By डॉ. वेदप्रताप वैदिक | Jul 21, 2021
हमारी संसद के दोनों सदन पहले दिन ही स्थगित हो गए। जो नए मंत्री बने थे, प्रधानमंत्री उनका परिचय भी नहीं करवा सके। विपक्षी सदस्यों ने सरकारी जासूसी का मामला जोरों से उठा दिया है। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि वह देश के लगभग 300 नेताओं, पत्रकारों और जजों आदि पर जासूसी कर रही है। इन लोगों में दो केंद्रीय मंत्री, तीन विरोधी नेता, 40 पत्रकार और कई अन्य व्यवसायों में लगे लोग भी शामिल है। यह जासूसी इस्राइल की एक प्रसिद्ध कंपनी के सॉफ्टवेयर ‘पेगासस’ के माध्यम से होती है।
आरोप है कि इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके सरकार देश के महत्वपूर्ण लोगों के ई-मेल, व्हाट्साप और संवाद सुनती है। यह रहस्योद्घाटन सिर्फ भारत के बारे में ही नहीं हुआ है। इस तरह के सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल 40 देशों की संस्थाएं कर रही हैं। यह जासूसी लगभग 50,000 लोगों पर की जा रही है। इस सॉफ्टवेयर को बनाने वाली कंपनी एनएसओ ने दावा किया है कि वह अपना यह माल सिर्फ संप्रभु सरकारों को ही बेचती है ताकि वे आतंकवादी, हिंसक, अपराधी और अराजक तत्वों पर निगरानी रख सकें। इस कंपनी के रहस्यों का भांडाफोड कर दिया फ्रांस की कंपनी ‘फारबिडन स्टोरीज़’ और ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ ने। इन दोनों संगठनों ने इसकी भांडाफोड़ खबरें कई देशों के प्रमुख अखबारों में छपा दी हैं।
भारत में जैसे ही यह खबर फूटी तहलका-सा मच गया। विरोधी नेताओं ने सरकार पर हमला बोलना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा है कि इस घटना से यह सिद्ध हो गया है कि मोदी-राज में भारत ‘पुलिस स्टेट’ बन गया है। सरकार अपने मंत्रियों तक पर जासूसी करती है और पत्रकारों पर जासूसी करके वह लोकतंत्र के चौथे खंबे को खोखला कर रही है। सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया है। उसने कहा है कि पिछले साल भी ‘पेगासस’ को लेकर ऐसे आरोप लगे थे, जो निराधार सिद्ध हुए थे। नए सूचना मंत्री ने संसद को बताया कि किसी भी व्यक्ति की गुप्त निगरानी करने के बारे में कानून-कायदे बने हुए हैं। सरकार उनका सदा पालन करती है। पेगासस संबंधी आरोप निराधार हैं। यहां असली सवाल यह है कि इस सरकारी जासूसी को सिद्ध करने के लिए क्या विपक्ष ठोस प्रमाण जुटा पाएगा ? यदि ठोस प्रमाण मिल गए और सरकार-विरोधी लोगों के नाम उनमें पाए गए तो सरकार को लेने के देने पड़ सकते हैं। इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की हत्या की संज्ञा दी जाएगी। यों तो पुराने राजा-महाराजा और दुनिया की सभी सरकारें अपना जासूसी-तंत्र मजबूती से चलाती हैं लेकिन यदि उसकी पोल खुल जाए तो वह जासूसी-तंत्र ही क्या हुआ ? जहां तक पत्रकारों और नेताओं का सवाल है, उनका जीवन तो खुली किताब की तरह होना चाहिए। उन्हें जासूसी से क्यों डरना चाहिए ? वे जो कहें और जो करें, वह खम ठोक कर करना चाहिए।
-डॉ. वेदप्रताप वैदिक