आम चुनाव के नतीजों की उलटी गिनती शुरू हो गई है। अगर नतीजे एक्जिट पोल जैसे ही रहते हैं तो मोदी का प्रधानमंत्री बनना तय है। यूं तो हर जीत का सेहरा सेनापति के ही सेहरे पर बंधता है। नरेंद्र मोदी बीजेपी के हरावल दस्ते के अगुआ हैं, इसलिए नि:संदेह मौजूदा जीत उनकी ही होगी। लेकिन इस जीत के बीजेपी की ओर से कई और नायक भी हैं। मोदी और अमित शाह की जोड़ी को भारतीय राजनीति की सबसे सफल जोड़ी की प्रतिष्ठा हासिल हो चुकी है। जाहिर है कि इस जीत के नायक अमित शाह भी हैं। लेकिन बीजेपी के तीसरी बार सत्तारोहण में एक और शख्स की मेहनत भी शामिल है। ये शख्स हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ।
अठारहवीं लोकसभा के चुनाव को लेकर बीजेपी ने जबरदस्त मेहनत की। उसने बेहतर रणनीति बनाई। चुनावी मैदान पर वोटरों को लुभाने के लिए सबसे ज्यादा मेहनत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। 73 साल की उम्र में उन्होंने कितना पसीना बहाया, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अकेले 206 चुनावी रैलियां की या रोड शो किए। पूर्वोत्तर भारत के कुछ-एक इलाकों को छोड़ दें तो तकरीबन समूचे देश में उन्होंने रैली और रोड शो नहीं किया है। भारत में अगर 64 करोड़ से ज्यादा लोगों ने वोटिंग किया है, उन्हें मतदान केंद्रों तक बुलाने में राजनीतिक दलों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। जिसमें सबसे बड़ी भूमिका प्रधानमंत्री मोदी की रही है। दिलचस्प यह है कि बीजेपी की ओर से लोगों को लुभाने के लिए जिन नेताओं ने मेहनत की है, उनमें दूसरे नंबर पर अगर कोई है तो वे हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। उन्होंने देशभर में करीब 197 रोड शो और रैलियां की हैं। बीजेपी के चुनाव प्रचार में योगी आदित्यनाथ की मांग उत्तर प्रदेश में रहनी थी। वैसे उत्तर प्रदेश में पार्टी को जिताना उनकी जिम्मेदारी भी थी। लेकिन उत्तर प्रदेश के बाहर भी उनकी खूब मांग रही। योगी जी ने उत्तर प्रदेश से बाहर बारह राज्यों उत्तराखंड, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, जम्मू, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, ओडिशा, चंडीगढ़, हरियाणा और दिल्ली जैसे बारह राज्यों में उन्होंने प्रचार किया। योगी को लेकर देश का कथित प्रबुद्ध वर्ग विरोधी भाव रखता है। लेकिन चुनाव अभियान में प्रबुद्ध लोगों को लुभाने के लिए उन्होंने प्रबुद्ध लोगों की पंद्रह सभाओं को भी संबोधित किया।
मौजूदा चुनाव अभियान जैसे शुरू हुआ था, एक अफवाह फैलाई गई कि उत्तर प्रदेश में अगर बीजेपी जीती तो योगी आदित्यनाथ को हटा दिया जाएगा। चुनाव अभियान के दौरान बीजेपी के प्रति क्षत्रिय समुदाय के गुस्से की भी अफवाहें फैलीं। बीजेपी ने शुरू में तो इन अफवाहों पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी। लेकिन बाद में जब पार्टी को लगा कि इस अफवाह का नुकसान हो सकता है तो पार्टी को सामने आना पड़ा। प्रधानमंत्री मोदी को कई सभाओं में योगी की तारीफ करनी पड़ी। अलीगढ़ की सभा में 23 अप्रैल को मोदी ने जो कहा, उससे पार्टी में योगी की महत्ता का अंदाजा लगाया जा सकता है। तब मोदी ने कहा, "जो लोग योगी जी की पहचान सिर्फ बुलडोजर से करते रहते हैं मैं उनकी जरा आंखें खोलना चाहता हूं कि उत्तर प्रदेश में आजादी के बाद जितना औद्योगिक विकास नहीं हुआ वो अकेले योगी जी के काल खंड में हुआ है. मोदी यहीं नहीं रूके। उन्होंने योगी सरकार द्वारा शुरू की गई 'वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट' मिशन की प्रशंसा करते हुए कहा कि इसकी वजह से पूरे देश में उत्तर प्रदेश की नई इज्जत बनी है। योगी को उत्तर प्रदेश के विरोधी दल बुलडोजर बाबा कहते रहे हैं। इससे योगी की नकारात्मक छवि बनाने की कोशिश की जाती रही है। उत्तर प्रदेश की चुनावी सभा में प्रधानमंत्री मोदी ने इसका उल्लेख करते हुए जो कहा, उस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। तब मोदी ने कहा था कि लोगों ने सिर्फ बुलडोज़र-बुलडोजर की बातें सुनी हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश को अगर विकास की नई ऊंचाइयों पर कोई ले गया है तो योगी जी की सरकार लेकर गई है। योगी के खिलाफ चल रहे अफवाहों के जवाब में प्रधानमंत्री के इस बयान को भी देखा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने योगी की प्रशंसा करते हुए कह दिया कि काशी का सांसद होने के नाते, वे खुद उत्तर प्रदेश के प्रतिनिधि हैं। इस लिहाज से योगी उनके भी मुख्यमंत्री हैं। प्रधानमंत्री के इस बयान से योगी को लेकर जैसे अफवाहों पर विराम ही लग गया। प्रधानमंत्री ने योगी की प्रशंसा में कशीदा पढ़ते हुए यहां तक कह दिया कि वे योगी जैसा साथी पाकर गर्व अनुभव करते हैं।
नरेंद्र मोदी 73 साल के हो गए हैं। मोदी की जो कार्यशैली है, उसके हिसाब से समझा जा सकता है कि मौजूदा कार्यकाल के बाद वे अपने उत्तराधिकारी को लेकर भी सोच रहे होंगे। वैसे भारतीय जनता पार्टी में नेतृत्व का चुनाव किसी एक व्यक्ति के हाथ नहीं होता। पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए नेता का चुनाव करता है। नरेंद्र मोदी को 2012 के गुजरात विधान सभा चुनाव में मिली जीत के बाद से ही बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने अपना भावी नेता मान लिया था। पार्टी ने उन्हें प्रधानमंत्री पद का दावेदार जुलाई 2013 में बनाया। एक तरह से वह कार्यकर्ताओं की ही सोच की अभिव्यक्ति थी। कुछ ऐसी ही पहुंच और पहचान इन दिनों योगी की भी बन रही है। वैसे बीजेपी के पास दूसरीं पांत के नेताओं की कमी नहीं है। लेकिन योगी अपने तरीके से उभर रहे हैं। बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपराधियों, बलात्कारियों और माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई के लिए योगी का अचूक औजार बुलडोजर को अपना लिया है। इससे साबित होता है कि पार्टी के अंदरूनी हलके में उनकी स्वीकृति बढ़ी है।
योगी की सख्त प्रशासक की छवि लोगों को लुभाती है। रायबरेली में छठवें दौर में मतदान हुआ। वहां एक बुजुर्ग महिला मतदाता से जब पूछा गया कि उन्होंने किस मुद्दे पर वोट डाला है तो उस महिला ने मुद्दे पर सीधे आने की बजाय कह दिया कि अब उसे देर रात तक सिकड़ी-बाली (गले की सोने की चेन और कानों की बाली) पहनने में डर नहीं लगता। अब उसका बेटा देर से भी जिला से घर आता है तो उसे चिंता नहीं होती। यानी साफ है कि योगी जी के राज में उत्तर प्रदेश में सुरक्षा की गारंटी बढ़ी है। यह गारंटी महिलाओं को आश्वस्त करती है। इसी आश्वस्ति की जानकारी प्रकारांतर से महिला मतदाता ने दिया। योगी के साथ अच्छी बात यह है कि उनके आगे-पीछे कोई परिवार नहीं है। इसलिए उनकी ईमानदारी पर बाकी राजनेताओं की तुलना में ज्यादा भरोसा किया जाता है। शायद यही वजह है कि योगी आदित्यनाथ बीजेपी में दूसरी पांत की नेताओं में सबसे ज्यादा स्वीकार्य बने हैं। यही वजह है कि उन्हें हटाने को लेकर फैली अफवाह पर बीजेपी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा तक को कहना पड़ता है कि योगी बीजेपी के सबसे योग्य मुख्यमंत्री हैं और उन्हें हटाने के लिए सोचा भी नहीं जा सकता।
शीर्ष नेतृत्व की जिम्मेदारी हासिल करने के लिए उस योग्य भी होना पड़ता है। लेकिन इसके अलावा राजनीति में कई और कारक भी होते हैं। उन वजहों की कसौटी पर योगी कितने खरे उतर पाएंगे, यह तो भविष्य ही बताएगा। फिर भी योगी ने राजनीति में ऐसी हैसियत जरूर बना ली है, जिसकी वजह से देश का एक वर्ग उनसे उम्मीद जताए बैठा है। यह उम्मीद पूरी होगी या नहीं, यह भविष्य के गर्भ में हैं।
-उमेश चतुर्वेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)