Skanda Sashti 2025: पौष स्कंद षष्ठी व्रत से सभी मनोकामनाएं होती हैं पूरी

By प्रज्ञा पाण्डेय | Jan 04, 2025

आज पौष स्कंद षष्ठी व्रत है, इस दिन कार्तिकेय की पूजा करने का विधान है। हिन्दू धर्म में स्कंद षष्ठी पर्व का बहुत अधिक महत्व होता है, इस व्रत से जीवन में आने वाली परेशानियों से छुटकारा मिलता है और घर में सुख-समृद्धि में बनी रहती है, तो आइए हम आपको पौष स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 


जानें पौष स्कंद षष्ठी के बारे में 

हिंदू धर्म में स्कंद षष्ठी का व्रत अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है। हिंदू धर्म में स्कंद षष्ठी का व्रत अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव के बड़े पुत्र यानी भगवान कार्तिकेय की पूजा-अर्चना का विधान है। भगवान कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति माना जाता है। विशेष रूप से भगवान कार्तिकेय की पूजा दक्षिण भारत में की जाती है। 

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पौष स्कंद षष्ठी व्रत का शुभ मुहूर्त

वैदिक पंचांग के अनुसार, पौष माह की शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि का आरंभ 4 जनवरी की रात 10:00 बजे होगा और इसका समापन 5 जनवरी को रात 8:15 बजे होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, स्कंद षष्ठी का व्रत 5 जनवरी को रखा जाएगा।


पौष स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व

भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से व्यक्ति को जीवन की समस्याओं से मुक्ति मिलती है। साथ ही व्यक्ति को अमोघ फल की प्राप्ति होती है। भगवान कार्तिकेय की पूजा और व्रत संतान सुख की प्राप्ति के लिए विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है। भगवान कार्तिकेय की कृपा से रोगों से मुक्ति, सुख-समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। स्कंद षष्ठी व्रत का पालन न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि भक्तों को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता का आशीर्वाद भी मिलता है।


पौष स्कंद षष्ठी के दिन शुभ योग का हो रहा है निर्माण

पंडितों के अनुसार पौष माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन रवि योग बन रहा है। इस योग का संयोग सुबह 07 बजकर 15 मिनट से हो रहा है और इसका समापन रात 08 बजकर 18 मिनट तक है। साथ ही सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग पूरी रात रहने वाला है। उसके बाद त्रिपुष्कर योग और अभिजीत मुहूर्त हैं।

इस दिन शिवावास योग रात 08 बजकर 18 मिनट तक रहने वाला है। इस दौरान विधिवत रूप से कार्तिकेय भगवान की पूजा-अर्चना कर सकते हैं।


पौष स्कंद षष्ठी के दिन ऐसे करें पूजा, मिलेगा लाभ 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पौष स्कंद षष्ठी का व्रत बहुत खास होता है। सबसे पहले सुबह उठें और पवित्र स्नान करें। अपने घर और मंदिर को साफ करें। भगवान के लिए घर पर ही प्रसाद तैयार करें। एक चौकी पर भगवान कार्तिकेय की तस्वीर स्थापित करें। उन्हें गंगाजल से स्नान करवाएं। चंदन का तिलक लगाएं और पीले फूलों की माला अर्पित करें। देसी घी का दीपक जलाएं। ऋतु फल और घर पर बने प्रसाद का भोग लगाएं। स्कंद भगवान के मंत्रों का जाप करें। साथ ही आरती से पूजा को पूरी करें। इस दिन तामसिक कार्यों से दूर रहें। गरीबों को दान-दक्षिणा दें। साथ ही प्रसाद से अगले दिन व्रत का पारण करें। सबसे पहले पूजा करने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। साथ ही स्कंद षष्ठी की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे जल, दूध, दही, घी, शहद, शक्कर, चंदन, अक्षत, फूल, धूप, दीपक, नैवेद्य आदि एकत्रित करें। भगवान कार्तिकेय के सामने घी का दीपक जलाएं। भगवान कार्तिकेय को गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अभिषेक करें। भगवान को चंदन और अक्षत अर्पित करें।


इसके अलावा भगवान को फूल अर्पित करें और कमल का फूल चढ़ाना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। भगवान को फल, मिठाई या अन्य नैवेद्य अर्पित करें। भगवान कार्तिकेय के ॐ षडाननाय नमः, ॐ स्कन्ददेवाय नमः, ॐ शरवणभवाय नमः, ॐ कुमाराय नमः मंत्रों का जाप करें। भगवान कार्तिकेय की आरती करें और स्कंद षष्ठी की व्रत कथा का पाठ करें। पूजा के दौरान मन को शांत रखें और भगवान कार्तिकेय के प्रति श्रद्धाभाव रखें। पूजा के समय किसी भी प्रकार का विवाद या झगड़ा न करें और व्रत के दौरान मांस-मदिरा का सेवन न करें।


पौष स्कंद षष्ठी पर इन मंत्रों से करें पूजा 

- ॐ तत्पुरुषाय विधमहे: महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कंदा प्रचोदयात।।

- देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव। कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥

- ॐ शारवाना-भावाया नम: ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा देवसेना मन: कांता कार्तिकेया नामोस्तुते।।


पौष स्कंद षष्ठी से जुड़ी पौराणिक कथा 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष के यज्ञ में माता सती के भस्म होने के बाद भगवान शिव वैरागी हो गए और वे तपस्या में लीन हो गए, जिससे सृष्टि शक्तिहीन हो गई थी। इसके बाद दैत्य तारकासुर ने देवलोक में अपना आतंक फैला दिया और देवताओं की पराजय हुई। धरती हो या स्वर्ग सब जगह अन्याय और अनीति का बोलबाला हो गया। इससे देवताओं ने तारकासुर के अंत के लिए ब्रह्माजी से प्रार्थना की। इस पर ब्रह्माजी ने बताया कि शिव पुत्र ही तारकासुर का अंत कर सकेगा। तब सभी देवताओं और इंद्र ने शिवजी को समाधि से जगाने का प्रयत्न किया और इसके लिए उन्होंने भगवान कामदेव की भी मदद ली थी। कामदेव अपने बाण से शिव पर फूल फेंकते हैं, जिससे उनके मन में माता पार्वती के लिए प्रेम की भावना विकसित हो। इससे शिवजी की तपस्या भंग हो जाती हैं और वे क्रोध में आकर अपनी तीसरी आंख खोल देते हैं। इससे कामदेव भस्म हो जाते हैं. तपस्या भंग होने के बाद वे माता पार्वती की तरफ खुद को आकर्षित पाते हैं।


जब इंद्र और अन्य देवता भगवान शिव को अपनी समस्या बताते हैं। तब भगवान शिव पार्वती के अनुराग की परीक्षा लेते हैं, पार्वती की तपस्या के बाद शुभ घड़ी में शिव पार्वती का विवाह होता है। इसके बाद कार्तिकेय का जन्म होता है और सही समय पर कार्तिकेय तारकासुर का वध कर देवताओं को उनका स्थान दिलाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिकेय का जन्म षष्ठी तिथि पर हुआ था, इसलिए षष्ठी तिथि पर कार्तिकेय की पूजा की जाती है।


स्कंद षष्ठी के दिन ये दान करें, मिलेगा लाभ 

शास्त्रों के अनुसार स्कंद षष्ठी पर दान का खास महत्व होता है। फल दान करने से स्वास्थ्य लाभ होता है और देवता प्रसन्न होते हैं। दूध दान करने से ज्ञान और बुद्धि में वृद्धि होती है। दही दान करने से आयु और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। गरीबों को अनाज दान करने से अन्नपूर्णा की कृपा प्राप्त होती है। जरूरतमंदों को वस्त्र दान करने से पापों का नाश होता है। धन दान करने से धन में वृद्धि होती है। ब्राह्मणों को भोजन कराने से पितृ दोष दूर होता है।


- प्रज्ञा पाण्डेय

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