By अभिनय आकाश | May 11, 2023
“जाओ और औरंगजेब से कहो कि अगर वह गुरु तेग बहादर को इस्लाम में परिवर्तित कर सकता है, तो वे सभी परिवर्तित हो जाएंगे। अन्यथा उन्हें अकेला छोड़ देना चाहिए।” गुरु तेग बहादुर की आवाज ने कश्मीरी पंडितों को एक अजीब सी राहत दी। ये उस दौर की बात है जब पंडितों को मुगल बादशाह औरंगजेब ने अल्टीमेटम दिया था कि वे इस्लाम कबूल कर लें या मौत का सामना करें। सिखों की बहादुरी की गाथा हम बचपन से किताबों में पढ़ते आए हैं। यहां तक की भारतीय सिनेमा में भी वतन की हिफाजत के लिए सिखों की कुर्बानी को लेकर कई सारी फिल्में भी बन चुकी हैं। लेकिन आज हम आपको निहंग सिखों के बारे में बताएंगे। इसके साथ ही कश्मीरी पंडितों को गुरु तेग बहादुर ने मुगलों से कैसे बचाया इसकी भी कहानी सुनाएंगे।
कश्मीरी पंडितों पर औरंगजेब का अत्याचार, गुरु तेग बहादुर हुए शहीद
औरंगजेब भारत को एक इस्लामिक राष्ट्र बनाना चाहता था और उसने कश्मीरी पंडितों को जबरदस्ती मुसलमान बनने के लिए मजबूर भी किया था। गुरु तेग बहादुर अपने काल में चारो तरफ शांति का पैगाम फैला रहे थे। वहीं औरंगजेब किसी भी धर्म को अपने से ऊपर नहीं देखना चाहता था। हिंदुओं और सिखों के जबरन धर्मांतरण कराए जा रहे थे। मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, हिंदू और सिख महिलाों के साथ बलात्कार और अत्याचार हो रहे थे। तब कश्मीरी पंडितों ने गुरु तेग बहादुर से मदद मांगी थी। गुरु तेग बहादुर ने उन्हें सुरक्षा का पूरा भरोसा दिया। इस पर औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को बंदी बना लिया। गुरु तेग बहादुर को मुसलमान बनाने के लिए लालच से लेकर मौत का डर तक दिया गया लेकिन उन्होंने औरंगजेब की बात स्वीकार नहीं की। पहले उनके साथियों को उनकी आंखों के सामने मौत के घाट उतार दिया गया, ताकि उन्हें इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया जा सके और जब गुरु अपने धर्म से नहीं हटे, तो उनका खुद का सिर कलम कर दिया गया। औरंगजेब ने फरमान दिया कि गुरु तेग बहादुर का कोई भी अंतिम संस्कार नहीं करेगा।
अपने पिता की शहादत का वर्णन करते हुए गुरु गोबिंद सिंह दशम ग्रंथ में लिखते हैं:-
उन्होंने हिंदुओं के माथे के निशान और पवित्र धागे की रक्षा की। इसने कलियुग में एक महान घटना को चिह्नित किया। संतों की खातिर उन्होंने बिना आह भरते ही अपना सिर कलम करा लिया। धर्म के लिए, उन्होंने खुद को बलिदान कर दिया। उन्होंने अपना सिर तो कटाया लेकिन अपना पंथ नहीं।
छोटे साहिबजादे को दीवार में चुनवा दिया गया
गुरु गोबिंद सिंह के दो सबसे छोटे बेटे छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह जिन्हें मुस्लिम बनने से इनकार करने पर सरहिंद के मुगल फौजदार वजीर खान के आदेश पर जिंदा दीवार के अंदर चुनवा दिया गया था। उस समय जोरावर सिंह 9 वर्ष के थे, और फतेह सिंह केवल 7 वर्ष के थे। उन्हें जिंदा दीवार से चुनवाए जाने के तुरंत बाद, उनकी दादी गुजरी (गुरु गोबिंद सिंह की मां) की मौत हो गई थी। गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब उस स्थान पर खड़ा है जहां दो साहिबजादों को 12 दिसंबर, 1705 को क्रूर हत्या की गई थी।
निहंग का अर्थ क्या है?
सिखों के समुदाय के बीच स्वभाव से आक्रामक और हथियार रखने वाले इस विशेष तबके के सिखों को निहंग सिख कहा जाता है। निहंग का फारसी भाषा में अर्थ होता है मगरमच्छ। सिखों का ये विशेष समूह योद्धाओं के रूप में माना जाता है। इनकी बहादुरी इस रूप में विख्यात होती है कि कोई भी फर्ज इन्हें लड़ाई करने से रोक नहीं सकता। अपने आक्रामक रुख की वजह से ये दुनिया भर में जाने जाते हैं। निहंग सिखों के दस गुरुओं के आदेशों का पूर्ण रूप से पालन करते हैं और लड़ने की प्रेरणा से ओत प्रोत रहते हैं। माना जाता है कि दस गुरुओं के काल में ये सिख गुरु साहिबानों के प्रबल प्रहरी हुआ करते थे। तभी से धर्म की रक्षा की भावना इनके अंदर कूट कूट कर भरी हुई है।
कौन होते हैं निहंग सिख?
निहंग सिखों को ऐसा लड़ाका बनाने का श्रेय सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह को जाता है। गुरु गोविंद सिंह के चार बेटे थे। अजित सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह। माना जाता है कि एक बार तीन बड़े भाई आपस में युद्ध का अभ्यास कर रहे थे और इसी दौरान सबसे छोटे फतेह सिंह वहां पहुंचे। उन्होंने युद्ध की कला सीखने की इच्छा जताई। इस पर बड़े भाइयों ने उनसे कहा कि अभी आप छोटे हैं और जब बड़े हो जाओगे तब ये सीख लेना। कहा जाता है कि अपने तीनों बड़े भाइयों की इस बात पर फतेह सिंह नाराज हो गए। वो घर के अंदर गए और नीले रंग का लिबास पहन, सिर पर एक बड़ी सी पगड़ी बांधी और हाथों में तलवार और भाला लेकर पहुंच गए। उन्होंने अपने भाइयों से कहा कि वो लंबाई में तीनों के बराबर हो गए हैं। गुरु गोविंद सिंह ये सब देख रहे थे। वो फतेह सिंह की बहादुरी से बहुत प्रभावित हुए। फतेह सिंह ने अपने बड़े भाइयों की बराबरी करने के लिए जो चोला पहना था, वहीं आज के निहंग सिख पहनते हैं। फतेह सिंह ने जो हथियार उठाया था, आज भी निहंग सिख उसी हथियार के साथ दिखते हैं।
राम जन्मस्थान में निहंग सिख
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से साल 2019 में रामलला के नाम जमीन के हक पर हस्ताक्षर के साथ ही अयोध्या में प्रभु राम का भव्य और दिव्य मंदिर बनेगा। राम मंदिर आंदोलन में सिखों का बहुत बड़ा योगदान है। बाबरी मस्जिद के अधीक्षक की शिकायत पर अवध के थानेदार (पुलिसकर्मी) द्वारा लिखी गई 30 नवंबर, 1858 की एक प्राथमिकी के अनुसार 25 निहंग सिखों ने बाबरी मस्जिद के ढांचे में प्रवेश किया था। प्राथमिकी में कहा गया है कि निहंग वहां हवन और अन्य धार्मिक अनुष्ठान करने लगे। इसमें आगे कहा गया है कि उन्होंने मस्जिद की दीवारों पर कोयले के साथ "राम! राम चारो ओर लिखा। रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदुओं की भगवान के जन्मस्थान तक पहुंच थी। जन्मस्थान मस्जिद के बाहर लेकिन एक ही परिसर के भीतर है, और वे लंबे समय से वहां जा रहे थे। अब हिंदुओं ने मस्जिद में प्रवेश किया और वहां भी पूजा करने लगे। कथित तौर पर, थानेदार को बाबरी मस्जिद से निहंग सिखों को निकालने में कुछ सप्ताह लग गए। यह दस्तावेज़ इस बात का एक बड़ा सबूत साबित हुआ कि मुस्लिम पार्टियों के पास संरचना का विशेष स्वामित्व नहीं था। यह अयोध्या का एक ठोस ऐतिहासिक दस्तावेज है जिसमें कहा गया है कि हिंदू सिर्फ परिसर के अंदर ही नहीं, बल्कि मस्जिद के अंदर भी थे। दस्तावेज़ ने इस तर्क को धराशायी कर दिया कि हिंदुओं की कभी भी मस्जिद तक पहुंच नहीं थी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में जिक्र
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पेज संख्या 799 में 'मस्जिद परिसर से निहंग सिंह फकीर का सबूत' नामक उप शीर्षक को दर्ज किया गया है। जिसमें लिखा है कि 28 नवंबर 1858 को अयोध्या के तत्कालीन थानेदार थानेदार शीतल दुबे ने एक आवेदन दायर किया जिसमें कहा गया था कि पंजाब के रहने वाले निहंग सिंह फकीर खालसा ने मस्जिद परिसर के भीतर गुरु गोविंद सिंह के हवन और पूजा का आयोजन किया और परिसर के भीतर श्री भगवान का प्रतीक बनाया।
सैयद मोहम्मद खतीब ने अपनी रिपोर्ट में लिखा-
निहंग सिंह मस्जिद में दंगा पैदा कर रहे थे।
उन्होंने मस्जिद के अंदर जबरन चबूतरा बनाया था, मस्जिद के अंदर मूर्ति रखी, आग जलाई और पूजा की। उन्होंने मस्जिद की दीवारों पर कोयले के साथ राम राम शब्द लिखे।
मस्जिद मुसलमानों की पूजा का स्थान है, न कि हिंदुओं का। अगर कोई इसके अंदर जबरन किसी चीज का निर्माण करता है, तो उसे दंडित किया जाना चाहिए।
इससे पहले भी बैरागियों ने लगभग 22.83 सेंटीमीटर के रामचबूतरा का निर्माण रातोंरात किया था, जब तक कि निषेधाज्ञा आदेश जारी नहीं किए गए थे।