क्रूरता के साथ आगे बढ़ रहा है तालिबान का विजय रथ, बड़े देश सिर्फ तमाशा देख रहे हैं

By नीरज कुमार दुबे | Aug 13, 2021

अंतरराष्ट्रीय इतिहास में अमेरिका का नाम इस बात के लिए दर्ज रहेगा कि कैसे उसने लाखों अफगानिस्तानियों को मौत के मुँह में धकेल दिया। तालिबान ने जब अमेरिका पर हमला किया तो दर्द समझ आया था लेकिन वही तालिबान जब निर्दोष अफगानियों का जीवन दुश्वार बना रहा है, तो अमेरिका को रत्ती भर भी परवाह नहीं दिख रही। यह सही है कि अमेरिका पहले अपने हित की सोचे और उसे अफगानिस्तान से जाने से कोई रोक भी नहीं सकता लेकिन खुद को दुनिया का बॉस समझने वाले अमेरिका को कुछ जिम्मेदारी भरा रवैया तो दिखाना ही चाहिए। यदि अफगानिस्तान से उसे अपने सैनिकों को निकालना भी था तो कोई रणनीति बनाकर निकाल सकता था ताकि अफगानिस्तान में लोकतंत्र बना रहे और क्षेत्रीय शांति ना बिगड़े। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और अब अफगानिस्तान की जनता तो परेशानी में है ही आसपास के देशों खासकर भारत की चिंता भी बढ़ गयी है। अब अमेरिका और ब्रिटेन वहां अपने कुछ और सैनिकों को भेज रहे हैं मगर वह सिर्फ इसलिए ताकि अपने लोगों को वहां से सुरक्षित निकाल सकें।

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सर्वाधिक दोषी कौन?


सबसे बड़ा दोष तो इस समय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का नजर आ रहा है जो बस चुपचाप अफगानियों पर तालिबान के कसते शिकंजे को देख रहा है। अगले महीने जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का वार्षिक सत्र होगा तो उसमें क्या उपलब्धियां बताई जाएंगी यही कि संयुक्त राष्ट्र सबकुछ जानते हुए भी ना तो कोरोना वायरस फैलाने के लिए चीन का नाम ले पाया और ना ही अफगानिस्तान के हालात नियंत्रण रखने के लिए कुछ कर पाया। भंग कर देना चाहिए ऐसी नौटंकी व्यवस्था को जो सिर्फ बैठकों में बड़ी-बड़ी बातें करने के लिए बनायी गयी है।


अफगानिस्तान के हालात कैसे हैं?


अफगानिस्तान के हालात पर चर्चा करें तो इस समय तालिबानी उग्रवादी बड़े-बड़े हथियारों के साथ इलाकों पर कब्जा करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। आगे बढ़ने की इस यात्रा के दौरान वह स्कूलों को ध्वस्त करते जा रहे हैं, महिलाओं को कब्जे में लेते जा रहे हैं, सरकारी सुरक्षा बलों के हथियारों और वाहनों को कब्जे में लेते जा रहे हैं। पूरे अफगानिस्तान में इस समय हालात ऐसे हैं कि लोग परिवार समेत भागे-भागे देश की राजधानी काबुल पहुँच रहे हैं। सभी की चिंता अपने परिवार की महिलाओं की इज्जत बचाने की है क्योंकि जहां-जहां तालिबान का कब्जा हुआ है वहां के परिवारों की महिलाओं को तालिबानियों द्वारा उठाया जा रहा है। इस समय काबुल की सड़कों और पार्कों में परिवार के परिवार खुले आसमान के नीचे पड़े हुए हैं क्योंकि यही अभी सुरक्षित शहर बचा है लेकिन तालिबान बस यहाँ भी पहुँचने ही वाला है और राजधानी में बैठी अफगान सरकार खुद भागने की तैयारी में है। सोचिये जब ऐसा होगा तब क्या होगा बेचारे अफगान नागरिकों का। इन बेचारों का जो भी हो लेकिन आप देखियेगा कैसे अफगान नागरिकों को इस हाल में पहुँचाने वाले लोग जल्द ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठकों में महिलाओं के सशक्तिकरण संबंधी विषय पर बड़े-बड़े भाषण देंगे।

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तालिबान का विजय रथ कहाँ पहुँचा?


ताजा रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान ने अफगानिस्तान की एक और प्रांतीय राजधानी पर कब्जा कर लिया है। हम आपको बता दें कि अफगानिस्तान की 34 प्रांतीय राजधानियों में से कंधार ऐसी 12वीं राजधानी है जिस पर अब उग्रवादियों का कब्जा हो गया है। कंधार पर तालिबानियों का कब्जा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अफगानिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। अधिकारियों ने बताया है कि कंधार पर तालिबान ने बृहस्पतिवार रात को कब्जा कर लिया और सरकारी अधिकारी तथा उनके परिजन भाग कर किसी तरह हवाई अड्डे पहुँचे। इससे पहले, बृहस्पतिवार को दिन में ही तालिबान ने अफगानिस्तान के तीसरे सबसे बड़े शहर हेरात पर कब्जा कर लिया था। तालिबान के लड़ाके ऐतिहासिक शहर में ग्रेट मस्जिद से आगे बढ़ गए और सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि एक सरकारी इमारत से रूक-रूक कर गोलीबारी की आवाज आ रही थी जबकि बाकी के शहर में शांति थी और वहां पर तालिबान का कब्जा हो चुका था। गजनी पर तालिबान के कब्जे से अफगानिस्तान की राजधानी को देश के दक्षिण प्रांतों से जोड़ने वाला अहम राजमार्ग कट गया है।


देखा जाये तो अब अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर सीधा खतरा मंडरा रहा है क्योंकि तालिबान उसके एकदम निकट पहुँच चुका है। यही नहीं गजनी के तालिबान के हाथों में जाने से यहां अब सरकारी बलों की आवाजाही में मुश्किलें आएंगी क्योंकि यह काबुल-कंधार राजमार्ग पर है। एक तरफ काबुल पर सीधा खतरा है, वहीं तालिबान की देश के करीब दो तिहाई हिस्से पर पकड़ मजबूत होती दिख रही है। अमेरिकी सेना का ताजा सैन्य खुफिया आकलन बताता है कि काबुल 30 दिन के अंदर चरमपंथियों के दबाव में आ सकता है और मौजूदा स्थिति बनी रही तो कुछ ही महीनों में पूरे देश पर नियंत्रण हासिल कर सकता है। कई दिनों से जारी लड़ाई पर अफगान सुरक्षा बल और सरकार कोई टिप्पणी करने को तैयार नहीं हैं। अफगान सरकार ने तालिबान को सत्ता में भागीदारी का ऑफर भी दिया है लेकिन जब तालिबान को यह दिख रहा है कि जल्द ही पूरी सत्ता उसकी हो सकती है तो वह शायद ही इस ऑफर को माने।


भारत की चिंता बढ़ी


इस बीच अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा कई क्षेत्रों में कब्जा करने के बीच भारत ने कहा है कि अफगानिस्तान की स्थिति चिंता का विषय है और वह वहां समग्र एवं तत्काल संघर्ष विराम की उम्मीद करता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने साप्ताहिक प्रेस वार्ता में यह बात कही। उन्होंने कहा, ‘‘हम अफगानिस्तान में सभी पक्षकारों से सम्पर्क में है और इस युद्धग्रस्त देश में जमीनी स्थिति पर करीबी नजर रखे हुए हैं।’’ उन्होंने कहा कि भारत दोहा में अफगानिस्तान के मुद्दे पर क्षेत्रीय सम्मेलन में कतर के निमंत्रण पर हिस्सा ले रहा है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, ''अफगानिस्तान में स्थिति चिंता का विषय है। यह स्थिति तेजी से उभरती है। हम वहां समग्र एवं तत्काल संघर्ष विराम की उम्मीद करते हैं।’’

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अमेरिका अपनी जिद पर अड़ा


उधर, अमेरिकी सैन्य नेतृत्व ने जितना सोचा होगा उससे भी कहीं अधिक तेजी से अफगानिस्तान सरकार की सेना युद्धग्रस्त देश में तालिबान के सामने पस्त हो रही है। लेकिन व्हाइट हाउस, पेंटागन या अमेरिकी जनता के बीच इसे रोकने का उत्साह कम ही नजर आ रहा है और अब शायद कुछ करने के लिए बहुत देर भी हो चुकी है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा अफगानिस्तान से अपने सैनिकों की पूर्ण वापसी की घोषणा किए जाने के बाद से युद्धग्रस्त देश में हर रोज हालात खराब होते जा रहे हैं। बाइडन ने स्पष्ट कर दिया है कि निर्णय को पलटने का उनका कोई इरादा नहीं है। पेंटागन के मुख्य प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा कि अफगानिस्तान के पास अब भी खुद को अंतिम हार से बचाने का समय है। बाइडन ने भी पत्रकारों से कहा कि अमेरिकी सैनिकों ने पिछले 20 वर्षों में अफगानिस्तान की सहायता के लिए वह सब कुछ किया है जो वे कर सकते थे। उन्होंने कहा, ‘‘उन्हें (अफगान लोगों) अपने लिए, अपने देश के लिए लड़ना होगा।’’


इमरान खान मौके का लाभ उठा रहे हैं


दूसरी ओर, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अमेरिका पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि वह पाकिस्तान को केवल उस ‘‘गड़बड़ी’’ से निपटने के लिए ‘‘उपयोगी’’ समझता है जो उसने 20 साल की लड़ाई के बाद अफगानिस्तान में पीछे छोड़ी है और जब ‘‘रणनीतिक साझेदारी’’ बनाने की बात आती है, तो वह भारत को प्राथमिकता देता है। दरअसल, पाकिस्तान इस बात से नाराज है कि बाइडन ने जनवरी में राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने के बाद से प्रधानमंत्री खान से बातचीत नहीं की है। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ ने हाल में इस बात पर निराशा व्यक्त की थी कि अफगानिस्तान जैसे कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर इस्लामाबाद को महत्वपूर्ण देश मानने के बावजूद प्रधानमंत्री इमरान खान से संपर्क करने को लेकर राष्ट्रपति बाइडन अनिच्छुक हैं। मोईद युसूफ ने कहा था कि अगर अमेरिकी नेता देश के नेतृत्व की अनदेखी करते रहे, तो इस्लामाबाद के पास अन्य ‘‘विकल्प’’ हैं। प्रधानमंत्री इमरान खान ने विदेशी पत्रकारों से कहा कि अफगानिस्तान की समस्या का राजनीतिक समाधान निकालना मुश्किल है, क्योंकि तालिबान काबुल सरकार से तब तक बात नहीं करना चाहता, जब तक राष्ट्रपति अशरफ गनी के हाथ में नेतृत्व है। उन्होंने कहा कि तालिबान के नेताओं ने उन्हें एक यात्रा के दौरान कहा था कि अशरफ गनी सरकार एक कठपुतली है। इमरान खान ने तालिबान नेताओं से हवाले से कहा, ‘‘स्थिति यह है कि जब तक अशरफ गनी वहां है, हम (तालिबान) अफगान सरकार से बात नहीं करेंगे।’’


अफगानियों की नजर में पाक दोषी


दूसरी ओर, ऐसे में जब तालिबान ने अफगानिस्तान के क्षेत्रों पर तेजी से नियंत्रण हासिल कर रहा है कई अफगान नागरिक विद्रोहियों की सफलता के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराते हैं और कई तरीकों से पाकिस्तानी क्षेत्र के उपयोग की ओर इशारा करते हैं। इस्लामाबाद पर इसके लिए दबाव बढ़ रहा है कि वह तालिबान को वार्ता की मेज पर लाये। पाकिस्तान ही शुरू में तालिबान को बातचीत की मेज पर लाया था। विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान के लाभ को अक्सर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है। हालांकि पाकिस्तान तालिबान के नेतृत्व को अपने क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति देता है और उसके घायल लड़ाकों का इलाज पाकिस्तानी अस्पतालों में होता है। तालिबान लड़ाकों के बच्चे पाकिस्तानी में स्कूल में पढ़ते हैं और उनमें से कुछ के पास संपत्ति भी है।


बहरहाल, अफगानिस्तान पर तालिबान के हो चुके दो-तिहाई कब्जे के बीच दुनिया को चाहिए कि वह अफगानियों को बचाने के लिए एकजुट हो। मानव अधिकारों पर बड़े-बड़े सम्मेलनों में बोलने भर से कुछ नहीं होगा, मानवता को बचाने के लिए और लोगों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए हम सभी को जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी।


- नीरज कुमार दुबे

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