लखनऊ। भाजपा के खिलाफ वैसे तो देश भर में कई गठबंधन बने हैं जिसे तीसरे मोर्चे या चौथे मोर्चे का नाम दिया जाता रहा है। लेकिन देश को 8 प्रधानमंत्री देने वाले उत्तर प्रदेश में 2014 में मोदी-शाह की जोड़ी ऐसी दौड़ी की प्रदेश की 71 सीटों पर कमल खिला दिया। राम भक्त भाजपा के सिपहसालार अमित शाह ने यूपी के क्षेत्रीय क्षत्रपों के अस्तित्व पर 2014 के चुनाव में ऐसी लक्ष्मण रेखा खींच दी जिससे निकलने के लिए दो कट्टर दुश्मनों को एक-दूसरे का हाथ थामना पड़ा। भाजपा के विजय रथ को थामने के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने हाथ मिला लिया जिसमें बाद में चौधरी अजीत सिंह की रालोद भी शामिल हो गई। मोदी विरोध में बने इस गठबंधन का नया आयाम 19 अप्रैल को देखने को मिलेगा। जब करीब 25 साल बाद मायावती और मुलायम सिंह यादव मंच पर एक साथ दिखेंगे। मायावती 19 अप्रैल को मैनपुरी में होने वाली दोनों पार्टियों की साझा रैली में मुलायम सिंह यादव के लिए वोट मांगेंगी। ऐसे में सभी की निगाहें इस बात पर टिक गई है कि मायावती इस मंच से क्या बोलती हैं।
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सपा-बसपा जोड़ी का ऐतिहासिक लम्हा हो सकता है
सपा बसपा रालोद की संयुक्त रैलियों का चौथा पड़ाव यादव बहुल मैनपुरी है। 19 अप्रैल को मैनपुरी में अखिलेश यादव, मायावती, मुलायम सिंह यादव व अजित सिंह एक मंच पर होंगे। वहां की जनता के लिए सबसे उत्सुकता तो सपा के मंच पर मायावती की मौजूदगी को लेकर है। पच्चीस साल बाद पहली बार मायावती व मुलायम सिंह यादव एक मंच पर होंगे। मायावती मुलायम के लिए वोट मांगेंगी। मैनपुरी की जनता के लिए तो यह ऐतिहासिक पल होगा। वैसे तो एक नारा यूपी में काफी चर्चित हुआ करता था "जलवा जिसका कायम है उसका नाम मुलायम है" वो और बात है कि सूबे की सियासत में मुलायम का जलवा अब पहले जैसा नहीं रहा लेकिन के यादवों के गढ़ मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव के लिए वोट आज भी झूम कर बरसते हैं। वह लंबे वक्त से यहां से चुनाव लड़ और जीत रहे हैं। सपा अकेले लड़ती तो भी मैनपुरी को लेकर चिंतित नहीं रहती है लेकिन अब बसपा की ताकत जुड़ने से गठबंधन खासा मजबूत हो गया है।
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मुलायम सिंह ने कांशीराम की जीत सुनिश्चित की थी
बरसों पहले गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा बसपा की राहें जुदा हो गईं थीं। इससे पहले यूपी की जनता ने सपा बसपा या यूं कहें कांशीराम व मुलायम की दोस्ती का भी वक्त देखा है। कैसे इटावा लोकसभा उपचुनाव में मुलायम सिंह यादव ने बसपा संस्थापक कांशीराम की जीत सुनिश्चित की थी। कैसे मुलायम सिंह यादव व कांशीराम ने दलित, पिछड़ा व मुस्लिम समीकरण जोड़ कर ऐसा गठबंधन तैयार किया जिसने राम मंदिर आंदोलन के माहौल में भाजपा का विजय रथ 'मिले मुलायाम कांशीराम हवा में उड़ गए जय श्री राम' के नारे के साथ सत्ता में आने से रोक दिया और खुद सरकार बना ली। 1993 में कांशीराम व मायावती ने लखनऊ के एतिहासिक बेगमहजरत महल पार्क में संयुक्त रैली की थी। इसमें भारी तादाद में जनता इन नेताओं को सुनने जुटी।
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मैनपुरी से जुड़ी रोचक जानकारी
भाजपा ने यह सीट कभी नहीं जीती जबकि कांग्रेस चार बार जीत चुकी है।
खुद मुलायम सिंह यादव यहां से 1996, 2004, 2009 और 2014 का लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं।
मुलायम ने यह सीट 2004 जीत कर खाली की थी तो धर्मेंद्र यादव उपचुनाव में जीते। जब 2014 में जीत कर इस्तीफा दिया तो उनके पौत्र तेज प्रताप जीते।
सपा से अलग होकर अलग पार्टी बनाने वाले शिवपाल यादव भी मैनपुरी में अपेन भाई को समर्थन कर रहे हैं।
शिवपाल मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में आने वाली जसवंत नगर से विधायक हैं।
मैनपुरी में करीब 38 प्रतिशत यादव के अलावा भारी तादाद में शाक्य वोटर हैं।
2019 लोकसभा चुनाव के लिए मैनपुरी से 12 उम्मीदवार मैदान में हैं।
इस सीट पर मुख्य मुकाबला सपा से मुलायम सिंह यादव और भाजपा के प्रेम सिंह शाक्य के बीच है।
8 क्षेत्रीय पार्टियों के नेता और 2 निर्दलीय उम्मीदवार भी अपनी चुनौती पेश कर रहे हैं।