By अभिनय आकाश | Jul 12, 2024
सरकार ने 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया है, जिस दिन 1975 में आपातकाल की घोषणा की गई थी। ‘संविधान हत्या दिवस’ उन सभी लोगों के महान योगदान को याद करेगा, जिन्होंने 1975 के आपातकाल के अमानवीय दर्द को सहन किया। इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को तानाशाही का परिचय देते हुए आपातकाल लगाकर लोकतंत्र की आत्मा का गला घोंटा था। दूसरी बार है जब किसी इतिहास से जुड़ी किसी विशेष तारीख के लिए केंद्र सरकार की तरफ से नोटिफिकेशन जारी करते हुए उसे कोई दिवस घोषित किया गया है। दोनों ही तारीख कांग्रेस के दो दिग्गज नेता पंडित जवाहर लाल नेहरू और पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के दौर में घटित हुई घटना की याद दिलाता है।
जब हुआ था देश का विभाजन
अंग्रेजों की मंशा थी कि भारत के दो टुकड़े कर दिए जाएं। वे अपनी मंशा में कामयाब भी रहे। भारत के दो टुकड़े हो गए और पाकिस्तान नाम के दूसरे देश का जन्म हुआ। 14 अगस्त 1947 ही वो तारीख है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। एक तरफ देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्ति मिल रही थी। दूसरी तरफ इसकी कीमत देश के विभाजन के रूप में मिल रही थी। विभाजन के परिणामस्वरूप लाखों लोग बेघर हो गए। विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस को लेकर 14 अगस्त 2021 को केंद्रयी गृह मंत्रालय की ओर से भारत सरकार का राजपत्र यानी कि गजट जारी किया गया था। इसमें कहा गया कि भारत सरकार वर्तमान और भावी पीढ़ियों को विभाजन के दौरान लोगों द्वारा सही गई यातना और वेदना का स्मरण दिलाने के लिए 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में घोषित करती है।
आपाकात का दौर
गरीबी हटाओ के नारे के दम पर सत्ता में आई इंदिरा गांधी निरंतर बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में नाकाम साबित हो रही थीं जिससे हालात बड़े राजनीतिक प्रतिरोध के रूप में सामने आने लगे। वर्ष 1974 में गुजरात के नवनिर्माण आंदोलन से शुरू हुआ महंगाई भ्रष्टाचार विरोधी अभियान बड़े बदलाव की शक्ल ले रहा था सभी दल एकजुट हो गए थे। जिसमें भारतीय लोक दल, जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी समेत कई क्षेत्रीय दल भी शामिल थे। छात्र युवा आंदोलन के बढ़ते स्वरूप को देखकर और मोरारजी देसाई के अनशन से भयभीत होकर गुजरात विधानसभा को भंग कर नए चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस की भारी पराजय हुई और गांधीवादी नेता बाबू भाई पटेल के नेतृत्व में पहली जनता सरकार बनी। इसी बदलाव की चिंगारियां बिहार में भी भड़क उठी। जहां अब्दुल गफूर के नेतृत्व वाली कांग्रेस बेबस और लाचार दिख रही थी। तब 1942 की क्रांति का नायक 1975 की युवा क्रांति का जननायक बन चुका था। गैरकानूनी तरीके से अपनी सत्ता को बचाने के लिए संवैधानिक मान मर्यादा को कुचलते हुए देश पर आपातकाल थोप दिया गया। सभी मूलभूत अधिकार समाप्त कर दिए गए। समाचार पत्र पर भी पाबंदी लगा दी गई। विपक्षी दलों के प्रमुख नेता नजरबंद कर दिया गया। सभा जुलूस प्रदर्शन सभी पर रोक लगा दी गई। राजनीतिक बंदियों की परिवार से मुलाकात तक पर पाबंदी लगा दी गई। अदालतें स्वयं कैद हो चुकी थी, जो जमानत लेने और देने से साफ इनकार कर रही थी। एक लाख से अधिक राजनेताओं- कार्यकर्ताओं को गिरफ्तारी के समय यातनाएं सहनी पड़ी। जेलों से मौत की खबर आ रही थी। जनवरी 1977 में देश में इमरजेंसी (आपातकाल) लागू हुए डेढ़ वर्ष से अधिक समय हो चुका था। इंदिरा गांधी ने 18 जनवरी को अचानक ऑल इंडिया रेडियो पर लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान कर दिया। 16-20 मार्च के बीच देश में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की ऐतिहासिक हार हुई, इंदिरा और संजय गांधी दोनों ही चुनाव हार गए। 21 मार्च 1977 को आपातकाल हटा दिया गया और 24 मार्च 1977 को मोरारजी देसाई के नेतृत्व में देश में पहली गैरकांग्रेसी सरकार बनी।