आज मातृ नवमी है, पितृपक्ष में नवमी तिथि के श्राद्ध को विशेष स्थान दिया गया है। इस दिन दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध करने का विधान है, इसलिए इसे मातृ नवमी के नाम से भी जाना जाता है तो आइए हम आपको मातृ नवमी व्रत की विधि और महत्व के बारे में बताते हैं।
जानें मातृ नवमी के बारे में
पितृ पक्ष में वैसे तो हर तिथि का विशेष महत्व है लेकिन आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि का महत्वपूर्ण मानी जाती है, इस तिथि को मातृ नवमी या मातृ श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। इस बार मातृ नवमी का श्राद्ध कर्म 26 सितंबर दिन गुरुवार किया जाएगा। इस दिन माताओं, महिलाओं, मृत बेटियों का श्राद्ध करना बहुत शुभ माना जाता है। साथ ही इस दिन उन लोगों का श्राद्ध कर्म किया जाता है, जिनकी मृत्यु नवमी तिथि को हुई हो।
मातृ नवमी की तिथि
मातृनवमी तिथि आरंभ: 25 सितंबर, दिन बुधवार, दोपहर 12 बजकर 10 मिनट
मातृनवमी तिथि समापन: 26 सितंबर, दिन गुरुवार, दोपहर 12 बजकर 25 मिनट
ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, मातृ नवमी 26 सितंबर के दिन मनाई जानी चाहिए।
हालांकि तिथि क्षय के कारण मातृनवमी के दिन श्राद्ध कर्म 26 सितंबर का होगा।
मातृ नवमी पर श्राद्ध का मुहूर्त
मातृनवमी के दिन अपराह्न काल में माता, बहन, बहु, बेटी आदि का श्राद्ध होता है।
ऐसे में श्राद्ध कर्म का मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 10 मिनट से 3 बजकर 35 मिनट है।
यानी कि पूजा और तर्पण आदि के लिए कुल अवधि है, 2 घंटे और 25 मिनट।
मातृ नवमी व्रत में होती है सिद्धिदात्री माता की पूजा
पंडितों के अनुसार मातृ नवमी का श्राद्ध करने से कुल वंश में वृद्धि होती है और दिवंगत महिलाओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। नवमी तिथि माता दुर्गा के नौवें स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना की जाती है इसलिए इस तिथि को अक्षय फल देने वाली कही जाती है। चैत्र माह की नवमी तिथि को भगवान राम का जन्म भी हुआ था इसलिए नवमी तिथि को दिवंगत माताओं, बहनों व बेटियों का श्राद्ध किया जाता है। मातृ नवमी के दिन पीपल के पेड़ के पास दीपक जलाकर पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना भी कर सकते हैं। नवमी तिथि इस बात का खास ध्यान रखें कि इस दिन लौकी की सब्जी ना खाएं और ना खिलाएं। इस दिन महिला पितरों को याद करते हुए उनके नाम का दान अवश्य करना चाहिए।
मातृ नवमी पर ये करें, मिलेगा लाभ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मातृ नवमी के दिन ब्राह्मण भोज के अलावा गरीब व जरूरतमंद लोगों को भी भोजन अवश्य कराना चाहिए, ताकि सभी मातृ शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त हो सके। इस दिन घर की महिलाओं को स्वच्छ वस्त्र पहनकर घर के बाहर रंगोली बनानी चाहिए और घर के दक्षिण दिशा में पितरों की पूजा अर्चना करें और तुलसी की पत्तियां अर्पित करें। साथ ही आटे का बड़ा दीपक बनाकर तिल के तेल का दीपक जलाएं। श्राद्ध कर्ता को इस दिन भगवत गीता के नवें अध्याय का पाठ भी करना चाहिए। महिला पितरों का श्राद्ध कर्म दोपहर के 12 बजे के आसपास करना चाहिए।
मातृ नवमी का महत्व
पितृपक्ष में पड़ने वाली हर तिथि का अपना महत्व है लेकिन मातृ नवमी का अपना विशेष महत्व है इसलिए इस तिथि को सौभाग्यवती श्राद्ध तिथि भी कहा जाता है। जीते जी मां परिवार की खुशहाली के लिए हर संभव प्रयास करती है। ऐसे में मातृ नवमी पर दिवंगत माता को याद करते हुए श्राद्ध करने से सभी कष्ट दूर होते हैं, उनकी कृपा से घर फलता फूलता है। मातृ नवमी की तिथि के रोज दिवंगत माताओं, बहुओं और सुहागिन स्त्रियों का पिंडदान होता है। इसी कारण इसे मातृ नवमी श्राद्ध कहते हैं। मातृ नवमी पर माताओं के श्राद्ध से परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है। साथ ही घर की महिलाओं के इस दिन पूजा-पाठ और व्रत से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। दिवंगत माताओं के श्राद्ध से उन्हें भी खुशी मिलती है।
मातृ नवमी पर इस विधि से करें श्राद्ध, मिलेगा पुण्य
पंडितों के अनुसार सुबह जल्दी स्नान कर दोपहर में दक्षिण दिशा में चौकी पर सफेद आसन बिछाएं। मृत परिजन की फोटो रख माला पहनाएं और गुलाब के फूल चढ़ाएं। फोटो के सामने तेल का दीपक जलाएं, उसमें काले तिल डालें। अब विधि विधान से श्राद्ध क्रिया संपन्न करें। इस दिन भूलकर भी किसी महिला का अपमान न करें, घर आए मेहमान, पशु-पक्षी को बिना अन्न-जल जाने के लिए न कहें। जिन विवाहित महिलाओं की मृत्यु नवमी तिथि को हुई हो या जिन महिलाओं की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, उनका श्राद्ध इस दिन पूरे विधि-विधान से किया जाता है। मातृ नवमी माता के श्राद्ध का शास्त्रीय विधान है। इस तिथि पर पुत्रवधू स्त्रियों को भोजन कराना पुण्यकारी होता है।
मातृ नवमी के दिन गरूड़ पुराण और गीता पाठ से होता है लाभ
मातृ नवमी के रोज गरुड़ पुराण या श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करना बहुत शुभ होता है। इस कारण पूजन के समय इनका पाठ करें और उसके बाद उन्हें भोज दें। श्राद्ध के बाद मृत परिजन के लिए भोजन का अंश जरूर निकालें। इस दिन गाय, कौआ, चींटी, चिड़िया और ब्राह्मण को भी भोजन कराना चाहिए. तभी श्राद्ध पूर्ण माना जाएगा। जिस प्रकार पितृ पक्ष में पुत्र अपने पिता, पिता, पूर्वज आदि के लिए तर्पण करते हैं, उसी प्रकार उन घरों के पुत्र-वधू भी अपनी देवतुल्य सास, माता आदि के लिए प्रतिप्रदा से लेकर प्रतिप्रदा तक तर्पण कार्य करते हैं। नवमी. नवमी के दिन महिलाएं आत्मशांति के लिए देवी मां और सास को ब्राह्मण को दान देकर उन्हें संतुष्ट करती हैं। पंडितों का मानना है कि मातृ नवमी के दिन मृत स्त्रियों को प्रणाम करने, भोजन कराने, दान-पुण्य करने और सुहाग की सामग्री चढ़ाने से सुहागन का आशीर्वाद बना रहता है।
अनुष्ठानों में, हिंदू देवताओं के बजाय धुरीलोचन जैसे देवताओं का आह्वान किया जाता है जिनकी आंखें आधी बंद रहती हैं। धुरी का अर्थ है धुआं और लोचन का अर्थ है आंखें; धुएं के कारण उनकी आंखें आधी बंद रहती हैं। कुछ क्षेत्रों में इस दिन श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है। इसके बजाय विवाहित महिला की आत्मा को भोजन या भोजन अर्पित किया जाता है। कुछ लोग इस दिन सुमंगली (विवाहित महिला) को भी खाना खिलाते हैं।
- प्रज्ञा पाण्डेय