उत्तर प्रदेश में ‘इंडिया’ गठबंधन को चलाना कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर होता जा रहा है। यह गठबंधन 2024 में मोदी को चुनाव हराने के लिए बना था, लेकिन उससे पहले पांच राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनावों के दौरान गठबंधन में पड़ी रार ने साबित कर दिया है कि मोदी विरोधी नेता मोदी को हराने से अधिक अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं। मध्य प्रदेश में सीटों की दावेदारी को लेकर कांग्रेस-समाजवादी पार्टी के बीच का झगड़ा थम नहीं पाया था और अब राजस्थान विधान सभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के एक और सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी ने अपनी दावेदारी ठोक कर कांग्रेस को और भी दुविधा में डाल दिया है। बता दें कि इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनी समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) का उत्तर प्रदेश में पहले से ही चुनावी गठबंधन है। बीते वर्ष 2022 में यूपी विधान सभा चुनाव में सपा-रालोद मिलकर चुनाव लड़े थे। इन दोनों दलों में से सपा ने मध्य प्रदेश की 9 सीटों के अलावा राजस्थान में आरएलडी ने 6 सीटों की मांग कर दी है। आरएलडी ने राजस्थान में टिकट की दावेदारी करके वहां (राजस्थान) खुद को मजबूत करने की दलील दी है।
गौरतलब है कि साल 2018 के राजस्थान चुनावों में आरएलडी ने दो सीटों- भरतपुर और मालपुरा में चुनाव लड़ा था। इसमें से भरतपुर में उसे जीत हासिल हुई थी। यहां आरएलडी के सुभाष गर्ग ने भाजपा के विजय बंसल को 15,000 वोटों से हराया था। गर्ग को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी कैबिनेट में मंत्री बनाया था। दूसरी ओर मालपुरा में आरएलडी के रणवीर पहलवान बीजेपी के कन्हैय्या लाल से करीब 30,000 वोटों से हार गए थे। आरएलडी को दोनों सीटों पर पड़े कुल वोटों में से 33 फीसदी वोट मिले थे। इस बार, आरएलडी राजस्थान में कांग्रेस के सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ रही है। पार्टी ने झुंझुनू, चूरू, हनुमानगढ़, भरतपुर, बीकानेर और सीकर जैसे जाट बहुल जिलों में सीटों की मांग की है। सर्वेक्षण के अनुसार राजस्थान के जिन जिलों से रालोद अपना प्रत्याशी उतारना चाहती है वहां जाट मतदाताओं का 10 फीसदी से अधिक हिस्सा है और राजस्थान की 200 सीटों में से लगभग 40 पर जाट वोटरों का प्रभाव है।
बता दें कि चुनाव के मद्देनजर आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी पहले ही जयपुर और भरतपुर समेत पांच विधानसभा सीटों पर प्रचार कर चुके हैं। वहीं, आने वाले दिनों में कुछ और सीटों पर उनकी रैलियों की योजना है। सूत्रों बताते हैं कि आरएलडी राजस्थान में जाट के अलावा दलित मतदाताओं को अपने पक्ष में जुटाने के लिए भीम आर्मी प्रमुख चन्द्रशेखर आज़ाद से हाथ मिला सकते हैं। बहरहाल, यूपी में इंडिया गठबंधन को लेकर अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने जो तेवर अपनाए हैं, उससे तो यही लगता है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान समेत पांच राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनाव को इंडिया गठबंधन की परीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है। इन चुनावी राज्यों में यदि कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा तो इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों पर दबाव आ जायेगा, लेकिन इसका उलटा हुआ तो कांग्रेस को झुकना पड़ेगा। मगर ऐसा हो पाये इससे पूर्व ही गठबंधन के दल आपसदारी में सेंध लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं।
मध्य प्रदेश में सपा को सीटें न देने पर जहां अखिलेश ने कांग्रेस को चेतावनी दी है, वहीं अब जयंत चौधरी ने भी राजस्थान में 6 सीटें मांगकर इंडिया गठबंधन को टेंशन दे दी है। अखिलेश ने बीते दिनों साफतौर पर कह दिया कि इंडिया के तहत अगर राज्य स्तर पर गठबंधन नहीं हुआ तो बाद में भी नहीं होगा। उन्होंने मध्य प्रदेश के चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस से बात न बनने पर ये चेतावनी दी है। पूरे सियासी घटनाक्रम की तह में जाया जाये तो पता चलता है कि सपा ने गत दिनों मध्य प्रदेश की 9 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित किए थे, इसमें पांच सीटें ऐसी हैं, जिन पर कांग्रेस ने भी अपने उम्मीदवार घोषित कर रखे हैं। सपा ने पहले ही अपने लिए संभावित सीटों की सूची कांग्रेस को दी थी, जिसे तवज्जो नहीं मिली। इसके बाद जब अखिलेश यादव से कांग्रेस से गठबंधन को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह कांग्रेस को बताना होगा कि ’इंडिया’ गठबंधन भारत के स्तर पर होगा या नहीं। अगर देश के स्तर पर है तो देश के स्तर पर है, अगर प्रदेश स्तर पर नहीं है तो भविष्य में भी प्रदेश स्तर पर नहीं होगा।
खैर, यह सब बाद की बाते हैं लेकिन आज तो कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एक-दूसरे को नीचा दिखाने में ही लगे हैं। 19 अक्टूबर को सपा प्रमुख ने कांग्रेस नेताओं को आईना दिखाते हुए उसके उत्तर प्रदेश अध्यक्ष अजय राय को चिरकुट घोषित कर दिया था तो 21 अक्टूबर को उत्त्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने अखिलेश को खरी खोटी सुनाते हुए उन्हें बीजेपी का मददगार साबित कर दिया। यही नहीं अजय राय ने यहां तक आरोप लगाया कि जिस अखिलेश ने अपने पिता की इज्जत नहीं की उससे और क्या उम्मीद की जा सकती है। अजय राय ने कहा कि जनता देख रही है कि भाजपा से कौन मिला है। इससे पहले 7 उप-चुनाव हुए। यूपी में घोसी में उपचुनाव हुआ। हम लोगों ने बिना समर्थन मांगे इनको समर्थन दिया और इनका प्रत्याशी भारी मतों से चुनाव जीता। उसी समय चुनाव बागेश्वर के भी हुए इन्होंने (अखिलेश) वहां अपना प्रत्याशी दिया और वहां चुनाव लड़ाया। वहां भाजपा चुनाव जीती और कांग्रेस हार गई, जिससे यह साबित हो गया कि भारतीय जनता पार्टी के साथ कौन मिला है और कौन बी-टीम के रूप में काम कर रहा है। अभी मध्य प्रदेश में भी पता चल जाएगा।
-स्वदेश कुमार