निठारी कांड के दोषियों का बरी होना सरकार और जांच एजेंसियों के कामकाज पर बड़ा सवाल

By स्वदेश कुमार | Oct 18, 2023

उत्तर प्रदेश के दिल्ली से सटे नोयडा के निठारी गांव में आज से 17 वर्ष पूर्व दिल दहला देने वाले उस मंजर को कौन भूल सकता है, जब 29 दिसंबर 2006 को नोयडा, सेक्टर 31 के निठारी गांव स्थित डी-5 कोठी के आसपास और कोठी के पीछे बहते नाले तक में एक के बाद एक नर कंकाल मिलने से लोगों की रूह कांप उठी थी। यह सभी कंकाल छोटी उम्र के बच्चे-बच्चियों के थे। उस समय प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। इस हादसे ने सीएम की कुर्सी को हिला कर रख दिया था। जनता आगबबूला थी तो विपक्ष ने भी इस पर खूब सियासत की थी, क्योंकि तीन-चार महीने बाद यूपी विधान सभा चुनाव होने थे।


निठारी कांड से हिली मुलायम सरकार की छवि को इस कांड से काफी बड़ा दाग लगा था। तब मुलायम सरकार में शामिल शिवपाल यादव से जब पत्रकारों ने निठारी कांड के बारे में पूछा तो उन्होंने बड़ी हठधर्मी से कह दिया था कि इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं, इसके बाद पुलिस ने भी जांच में ढिलाई बरतना शुरू कर दी। इस मामले में तत्कालीन पुलिस अधिकारी और उनके अधीनस्थों पर भी लापरवाही के आरोप लगे हैं। यह आरोप यूं ही नहीं लगे थे, इसके पीछे सच्चाई भी थी। सूत्र बताते हैं कि 2005 से 2006 के बीच जब बच्चे गायब हो रहे थे, तब कुछ पुलिसकर्मी घटना के पर्दाफाश के करीब पहुंच गए थे, लेकिन तत्कालीन सरकार के दबाव में अधिकारियों ने मामला पर्दाफाश नहीं होने दिया था। सरकार के करीब रहे एक स्थानीय नेता ने भी जांच को भटकाने में खास भूमिका निभाई थी।


सूत्र बताते हैं कि उस समय जिले में तैनात अधिकारी इस मामले को लेकर दो फाड़ हो गए थे। बच्चों के प्रति संवेदना रखने वाले पुलिसकर्मियों का एक गुट मामले का पर्दाफाश चाहता था, जबकि दूसरा गुट सरकार की छवि धूमिल न हो, इसके लिए प्रकरण को दबाए रहा। बच्चे गरीबों के थे। उनके पास किसी की सिफारिश नहीं थी। यही कारण है कि मानवीय संवदेनाएं इस हद तक तार-तार हो गई थीं कि एक के बाद एक 19 बच्चे लापता होते रहे। जांच के लिए पुलिस की कई टीमें लगाई गईं। एसओजी और तकनीकी रूप से मजबूत पुलिस टीम को बच्चों के गायब होने की सच्चाई सामने लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई, उन्होंने मुलायम सरकार के दबाव में साक्ष्यों को कमजोर कर दिया, लेकिन जनता ने समाजवादी पार्टी के साथ पूरा इंसाफ किया और अप्रैल 2007 के विधान सभा चुनाव में सपा को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा एवं बसपा की सरकार बनी।


उधर, निठारी कांड पर जांच जारी रही, जिसमें तमाम चौंकाने वाले खुलासे हुए। लापता 18 बच्चों और एक कॉल गर्ल की हत्या की बात सामने आई। कुछ समय बाद ही मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दिया गया, जिस कोठी के अंदर से नर कंकाल मिले थे उसके मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और नौकर सुरेंद्र कोली आरोपी बने। उन्होंने पुलिस के समक्ष अपना जुर्म भी कबूल कर लिया था, पुलिस का कहना था कि जांच के दौरान कोली ने नरभक्षण और नेक्रोफिलिया (शवों के साथ संबंध बनाने) की बात कबूल की थी। बाद में उन्होंने अदालत में अपना कबूलनामा ये कहते हुए वापस ले लिया कि उनसे जबरन ये बयान दिलवाया गया था। सीबीआई ने सुरेंदर कोली और पंढेर के खिलाफ़ 19 मामले दर्ज किए थे। जहां कोली पर हत्या, अपहरण, बलात्कार, सबूतों को मिटाने जैसे आरोप थे तो वहीं पंढेर पर अनैतिक तस्करी का आरोप था। कुल मिलाकर दोनों के खिलाफ अलग-अलग धाराओं में 19 मामलों में ट्रायल शुरू हुआ और 2017 में सीबीआई कोर्ट द्वारा दोनों को फांसी की सजा सुनाई गई, लेकिन करीब 17 साल बाद 16 अक्टूबर 2023 का इलाहाबाद हाई कोर्ट ने चौकाने वाला फैसला देते हुए पंढेर और कोली दोनों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया और सीबीआई को पर्याप्त सबूत नहीं जुटाने के लिये फटकार भी लगाई।


इलाहाबाद हाईकोर्ट से इस फैसले के बाद पीड़ित परिवार के साथ आसपास के लोग खंडहर हो चुकी उस कोठी के पास पहुंचे जहां उनके बच्चों के साथ हैवानियत की गई थी तो उनका दर्द छलक पड़ा। वहां पहुंचे उन लोगों के चेहरे बुझे हुए थे तो कानून के प्रति नाराजगी भी थी। अपनों को खोने वालों ने कहा कि 17 साल के लम्बे इंतजार के बाद भी हम लोगों को न्याय नहीं मिला। हम लोग आज भी वहीं खड़े हैं, जहां घटना वाले दिन खड़े थे। निठारी कांड में अपने बच्चों को खाने वाले परिवार वालों का लगभग एक ही सवाल है कि अगर पंढ़ेर और कोली निर्दोष हैं तो उनके बच्चों को किसने मारा है। इसका जवाब कौन देगा? हो सकता है कि अदालत के सामने मजबूत साक्ष्य पेश करने में सीबीआई सफल नहीं रही हो, लेकिन इससे पीड़ित परिवार वालों का कोई लेना-देना नहीं है। सवाल यह भी उठ रहा है जिस आधार पर नीचे की दो अदालतों ने आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी, वह आधार हाईकोर्ट में टिक क्यों नहीं पाए और दोनों आरोपी बरी हो गये, जबकि इस कांड को रेयरेस्ट ऑफ द रेयर कांड माना गया था। गौरतलब है कि हत्या मामले में किसी मुजरिम को तभी फांसी की सजा सुनाई जाती है जब मामला रेयरेस्ट ऑफ रेयर का हो। इस कारण सजा पर बहस के दौरान एक तरफ जहां सरकारी पक्ष मामले को रेयरेस्ट ऑफ रेयर की श्रेणी में लाने की कोशिश करती है वहीं बचाव पक्ष की यह कोशिश होती है कि वह मामले को रेयरेस्ट ऑफ रेयर की श्रेणी में नहीं आने दे।

   

इस बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि निठारी कांड के समय जांच में सामने आए तथ्य इतने भयावह थे कि ऐसी हैवानियत इंसान करेगा, ये कल्पना ही कोई नहीं कर पा रहा था। इसके बाद नर पिशाच शब्द लोगों की जुबां से यहां अपराध करने वालों के लिए निकला। निठारी में उस समय कई बच्चे लापता हुए थे, जिनके साथ हैवानियत किये जाने की बात इस कांड में सामने आ रही थी। गांव निठारी निवासी राजवती कहती हैं कि पिछले 17 वर्षों में काफी कुछ बदल गया है, लेकिन उस नरसंहार कांड की यादें आज भी लोगों के दिलो दिमाग में ताजा हैं। राजवती जोकि अब जूता-चप्पल की दुकान चला रही हैं उन्होंने अपना 5 साल का बच्चा निठारी कांड में खोया था, उन्होंने बताया कि शादी के 8 साल बाद उनको बच्चा हुआ था। 27 अप्रैल 2006 को वह घर के बाहर खेलने के लिए गया था लेकिन वापस नहीं लौटा। फिर जानकारी मिली कि उसका कंकाल डी-5 बंगले के सामने बहने वाले नाले में मिला था। राजवती जोर देकर कहती हैं कि अगर कोर्ट ने कह दिया है कि वो दोनों दोषी नहीं हैं तो किसने मेरे बच्चे को मारा है।


इसी तरह से निठारी कांड की पीड़ित और लापता हुई 10 वर्षीय बच्ची की मां हाईकोर्ट के फैसले के बाद फफक पड़ीं और बोलीं वक्त बीत गया लेकिन आंसू नहीं सूखे और बेटी की यादें धुंधली नहीं हुईं। फांसी की सजा जब हुई थी तब लगा था कि बेटी की मौत पर इंसाफ शायद मिल जाए, लेकिन आज लग रहा है कि इंसाफ की उम्मीद भी मर रही है। वहीं, ज्योति के पिता जब्बू लाल का कहना था कि 17 साल बीत जाने के बाद भी हम लोगों को न्याय नहीं मिला है और सुप्रीम कोर्ट से न्याय की उम्मीद है। उस दिन हुआ क्या था ये पूछने पर झब्बू लाल बताते हैं कि डी-5 कोठी के सामने ही हम कपड़े धुलाई और प्रेस करने की दुकान चलाते थे। झब्बू लाल की 10 साल की बेटी कपड़े लेकर दुकान से बाहर निकली और वह वापस नहीं आई। झब्बू लाल और उनकी पत्नी बेटी को ढूंढ़ने बाहर निकले तब कोठी के सामने मनिंदर पंढेर और सुरेंद्र मिले भी थे। बेटी के बारे में पूछा था तो दोनों ने कोई जवाब नहीं दिया था। इसके बाद इन दोनों का ही नाम आया था। निठारी से 2006 में ही रामकिशन का 3 साल का मासूम बेटा लापता हुआ था। उसका नाम भी केस में हुई हत्याओं में शामिल था। नोएडा अथॉरिटी में चालक रामकिशन ने जब हाईकोर्ट का फैसला सुना तो वह मौके पर बदहवासी की स्थिति में पहुंच गए। कोई कुछ समझ पाता इसके पहले पड़ी हुई ईंटे उठाकर खंडहर हो चुकी कोठी पर फेंकने लगे। फिर खड़े होकर किसी को फोन करने की कोशिश की और उनके आंखों से आंसू टपकने लगे। बात करने पर बस यही बोले कि बेटे के बारे में न पूछिए, दुख बार-बार बता नहीं सकता। काफी देर तक कोठी की तरफ खड़े-खड़े निहारते रहे और वहां से चले गए।


नोएडा के सेक्टर-31 में निठारी गांव की कोठी नंबर डी-5 मोनिंदर सिंह पंढ़ेर की थी और वह वहीं रहता था। मोनिंदर मूल रूप से पंजाब का रहने वाला है, वर्ष 2000 में उसने ये कोठी खरीदी थी। तीन साल से उसका परिवार भी इस कोठी में रहा था। इसके बाद पंजाब शिफ्ट हो गया। मोनिंदर ने घर पर अल्मोड़ा (उत्तराखंड) निवासी सुरेंद्र कोली को नौकर रखा था। धीरे-धीरे इस इलाके से कई बच्चे व बच्चियां लापता होनी शुरू हो गईं। एक कॉल गर्ल भी लापता हो गई। मामला जब पुलिस के पास पहुंचा तो मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच के लिए नोएडा पुलिस की दो टीमों का गठन किया गया। एक टीम बच्चों के लापता होने पर अलग-अलग गैंग पर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान समेत अन्य प्रदेश में काम कर रही थी। वहीं, दूसरी तरफ एक टीम कॉल गर्ल की तलाश में लगी थी। जांच के दौरान पुलिस की टीम डी-5 कोठी तक पहुंची थी। इसके बाद 29 दिसंबर 2006 को कोठी के आगे नाले और पीछे खाली जगह में कई कंकाल मिले थे। इसके बाद दोनों जांच एक ट्रैक पर शुरू हो गई थी। सीबीआई ने इन हत्याओं में मोनिंदर सिंह पंढ़ेर और सुरेंद्र कोली को आरोपी बनाया था। सुनवाई के बाद कई मामलों में दोनों को फांसी की सजा भी सीबीआई कोर्ट से सुनाई गई थी, जिन्हें हाईकोर्ट ने बरी कर दिया।


-स्वदेश कुमार

(स्वतंत्र पत्रकार और पूर्व राज्य सूचना आयुक्त, उ0प्र0) 


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