लाखों लोगों की पसंद अकबर इलाहाबादी मुख्य रूप से हास्य और व्यंग के शायर माने जाते हैं। लेकिन अपनी शायरी से लोगों को गुदगुदी कर लोगों को हंसाने वाले अकबर एक तर्कशील इंसान भी थे। आज उस मशहूर शायर का जन्म दिन है तो आइए हम उनकी जिंदगी के कुछ पहलुओं से रूबरू कराते हैं।
जानें अकबर इलाहाबादी के बारे में
अकबर इलाहाबादी मशहूर शायर होने के साथ एक मिलनसार और शानदार इंसान थे। उनकी हास्य कविताएं ही उनकी पहचान थी। रचना की कोई भी विधा चाहे वह गजल, नजम, रुबाई या क़ित हो सभी का अंदाज निराला था। शायर होने के साथ ही अकबर इलाहाबादी एक समाज सुधारक भी थे। जीवन के विविध पहलूओं पर व्यग्यं करना उनकी कविताओं की विशेषता थी।
इसे भी पढ़ें: भगवान बिरसा मुंडा ने आदिवासी जनजीवन, अस्मिता और अस्तित्व को बचाया
'अकबर’ इलाहाबादी हास्य और व्यंग के कवि माने जाने जाते हैं। लेकिन हास्य-व्यंग के अलावा ‘अकबर’ की पूरी शायरी में एक गहरा सामाजिक और सांस्कृतिक उद्देश्य भी रखती है। अकबर ने हास्य और व्यंग्य को अपनी अभिव्यक्ति का जरिया बनाया था।
अकबर इलाहाबादी का बचपन और कॅरियर
अकबर इलाहाबादी का पूरा नाम सैयद अकबर हुसैन था। उनका जन्म इलाहाबाद के पास बारा नाम के जगह 16 नंवबर 1846 में एक सम्मानजनक परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सैयद तफ्फज़ुल हुसैन था। उनकी शुरूआती शिक्षक घर पर ही हुई थी। उसके बाद 15 साल की उम्र में उनकी शादी हो गयी। उन्होंने दो शादी की थी। दोनों पत्नियों से दो-दो पुत्र पैदा हुए। उसके बाद उन्होंने वकालत किया। वकालत करने के बाद उन्होंने अर्ज़ी-नवीस की नौकरी की। उसके बाद नौकरी करते हुए उन्होंने पढ़ाई की बाद में सेशन जज बनें।
वैसे तो अकबर एक आशावादी कवि थे लेकिन जीवन में आने वाली तरह-तरह की परेशानियों ने उन्हें मुश्किलों में डाल दिया। बहुत ही कम उम्र में बेटे और पोते के मौत उन्हें बहुत निराश किया और जीवन के अंत में धार्मिक हो गए। अंत में 75 साल की उम्र में 1921 में शायर का निधन हो गया।
शायर की कुछ बातें
हालांकि अकबर इलाहाबादी उन्नीसवीं सदी की पुरातनपंथी विचारधारा के समर्थक थे लेकिन उन्हें रस्मो-रिवाज, तहज़ीब, बड़ों का सम्मान, स्त्रियों द्वारा घर सम्भालना और पवित्र संस्कृति को पसंद करते थे। साथ ही वह मानते थे कि अंग्रेज तरक्की के नाम पर हमारी संस्कृति को नुकसान पहुंचा रहे हैं। उनका मानना था कि अंगेज़ी तालीम हमें अपने धर्म, संस्कृति और अपनी पहचान से दूर कर रही है। इसकी तालीम से देश के युवाओं को कोई फायदा नहीं होगा बल्कि वह बुजुर्गों का सम्मान करना नहीं सीख पाएंगे। इस नयी तालीम ने भारतीय युवाओं को अपनी ही पीढ़ी में बेगाना कर दिया है।
इसे भी पढ़ें: भूदान आंदोलन के लिए जाने जाते हैं विनोबा भावे
प्रगतिशील सोच के थे अकबर इलाहाबादी
अकबर इलाहाबादी अंग्रेजी शिक्षा के विरोधी जरूर थे लेकिन वह स्त्री-शिक्षा के विरोधी नहीं थे लेकिन वो चाहते थे कि लड़कियां पढ़-लिखकर देशभक्त, कुशल गृहिणी, अच्छी बीबी पत्नी और अच्छी माँ बने। वह लड़कियों के फैशन को बहुत अच्छा नहीं मानते थे। उनका मानना था कि फैशन और सजने-धजने से ज्यादा जरूरी तालीम हासिल करना है।
साथ ही अकबर इलाहाबादी पर्दा प्रथा के बहुत समर्थक थे। वह मानते थे कि स्त्रियों को परदे के अंदर रहकर अपने अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए। लेकिन वह यह जानते थे कि एक दिन विकास के साथ पर्दा प्रथा का भारत से अंत जरूर हो जाएगा।
प्रज्ञा पाण्डेय