न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से प्रकाशित "अम्मा" सुपरिचित साहित्यकार दीपक गिरकर का पहला उपन्यास है। दीपक गिरकर की प्रमुख रचनाओं में "एनपीए एक लाइलाज बीमारी नहीं", (बैंकों के एनपीए पर पुस्तक), "बंटी,बबली और बाबूजी का बटुआ" (व्यंग्य संग्रह), "नींव के पत्थर" (प्रेरक आलेख), "उत्कृष्ट लघुकथा विमर्श" (आलोचना) का सम्पादन शामिल हैं। इसके अतिरिक्त कई समाचार पत्रों और साहित्यिक पत्रिकाओं में दीपक गिरकर के कई लेखों, आलेखों, लघुकथाओं, व्यंग्य रचनाओं, कहानियों और समीक्षाओं का निरंतर प्रकाशन हुआ हैं। इसके अतिरिक्त कई साझा संग्रहों में दीपक गिरकर की व्यंग्य रचनाएँ और लघुकथाएँ प्रकाशित हुई हैं। "अम्मा" उपन्यास की विषयवस्तु नवीन धरातल का अहसास कराती है। उपन्यास का मुख्य किरदार अम्मा है, जो कि कथा के सूत्रधार को दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर मिलती है। उपन्यास का ताना-बाना अम्मा के इर्द-गिर्द बुना गया है। इस कृति में उपन्यास और संस्मरण का मिश्रण है। इस कथा यात्रा का मूल पात्र अम्मा है। यह अम्मा नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर रोती हुई कथा के सूत्रधार को मिलती है और वह उस रोती हुई अम्मा को अपनी अम्मा बनाकर अपने घर ले आता है। यहां से यह कथा अम्मा के उत्कर्ष को प्रस्तुत करते हुए आगे बढ़ती है। जीवन में अच्छाइयां किस तरह से अच्छा फल देता है इस बात को कथा के प्रारंभ में ही प्रस्तुत किया गया है कि अम्मा के दुख को देखते हुए कथा का सूत्रधार अपनी रेल की टिकट को रद्द करवा लेता है और अम्मा के साथ फ्लाइट की टिकट बुक कर लेता है। जब वह फ्लाइट से अपने घर पहुंचता है तो उसे पता चलता है कि जिस ट्रेन से वह आने वाला था उस ट्रेन का एक्सीडेंट हो गया है और उस हादसे में कई लोग मर गए हैं। यहां पर लेखक यह संदेश देना चाहता है कि जब आप जीवन में कुछ अच्छा करते हैं तो उसके प्रतिफल के रूप में आपके जीवन में भी कुछ अच्छा ही होता है।
अम्मा का पात्र जमीन से उठकर अपने जीवन के शीर्ष पर पहुंचता है। इस यात्रा में अम्मा के जीवन के सारे संघर्ष इस पुस्तक के भीतर विद्यमान हैं और संघर्ष के भीतर से जीवन कैसे सकारात्मक भाव से सँवरकर आगे बढ़ता है, इसकी बड़ी रोचक और मार्मिक गाथा इस पुस्तक में कही गई है। पूरी कथा फ्लैशबैक में कही गई है। अम्मा के देहावसान की खबर से उपन्यास का प्रारंभ होता है और फिर किसी फिल्म की तरह अम्मा के जीवन की यात्रा का वर्णन लेखक के द्वारा किया जाता है। अम्मा के व्यक्तित्व का चित्रण प्रभावशाली है। लेखक लिखते हैं कि, अम्मा का चौड़ा चमकीला माथा, उनके चेहरे का तेज और अत्यंत गरिमामय व्यक्तित्व उनके हृदय को प्रभावित करता है और वे उनसे टूटी-फूटी हिंदी में बात कर लेते हैं। यहीं पर पता चलता है कि अम्मा की मूल भाषा तेलुगु है और कुछ-कुछ हिंदी में वह बात कर लेती है। अम्मा से बात करने पर लेखक को यह समझ में आता है कि उन्हें उनके जेठ जेठानी ने घर से बाहर निकाल दिया है। पति की मृत्यु 2 वर्ष पूर्व हो चुकी है और सारे रिश्ते पति की मृत्यु के साथ बदल गए हैं। उन्हें एक फालतू सामान की तरह घर से बाहर फेंक दिया गया है। इस बात को सुनकर ही लेखक उन्हें अपने घर पर ले आते हैं और वहां पर उसकी पत्नी जानकी भी अपने पूरे हृदय से अम्मा का स्वागत करती है, उन्हें पहले दिन से ही अपने परिवार का सदस्य बना लेती है। अम्मा भी परिवार की इस आत्मीयता को हृदय से स्वीकार करती है। परिवार के सारे सुख-दुख उसके अपने सुख-दुख हो जाते हैं और वह जिम्मेदारी के साथ न सिर्फ परिवार को संभालती है, अपितु समाज के लिए कुछ करने का उसका हौसला भी यहीं पर सामने आता है। अपनी इस समाज सेवा का प्रारंभ अम्मा एक स्वयं सहायता समूह बनाकर प्रारंभ करती है। अम्मा का दयालु स्वभाव उसे अपने कार्य में सफलता प्रदान करता है। जिस मल्टी में वह रहती हैं वहां के भी सारे लोग उनके आकर्षित करने वाले स्वभाव से बड़ी सहजता के साथ उनसे जुड़ जाते हैं और वह सबके सुख-दुख की साथी हो जाती है। अम्मा छोटे बच्चों के माता-पिता को काउंसलिंग करती है और बच्चों के पूर्ण विकास के लिए उनका मार्गदर्शन करती है। कथा का केनवास बहुत बड़ा है। कथा के प्रवाह में ही लेखक का बच्चा अमित जन्म लेता है। जब वह 3 साल से अधिक हो जाता है तो फिर एक और लड़के का जन्म होता है और जब वह बच्चा थोड़ा बड़ा होता है तो एक लड़की का जन्म होता है। यह पारिवारिक विकास भी कथा को जोड़े रखता है। अम्मा के सामाजिक यात्रा जो स्वयं सहायता समूह से प्रारंभ हुई वह बाद में कई सारे समूह तक विस्तारित होती है और अम्मा की इस लोकप्रियता से प्रभावित होकर बैंक के अधिकारी भी उनका सम्मान करते हैं। संस्थाएं सम्मान करती हैं तथा हर बात में उसका मार्गदर्शन लिया जाता है। अम्मा सोसायटी के लोगों से बात कर घर में काम करने वाली बाइयों की पगार हर साल बढ़वाने का काम भी करती है। स्वयं सहायता समूह के लोगों को वह शिक्षा का महत्व समझाती है और उनके सारे बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करती है। इसका प्रभाव भी अंत में दिखाया गया है कि बच्चे पढ़ कर ऊंची ऊंची पोस्ट पर चले जाते हैं। पूरे उपन्यास में लेखक कई बार अपने परिवार के साथ बाहर की यात्राएं भी करते हैं और उन यात्रा के संस्मरण बड़े रोचक तरीके से प्रस्तुत करते हैं, वहां पर भी अम्मा की भूमिका को रेखांकित करता हुआ उपन्यास आगे बढ़ता है।
इसके बाद अम्मा एक वृद्धाश्रम से जुड़ती है और वहां पर उनका ध्यान रखने के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य के परीक्षण के लिए, उनके मनोरंजन के लिए, उनके पुनर्वास के लिए, उनके भरण पोषण के लिए सरकार से सहायता उपलब्ध करवाने का काम करती है। बैंक के समाज सेवा प्रकोष्ठ से वह उस वृद्धाश्रम में कंबल प्रदान करती है, पंखे लगवाने का काम करती है और भी बहुत सारे काम विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से करवाने का काम अम्मा के द्वारा सतत किया जाता है। अम्मा अपने अगले कदम के रूप में स्ट्रीट चिल्ड्रन के लिए काम करती है और विभिन्न चैरिटेबल ट्रस्टों के द्वारा अनाथाश्रम को व्यवस्थित करवाती है। बच्चों की डॉक्टरी जांच करवाती है। उन्हें पौष्टिक आहार प्रदान करवाती है और उनके अध्ययन की व्यवस्था करवाती है। अम्मा का मार्गदर्शन सभी लोग मानने लगते हैं और अम्मा बच्चों के मध्य बाल सभा करवाने के साथ-साथ उन्हें दर्शनीय स्थलों की यात्रा भी करवाने लगती है। इस तरह जो सड़क के बच्चे रहते हैं, उन्हें भी एक घर प्राप्त हो जाता है।
इसके बाद अम्मा एक अस्पताल से जुड़ती है और वहां की व्यवस्थाओं में सुधार करवाने का काम करती है। इसके साथ में ही वह प्रयास कर उस हैदराबाद शहर में एक कैंसर अस्पताल की भी स्थापना करवाती है। अम्मा को सारे रोगी पसंद करते और यह मानते कि अम्मा का उनके सर पर यदि हाथ आ जाएगा तो वे स्वस्थ हो जाएंगे। अम्मा भी सबके सिर पर अपना हाथ बड़े प्रेम के साथ रखती थीं।
अम्मा के सामाजिक कार्य कभी रुकते नहीं हैं। वह आश्रम का निरीक्षण करती रहती है। विभिन्न स्थानों के आश्रम उनकी निगाह में रहते हैं और जब कहीं पर कोई अव्यवस्था देखी है तो उसका निराकरण तुरंत करती हैं। वर्षा के मौसम में अम्मा सबको प्रेरित करती है कि वे वृक्ष लगाए, वृक्षों की सेवा करें और नए पौधों की पूरी देखभाल करें। इस कार्य में वह प्रशासन को भी शामिल कर लेती हैं। अम्मा एक पुस्तकालय की स्थापना कर बच्चों को पुस्तक पढ़ने के लिए प्रेरित करती है और इसी प्रकार समय आने पर वह विभिन्न संस्थाओं का निरीक्षण भी करती रहती है। एक बार जब वह फैक्ट्री का निरीक्षण करने जाती है तो वहां बोर्ड तो लगा रहता है कि यहां पर बाल श्रमिक प्रतिबंधित है, लेकिन जब वह फैक्ट्री के भीतर जाती है तो वहां पर बाल श्रमिक कार्य करते रहते हैं। इस बात पर अम्मा फैक्ट्री मालिकों से बात करती है और जब मालिक अपनी गलती मान लेते हैं, तो वह उन्हें कहती है कि पश्चाताप के रूप में अब आप इन बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करें और इस प्रकार उन बच्चों के जीवन को सुधारने का काम करती है। आश्रय के नाम से वह एक एनजीओ स्थापित करती है और विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्य उसके माध्यम से करती रहती है। मजदूरों को संगठित कर उनकी मांग मनवाने के लिए जी तोड़ कोशिश करती हैं। अम्मा के सामाजिक कार्यों को देखते हुए उन्हें सामाजिक क्षेत्र में सर्वोत्तम योगदान के लिए मानव सेवा पुरस्कार से मुख्यमंत्री के द्वारा सम्मानित किया जाता है, जिसमें 5 लाख का नगद पुरस्कार उन्हें प्राप्त होता है। अम्मा उस राशि को भी सेवा कार्य में लगा देती है। अम्मा विकलांगों के लिए भी काम करती है और उन्हें ट्राई साइकिल दिलवाने का काम करती है। कुल मिलाकर इस पूरी पुस्तक में अम्मा के विभिन्न क्षेत्रों में किए गए बहु आयामी कार्यों का विस्तार से जिक्र किया गया है और उसके माध्यम से अम्मा के उत्कृष्ट चरित्र को प्रस्तुत करने का काम किया गया है। अम्मा की जिंदगी व कर्म क्षेत्र के बहाने लेखक वृद्धाश्रम के वृद्धों का, अनाथाश्रम के बच्चों का, झुग्गी-झोपड़ी के रहवासियों का, विकलांगों का दुखड़ा भर नहीं रोता, बल्कि पाठक को हाथ पकड़कर उनकी जिंदगी में शामिल करता है। लेखक उपन्यास में अपने बच्चों के जीवन के निर्माण का भी जिक्र करते रहते हैं और अपनी पत्नी जानकी के जीवन के निर्माण का भी जिक्र उनकी बातों में रहता है। समय के साथ-साथ बच्चे बड़े होते हैं। उनका जीवन अच्छा होता है। सब अपने-अपने काम में लग जाते हैं और सूत्रधार की लड़की अम्मा के काम में उनका हाथ बंटाने लगती है। उपन्यास के अंत में यही लड़की अम्मा के निधन के बाद उस कार्य को अपने हाथ में ले लेती है और इस तरह लेखक ने समाज सेवा का कार्य पिछली पीढ़ी से नई पीढ़ी तक पहुंचा देने का दिशा निर्देश पुस्तक के माध्यम से किया है।
अम्मा ना सिर्फ अपनी देह का दान करने का फॉर्म भर देती है, अपितु पूरे परिवारजनों को एवं समाज के विभिन्न वर्गों को इस दिशा में प्रेरित करती है और उनसे भी फॉर्म भरवाती है। अम्मा के निधन के मार्मिक दृश्य से यह पुस्तक प्रारंभ होती है और अंत में यह उनकी अंतिम यात्रा पर समाप्त होती है जहां शपथ के अनुसार उनकी देह मेडिकल कॉलेज को दान कर दी जाती है। यह सारा चित्रण बहुत ही भावना पूर्ण तरीके से मार्मिक रूप से प्रस्तुत किया गया है जो पाठक को अम्मा से बहुत गहरे तक जोड़ देता है। यही इस उपन्यास की सफलता भी है। अम्मा के व्यक्तित्व की श्रेष्ठता को दर्शाने के लिए अंत में यह भी बताया गया है कि मरणोपरांत भारत सरकार अम्मा को पद्म विभूषण से सम्मानित करती है तथा यह सम्मान बिटिया अनु राष्ट्रपति के हाथों से प्राप्त करती है। अम्मा के बाद अनु की टीम इस समाज सेवा के कार्य को अपने हाथ में ले लेती है। अम्मा का चित्र गांधी अस्पताल में गणेश जी और साईं बाबा की मूर्ति के पास रख दिया जाता है। इस प्रकार उन्होंने समाज को जो दिया है उसको सम्मानित किया जाता है।
पुस्तक में ऐसी अनगिनत खूबियाँ है जिनका आस्वाद पढ़ते हुए ही लिया जा सकता है। उपन्यास के कुछ अंश :
अम्मा का उद्देश्य मात्र वृद्धाश्रम के बुजुर्गो की सेवा करना नहीं है बल्कि उनसे एवं उनके परिवार से बात कर आपसी विवादों को समाप्त कर समझौता कर बुजुर्गो की घर वापसी भी उद्देश्य है। पिछले तीन वर्षो में अम्मा ने अपने प्रयत्नों से सोलह बुजुर्गो की घर वापसी करवाई। अम्मा के विचारों के अनुसार वृद्ध व्यक्ति समाज के लिये संपत्ति की तरह हैं, बोझ की तरह नहीं और इस संपत्ति का लाभ उठाने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि उन्हें वृद्धाश्रमों में अलग-थलग करने के बजाय मुख्यधारा की आबादी में आत्मसात किया जाए। अम्मा कहती थीं कि बुजुर्गों की जगह हमारे दिलों में और घर में होनी चाहिए, वृद्धाश्रम में नहीं। (पृष्ठ 41)
कुछ सालों बाद अम्मा देख रही हैं कि झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों में से निहारिका एमबीए कर रही है, काव्या रिसर्च की तैयारी में लगी है, राहिल, सर्वेश और कावेरी सीए की तैयारी कर रहे हैं। सुप्रीथ पुलिस इंस्पेक्टर बन गया है। रामकृष्णा की हायर सेकंडरी स्कूल में शिक्षक की नौकरी लग गई है। वेंकैया आँध्रप्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन की तैयारी कर रहा है। दिव्या, वेणु गोपाल और भागमती राष्ट्रीयकृत बैंक में नौकरी कर रहे हैं। अमीना मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी कर रही है, रवि मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस कर रहा है, अर्जुन सिविल सर्विसेज की तैयारी में व्यस्त है। शशिकला ने एमए समाजशास्त्र विषय में कर लिया है। सभी अपना करिअर, अपनी पहचान बनाने में जुटे हैं। (पृष्ठ 70)
अम्मा का सहयोग और अर्जुन की मेहनत से अर्जुन का सिलेक्शन सिविल सर्विसेज में हो गया। अर्जुन की यूपीएससी में तीसरी रैंक आई। सफलता की चमक ने उसके चेहरे की रौनक बढ़ा दी थी। अर्जुन ट्रेनिंग के लिए मसूरी चला गया। मसूरी से ट्रेनिंग पूरी कर अर्जुन की पहली पोस्टिंग एसडीएम के पद पर आँध्रप्रदेश में ही एक कस्बे में हुई। (पृष्ठ 71)
एक दिन जानकी घर के कामों में लगी हुई थी तब अम्मा ने जानकी को आवाज देकर बुलाया और कहा "मीरु रोजंता पनिलो बिजीगा उंटारु. पिल्लल बाल्यं तिरिगि रादु, वारितो कूडा कोत समयं गडपंडि. जीवितंलोनि आनंदं आनंदं कादु. आनंदंतो जीवितान्नि गडपंडि. मी जीवितमंता पनि जरुगुतूने उंटुंदि."
("तुम दिन भर काम में लगी रहती हो। बच्चों का बचपन दोबारा लौट कर नहीं आएगा, कुछ समय बच्चों के साथ भी गुज़ारों। जिंदगी का मजा सुख नहीं आनंद है। आनंद के साथ जिंदगी जिओं। काम तो जिंदगी भर होते रहेंगे।") (पृष्ठ 91)
अम्मा अपनी जीवन संध्या में भी ऊर्जावान व सकारात्मक दिखती थीं। हैदराबाद में जितने भी मेहनतकश लोग थे, उन्हें कोई भी समस्या होती तो वे आशा भरी निगाहों से अम्मा की ओर देखते थे। अम्मा को सभी लोग आसमान से उतरा देवदूत मानते थे। उन्हें देखकर लगता था कि मानो ये अक्षय ऊर्जा का कोई स्त्रोत है। अम्मा की तरफ कभी भी देखो, आँखों में वही चमक, आवाज में वही खनक। थकती नहीं हैं ये अम्मा? हर काम को करने में ग़ज़ब का उत्साह। ऐसे व्यक्ति पूरे माहौल को ताजगी से भर देते हैं। अम्मा के शब्द मरीजों के लिए औषधि का काम करते थे। अम्मा का जीवन उन तमाम लोगों के लिए अक्षर प्रेरणा हैं, जो संघर्ष और सेवा के क्षेत्र में प्रतिबद्ध भाव से सेवा करना चाहते हैं। अम्मा के पास जब भी जाओ, मिलो, गले से लगा लेती थीं और पीठ पर हाथ सहलाती थीं तो ऐसा लगता था जैसे कोई जादू का असर हो रहा है। (पृष्ठ 115)
क्या सभी को अहसास हो चला था कि अम्मा चीर निद्रा में जा चुकी हैं। पेड़ों से गिरने वाले पत्ते तक खामोश थे। तालाब का पानी बिना किसी लहर के चुपचाप पड़ा था। आज सारा शहर उदास था। (पृष्ठ 118)
राज्य के मुख्यमंत्री, राज्य के कई मंत्री और देश के समाज कल्याण मंत्री भी अम्मा की अंतिम यात्रा में शामिल थे। महात्मा गांधी की अंतिम यात्रा के अलावा किसी की भी अंतिम यात्रा में इतने लोग पहले कभी नहीं आये थे। इतने पुरुष और महिलाओं की भीड़। इतने पत्रकार। कैमरे। टीवी के लोग। हैदराबाद की जनता अम्मा को चाहती थीं। (पृष्ठ 119)
आज सभी अनु की शादी का एलबम देख रहे हैं। कित्ती अच्छी फोटो आई थी अम्मा की? और फिर स्मृतियों के गलियारे में टहलते-टहलते ही सभी की पलकें भीग जाती हैं। यादों का सफ़र अकसर आँसूओं पर ही समाप्त होता है। (पृष्ठ 125)
यह उपन्यास कई लिहाज़ से अनूठा है। इस उपन्यास में अनुभूतियों की सच्चाई है। इसका सधा हुआ कथानक, सरल-स्पष्ट भाषा, चरित्र चित्रण व पात्रों के आपस की बारीकियाँ, पात्रों का रहन-सहन, व्यवहार, उनकी स्वाभाविकता, सामाजिक, आर्थिक स्थिति आदि बिंदुओं, हैदराबाद की पृष्ठभूमि इसे बेहद उम्दा उपन्यास बनाती है। भाषा में विशिष्टता, शब्दों का चयन, वाक्यों की बुनावट इस उपन्यास को अत्यंत पठनीय बनाता है। उपन्यास की कथा बहुत ही रोचक व संवेदनशील है। उपन्यास पढ़ते हुए मेरी आँखें भीग आई थीं। बगैर किसी भूमिका के एक पुस्तक पाठक के सामने प्रस्तुत होती है और समर्पण के तुरंत बाद पहले पृष्ठ से ही एक कथा यात्रा प्रारंभ हो जाती है। अज्ञेय ने एक जगह पर कहा है कि जब कोई कथा या उपन्यास बिना किसी भूमिका के प्रारंभ हो जाते हैं तो वह अपनी सफलता का रास्ता स्वयं बुन लेते हैं। कथाकार दीपक गिरकर ने इस उपन्यास की कहानी को इस तरह ढाला है कि वह पाठक को अपने रौं में बहाकर ले जाती है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आप अम्मा, बाबूजी, जानकी, अमित, आशीष, अनु, रेड्डी साहब, अनिल, प्रोफेसर नायडू, गोदावरी, अनुराधा, कल्याणी मैडम, श्रीनिवासन साहब, सी. रेड्डी सर, श्रीधर राव सर, मारवाड़ी समाज ट्रस्ट के अध्यक्ष रामेश्वर माहेश्वरी जी, डॉक्टर अमन भार्गव, दीपाली, तेजस्विनी, अमय, विपुल, रंजना, विमला, संजना, कनिका, इमरान, आकांक्षा, अन्नपूर्णा, रामा, निहारिका, अमित, काव्या, राहिल, अमीना, दिव्या, रवि, अर्जुन, शशिकला, कृष्णमूर्ति, सर्वेश, सुप्रीथ, रामकृष्णा, वेंकैया, वेणु गोपाल, भागमती, कावेरी, सी. अनसूया, शमीना, अंजलि, श्वेता, रुक़य्या, अम्बाली, चित्रा, दीपंकर, ईशान, ऋत्विक और रागव इत्यादि किरदारों से जुड़ जाते हैं। लेखिका ने पात्रों का चरित्रांकन स्वाभाविक रूप से किया है। जीवन के गहरे मनोभावों को लेखक ने पात्रों के माध्यम से अधिकाधिक रूप से व्यक्त किया है। कथाकार ने किरदारों को पूर्ण स्वतंत्रता दी है। कथाकार दीपक गिरकर ने स्थानीय संस्कृतियों, सभ्यताओं, उनके इतिहास और विभिन्न सामाजिक संरचनाओं को बड़ी सूक्ष्मता से चित्रित किया है। इस कृति में लेखक की परिपक्वता, उनका सामाजिक सरोकार स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। लेखक दीपक गिरकर ने अनुभवजन्य भावों को सार्थकता के साथ चित्रित किया है। इस उपन्यास को पढ़ने वाले की उत्सुकता बराबर बनी रहती है वह चाहकर भी उपन्यास को बीच में नहीं छोड़ सकता। उपन्यास की कहानी में प्रवाह है, अंत तक रोचकता बनी रहती है। इस उपन्यास में गहराई, रोचकता और पठनीयता सभी कुछ हैं। दीपक गिरकर एक सशक्त और रोचक उपन्यास रचने के लिए बधाई के पात्र हैं।
पुस्तक: अम्मा (उपन्यास)
लेखक: दीपक गिरकर
प्रकाशक: न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, सी-155, बुद्ध नगर, इंद्रपुरी, नई दिल्ली- 110012
आईएसबीएन नंबर : 978-93-6407-634-0
मूल्य: 225/- रूपए
- सतीश राठी
आर 451, महालक्ष्मी नगर,
इंदौर - 452 010