Vinoba Bhave Birth Anniversary: गांधी जी के एक भाषण ने बदल दी विनोबा भावे की जिंदगी, ऐसा रहा उनका सफर

By अनन्या मिश्रा | Sep 11, 2023

आचार्य विनोबा भावे महत्मा गांधी के अनुयायी थे। वह धर्मगुरु होने के साथ ही समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी भी थे। विनोबा भावे ने अपने जीवन काल में अहिंसा और समानता के सिद्धांत का हमेशा पालन किया है। उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों और दबे-कुचले वर्ग के लिए लड़ने को समर्पित किया। वह लोगों के अधिकारों के लिए आवाज उठाते थे। भूदान आंदोलन से विनोबा भावे को सबसे ज्यादा लोकप्रियता मिली। आज ही के दिन यानी की 11 सितंबर के दिन विनोबा भावे का जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर विनोबा भावे के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में... 


जन्म और शिक्षा

महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के गागोड गांव में 11 सितंबर, 1895 को उनका जन्म हुआ था। उनका पूरा नाम विनायक नरहरि भावे था। विनोबा भावे के पिता का नाम नरहरि शम्भू राव और माता का नाम रुक्मिणी देवी था। विनोबा भावे को अपनी मां रुक्मिणी से आध्यात्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिली। बचपन से ही वह गणित में काफी अच्छे थे। कम उम्र में ही भगवद् गीता पढ़ने के बाद उनके अंदर आध्यात्म की तरफ रुचि पैदा हुई। 


जिसके बाद उन्होंने सामाजिक जीवन त्याग कर हिमालय में जाकर संत बनने का फैसला लिया था। हालांकि बाद में विनोबा भावे ने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने का फैसला किया। इस दौरान उन्होंने देश के कोने-कोने में यात्रा करनी शुरू कर दी। इस दौरान वह क्षेत्रीय भाषा का ज्ञान लेते रहे साथ ही शास्त्रों और संस्कृत का भी ज्ञान प्राप्त करते रहे।

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जीवन में बदलाव 

विनोबा भावे का जीवन बनारस जैसे शहर में नया मोड़ लेता है। उनको बनारस में गांधी जी द्वारा बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में दिया गया वह भाषण मिल जाता है। जिसके बाद उनकी जिंदगी में बदलाव आता है। साल 1961 में जब विनोबा 12वीं की परीक्षा देने मुंबई जा रहे थे। तो रास्ते में उन्होंने अपने स्कूल और कॉलेज के सारे सर्टिफिकेट में आग लगा दी थी। फिर एख पत्र के जरिए महात्मा गांधी से संपर्क किया। वहीं गांधी जी भी इस 20 साल के युवक से काफी प्रभावित हुए। गांधी जी ने अहमदाबाद स्थित अपने कोचराब आश्रम में उन्हें आमंत्रित किया। 


जिसके बाद 7 जुन 1916 को विनोबा भावे और महात्मा गांधी की मुलाकात हुई और वह आश्रम में रहने लगे। आश्रम की गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे। आश्रम के अन्य सदस्य मामा फाड़के ने उनको विनोबा नाम दिया था। दरअसल मराठी में किसी को काफी सम्मान देने के लिए विनोबा शब्द बोला जाता है। इस तरह से विनोबा भावे ने गांधी के विभिन्न कार्यक्रमों को अपना जीवन समर्पित कर दिया था।


स्वतंत्रता संग्राम में विनोबा भावे

महात्मा गांधी के प्रभाव में आने के बाद विनोबा भावे स्वतंत्रता संग्राम में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगे। असहयोग आंदोलन में भी उन्होंने हिस्सा लिया। स्वतंत्रता संग्राम में विनोबा भावे की सक्रिय भागीदारी से ब्रिटिश शासन आक्रोशित हो गया। ब्रिटिश सरकार का विरोध करने के आरोप में उन्हें जेल भेज दिया गया। इस दौरान उन्होंने जेल में बंद अन्य कैदियों को 'भगवद् गीता' के विभिन्न विषयों का ज्ञान दिया। 


सामाजिक कार्य

सामाजिक बुराइयों जैसे असमानता और गरीबी को खत्म करने के लिए विनोबा भावे ने अथक प्रयास किया। गांधीजी जी की कायम मिसालों पर चलते हुए उन्होंने समाज के दबे-कुचले लोगों के लिए काम करना वा उनके हक के लिए आवाज उठाना शुरू कर दिया। उन्होंने सर्वोदय शब्द को उछाला था। सर्वोदय का मतलब होता है- सबका विकास। साल 1950 के दौरान विनोबा भावे ने सर्वोदय आंदोलन के तहत कई कार्यक्रमों को शुरू किया। जिनमें से एक भूदान आंदोलन सबसे फेमस रहा।


भूदान आंदोलन

साल 1951 में तेलंगाना आंद्र प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था। उस दौरान जब विनोबा भावे हिंसाग्रत क्षेत्र की यात्रा कर रहे थे। तो उस दौरान पोचमपल्ली गांव के हरिजनों ने उनसे भेंट की। हरिजनों ने विनोबा भावे से करीब 80 एकड़ भूमि उपलब्ध कराने का अनुरोध किया। जिससे कि वह अपना जीवन यापन अच्छे से कर सकें। तब विनोबा भावे ने गांव के जमींदारों से जमीन को दान करने और हरिजनों को बचाने का आग्रम किया। उनकी अपील का एक जमींदार पर इतना गहरा असर हुआ कि उसने अपनी जमीन को दान में देने का प्रस्ताव रखा।


इस घटना के बाद से भारत में त्याग और अहिंसा के एक नया अध्याय जुड़ गया। इसी जगह से भूदान आंदोलन की शुरूआत हुई, जो करीब 13 सालों तक चलता रहा। इस आंदोलन के जरिए विनोबा भावे ने गरीबों के लिए 44 लाख एकड़ भूमि दान के रूप में हासिल की। जिसमें से भूमिहीन किसानों के बीच 13 लाख एकड़ जमीन बांट दी गई। उनके इस आंदोलन की विश्व स्तर पर प्रशंसा हुई।


निधन

साल 1982 में आचार्य विनोबा भावे गंभीर रूप से बीमार हो गए। इसी दौरान उन्होंने अपना जीवन त्यागने का फैसला कर लिया। जिसके बाद अपने आखिरी समय में आर्चाय विनोबा भावे ने खाना व दवा खाने से इंकार कर दिया। बता दें कि 15 नवंबर 1982 को देश के एक महान समाज सुधारक आचार्य विनोबा भावे का निधन हो गया।

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