By अभिनय आकाश | Jun 27, 2022
महाराष्ट्र में तेजी से घटनाक्रम बदल रहा है। सूत्रों के अनुसार आज के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त दिख रही है। राज्यपाल कोश्यारी स्वत: संज्ञान लेते हुए खुद भी उद्धव सरकार को फ्लोर टेस्ट के लिए कह सकते हैं। महाराष्ट्र के मौजूदा परिदृश्य में अचानक से विधानसभा उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल की भूमिका बेहद अहम हो गई है। नरहरि जिरवाल विधानसभा के उपाध्यक्ष हैं। महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष पद से नाना पटोले ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद से ये पद खाली पड़ा हुआ है।
हालांकि, दो साल बाद शिवसेना और शिवसेना के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी सरकार में अभूतपूर्व उथल-पुथल के बीच, शिवसेना के विद्रोहियों के साथ-साथ भाजपा को भी इस बात पर संदेह हो रहा है कि क्या ज़ीरवाल उन बागी विधायकों की निष्पक्ष सुनवाई करेंगे, जिन्हें उन्होंने अयोग्यता नोटिस जारी किया गया है। जिसके बाद सभी की निगाहे महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे के लीड प्लेयर 63 वर्षीय आदिवासी नेता जिरवाल पर टिकी है। नासिक जिले के डिंडोरी से तीन बार राकांपा विधायक जिरवाल ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत 1980 के दशक में नासिक में जनता दल के एक कार्यकर्ता के रूप में की थी। जनता दल का तब जनजातीय क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण समर्थन आधार था। ज़िरवाल ने बाद में चुनावी राजनीति में कदम रखा और जनता दल के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी के टिकट पर स्थानीय पंचायत समिति में दो बार जीत हासिल की।
बाद में वह राकांपा में शामिल हो गए और 2004 में पहली बार डिंडोरी निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा चुनाव जीते। वह 2009 का चुनाव शिवसेना के एक उम्मीदवार से सिर्फ 149 मतों से हार गए थे। उपमुख्यमंत्री और राकांपा के वरिष्ठ नेता अजित पवार के करीबी माने जाने वाले जिरवाल ने भी एनसीपी के टिकट पर दो बार लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन जीतने में असफल रहे। कृषि और आदिवासी मुद्दों की अच्छी समझ रखने वाले मृदुभाषी, ज़िरवाल नवंबर 2019 में अजीत पवार द्वारा किए गए एक असफल तख्तापलट के मद्देनजर सुर्खियों में आए थे। जब उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस के साथ हाथ मिला लिया था। ज़िरवाल उन राकांपा विधायकों में से थे, जो अजीत पवार के साथ राजभवन में गुप्त सुबह शपथ ग्रहण समारोह के लिए गए थे। जिसके बाद फडणवीस को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सीएम के रूप में और अजीत को उनके डिप्टी के रूप में शपथ दिलाई थी। हालांकि, जिरवाल जल्द ही गुड़गांव के होटल से लौट आए थे, जहां उन्हें अन्य विधायकों के साथ रखा गया था और शरद पवार के नेतृत्व वाले राकांपा खेमे में फिर से शामिल हो गए थे।
बाद में इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए जिरवाल ने कहा था कि मेरे माता-पिता के बाद, शरद पवार ही हैं जिन्होंने मेरे जीवन में एक रचनात्मक भूमिका निभाई है। मैं उसे धोखा नहीं दे सकता। जब हमें महाराष्ट्र में गड़बड़ी का एहसास हुआ, तो मैंने और पार्टी के अन्य विधायकों ने बात की और वापस जाने का फैसला किया। शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस के सहयोग से महाराष्ट्र में एमवीए सरकार बनने के लगभग चार महीने बाद, ज़िरवाल को राज्य विधानसभा के उपाध्यक्ष के रूप में निर्विरोध चुना गया। फरवरी 2021 में कांग्रेस नेता नाना पटोले के अपने पद से इस्तीफा देने और राज्य कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद विधानसभा अध्यक्ष का पद खाली हो गया। तत्पश्चात, महाराष्ट्र विधान सभा नियम, 1960 के नियम 9 के अनुसार, उपाध्यक्ष ज़ीरवाल ने सदन में अध्यक्ष के कर्तव्यों का निर्वहन करना शुरू कर दिया।
विधानसभा अध्यक्ष के पद के लिए चुनाव अब तक नहीं हुआ है। इसने ज़िरवाल को राज्य में चल रहे राजनीतिक नाटक में एक प्रमुख खिलाड़ी बना दिया है। बागी मंत्री एकनाथ शिंदे ने नरहरि जिरवाल को अपने 37 विधायकों की लिस्ट सौंपी है। गुरुवार को देर से यह लिस्ट सौंपी गई। इसमें दो प्रस्तावों को भी जोड़ा गया है। इसमें कहा गया है कि शिंदे शिवसेना विधायक दल के प्रमुख बने रहेंगे।इसके उलट शिवसेना ने 16 विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए डिप्टी स्पीकर को पत्र लिखा है। पार्टी और विधायकों के बीच दरारें गहरी हो गई है। शिवसेना ने एकनाथ शिंदे को चीफ व्हिप पद से हटा दिया है। उनकी जगह पर अजय चौधरी को नया चीफ व्हिप बनाया गया है। अगर एकनाथ शिंदे अपने गुट की अलग मान्यता के लिए आवेदन करते हैं, तो उनका आवेदन नरहरि जिरवाल के पास ही आएगा और वे इस पर फ़ैसला लेंगे। इसके अलावा अगर जिरवाल ने अलग गुट को मान्यता दी तो उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास आघाड़ी सरकार गिर सकती है। जिरवाल अगर शिंदे गुट को मान्यता नहीं देते हैं तो यह मामला अदालत में जाएगा। अगर उद्धव ठाकरे सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास होता है तो सदन की कार्यवाही चलाने की जिम्मेदारी जिरवाल पर होगी और ऐसे में उनकी भूमिका अहम होगी।