर संपन्न या असम्पन्न कार्य को किलोमीटर का पत्थर घोषित करना पड़ता है। बहुत कुछ पारिवारिक, क्षेत्रीय, धार्मिक, सांप्रदायिक व राजनीतिक सहना पड़ता है फिर भी मुस्कुराकर, हंसते हुए बार बार कहते रहना पड़ता है कि उनके हृदय में किसी के प्रति कुछ भी गलत नहीं है कि वे सभी को बराबर समझते हैं।
वे दिल से नहीं, दिमाग से बोलते हैं. उनके अनुसार वे इतने अनुशासित हैं कि वैध वस्तुएं ही पसंद करते हैं। यहां तक कि कोई नागरिक अगर अवैध विकास करता है, वह चाहे छोटा हो या बड़ा, मोटा हो या पतला, गोरा हो या काला, हरा हो या लाल, अपनी नज़रों में सभी को सम्मान से देखते हैं। किसी के साथ भी बोल भाव, मोल भाव, तोल भाव या भेद भाव नहीं करते। अगर, मगर, किंतु, कदाचित के बावजूद कुछ भी अवैध, उनके अनुशासित संज्ञान में प्रवेश कर जाए तो किसी को भी बख्शते नहीं। उन्हें इस बात का एहसास है कि वे मेयर नहीं तो क्या, मेयर की तरह हैं। तभी तो ज़ोरशोर से कहते हैं कि ईमानदारी भी एक चीज़ होती है, समाज में अनुशासन होना चाहिए, न्याय की नज़र में सब बराबर हैं।
वह या यह बात अलग है कि वे चाहें तो पर्ची निकालकर, सिक्का उछालकर, अपनी दो उँगलियों में से एक, किसी बालमन व्यक्ति से पकड़वाकर निर्णय भी ले सकते हैं। हमेशा टॉप गियर में रहने वालों की हर बात लोकतांत्रिक होती है।
- संतोष उत्सुक