By अभिनय आकाश | Jul 29, 2021
बॉलीवुड की चकाचौंध से लेकर जेल की कालकोठरी तक, शोहरत से लेकर बदनामी तक, नायक से खलनायक तक। फिल्म अभिनेता संजय दत्त की जिंदगी की कहानी में विवाद है, राजनीति है, ग्लैमर है जो कि अक्सर हिंदी मसाला फिल्मों में आपको देखने को मिलती है। संजय दत्त की जिंदगी पर फिल्म भी बन चुकी है। लेकिन आज हम आपको संजय दत्त के स्टार से लेकर अदालत द्वारा गुनहगार ठहराए जाने की पूरी कहानी सुनाएंगे जो कि किसी फिल्मी स्क्रिप्ट की तरह नहीं होगी। न ही इसमें इमेज मेकओवर की कोई कोशिश होगी और न ही किसी जुर्म पर पर्दा डालने की साजिश। जिसके लिए हमने संजय दत्त के केस से जुड़े हर दस्तावेज, रिपोर्ट्स और हर पहलुओं का बारिकी से अध्ययन करने के बाद ये रिपोर्ट तैयार की है।
जनवरी 1993 में मुंबई दंगों की आग में झुलस रहा था। सुनील दत्त उस वक्त पश्चिमी मुंबई से कांग्रेस के सांसद थे। दंगों को देखकर सुनील दत्त खुद को रोक नहीं पाए। हुतात्मा चौक पर सुनील दत्त दंगाइयों को रोकने के लिए पहुंच गए। दत्त साहब ने कहा- जब तक वह हैं, मुंबई में दंगा नहीं होने देंगे। जिस वक्त सुनील दत्त दंगाइयों को चुनौती दे रहे थे, उस वक्त फिल्म अभिनेता संजय दत्त के पास एक फोन आता है। फोन करने वाले ने संजय दत्त को धमकी देते हुए कहा कि अपने पापा सुनील दत्त को वापस जाने के लिए कहो। अगर ऐसा नहीं हुआ तो अच्छा नहीं होगा। संजय दत्त ने अपने परिवार की सुरक्षा के लिए दाऊद इब्राहिम के भाई अनीस इब्राहिम से एके-47 और कुछ कारतूस हासिल किए। दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार की किताब 'डायर डी फॉर डॉन' के अनुसार अनीस और संजय दत्त के बीच दोस्ती 'यलगार' फिल्म की शूटिंग के दौरान हुई थी और संजय दत्त ने तब अपने परिवार की सुरक्षा के लिए अनीस से हथियार मांगे थे। दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर की किताब के दावे के अनुसार दाऊद ने इस बात के लिए अपने भाई को बहुत पीटा भी था। कहा जाता है कि दाऊद और उसके भाई अनीस से संजय दत्त को फिरोज खान ने दुबई में मिलवाया था। जिसके बाद अनीस कभी शूटिंग तो कभी होटल में भी संजय दत्त से मुलाकात करने आने लगा। दाऊद ने एक दिन यलगार फिल्म की पूरी यूनिट को अपने घर डिनर के लिए भी बुलाया। जहां संजय दत्त की मुलाकात इकबाल मिर्ची, शरद शेट्टी और छोटा राजन से हुई। इन सारे चेहरों को संजय दत्त के दोस्त हनीफ और समीर भी जानते थे। इन्हीं की दोस्ती की वजह से संजय दत्त ने उनकी फिल्म सनम में काम किया।
मुंबई में 12 जगह हुए धमाके
12 मार्च 1993, शुक्रवार का दिन उस वक्त मुंबई शहर बॉम्बे के नाम से जाना जाता था। हवा में कुछ तल्खी पहले से थी क्योंकि 3 महीने पहले इस शहर ने दंगे का दंश झेला था। दोपहर के 1:30 हो रहे थे। शहर में 12 अलग-अलग जगह पर बम धमाके हुए। अपराधियों ने सहार इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर भी हैंड ग्रेनेड फेंके। मुंबई शहर ने ऐसा कत्लेआम फिल्मों में भी नहीं देखा था।
मरने वाले थे 257 और घायलों की संख्या 713 थी। पुलिस अपनी नाकामी के मलबों में सुराग और सबूत तलाश रही थी। 1 महीने के भीतर 400 लोगों को हिरासत में लिया गया पूछताछ हुई तभी एक जाना पहचाना नाम सामने आया- "संजय दत्त"।
पवार ने मस्जिद में ब्लास्ट को लेकर बोला झूठ
शरद पवार ने अपनी जीवनी ‘ऑन माई टर्म्स’ में कई खुलासे किए। पवार ने इसमें 1993 में चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद हुए बम धमाकों को लेकर जिक्र किया है। किताब के अनुसार, पवार अफवाहों के फैलने से परेशान थे और शांति लाना चाहते थे। मुंबई में जिन 11 जगहों पर ब्लास्ट हुए थे वे सभी हिंदू बहुल इलाके थे। आतंकियों की मंशा यही थी कि ब्लास्ट के बाद सांप्रदायिक तनाव फैल जाए। इसलिए उन्होंने टेलीविजन स्टूडियो से यह ऐलान किया कि मुंबई में 11 नहीं बल्कि 12 बम ब्लास्ट किए गए हैं। 12वां ब्लास्ट मस्जिद बांदेर इलाके में भी हुआ है। इससे दोनों ही समुदायों में यह संदेश गया कि समुदाय विशेष को निशाना नहीं बनाया गया है। पवार ने बताया कि इसका उल्लेख उन्होंने जस्टिस श्रीकृष्ण कमिशन के सामने भी किया था और इस तात्कालिक निर्णय का कमिशन ने तारीफ भी की थी।
मुस्लिम महिलाओं ने दाऊद को भेजी चूड़ियां और फिर...
13 मार्च को ट्रैफिक डीसीपी राकेश मारिया को ब्लास्ट के इन्वेस्टिगेशन का जिम्मा मिला था। कमान संभालते ही शाम को मारिया ने पहला ऑर्डर दिया कि कंट्रोल रूम फीड पर पैनी नजर रखी जाए। रात के 8:00 बजे यह सारी बात हुई और करीब 9:30 बजे पहला सुराग भी मिल गया था। पता चला कि वर्ली में हथियारों से भरी एक वैन मिली है। 10:30 बजे तक पुलिस ने वैन को जब्त भी कर लिया। वैन में से सात एके-56 असाल्ट राइफल, 14 मैगजीन, पिस्टल और चार हैंड ग्रेनेड मिले। पता चला कि वैन किसी रुबीना सुलेमान मेमन के नाम पर है, जिसका पता था माहिम की अलहुसैनी बिल्डिंग। मारिया ने अपने इंफॉर्मर से पूछा कि इस अलहुसैनी बिल्डिंग के मेमन कौन हैं तो जवाब मिला- टाइगर मेमन। पुलिस टाइगर मेमन के फ्लैट की तलाशी लेने पहुंची। टाइगर मेमन के फ्लैट से एक बजाज स्कूटर की चाबी मिली। टाइगर मेमन ने ही धमाके के लिए 23 लड़कों की टीम तैयार की थी। धमाके के बाद भारत छोड़कर नेपाल भाग जाने के लिए सभी को पांच-पांच हजार रुपये भी दिए गए। हमले के जिम्मेदार एक-एक शख्स को पकड़कर भारत लाने की कोशिश शुरू हो गई और इसके लिए पुलिस की 162 लोगों की टीम तैयार की गई। देश के 21 राज्यों के 89 शहरों में सर्च अभियान चलाने के बाद आईएसआई और सिमी का नाम सामने आया। राकेश मारिया की किताब "लेट मी से नाऊ" के अनुसार 1992 के बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद मुंबई के कुछ मुस्लिम इसका बदला लेना चाहते थे। जिसके लिए दुबई में बैठे अंडरवल्ड डॉन दाऊद से मदद मांगी गई। पहले तो दाऊद ने साफ मना कर दिया। लेकिन कहा जाता है कि कुछ मुस्लिम महिलाओं ने दाऊद को चूड़ियां लानत के तौर पर भेजी। ये बात दाऊद को लग गई और उसने टाइगर मेमन और मोहम्मद दौसा के साथ मिलकर मुंबई को दहलाने की प्लानिंग रच डाली।
कैसे संजय दत्त का नाम आया सामने
पुलिस ने पूरी साजिश में शामिल बादशाह खान, हनीफ और समीर नामक तीन लोगों को पकड़ा। कड़ाई से पूछताछ करने पर इन लोगों से ही सबसे चौंकाने वाला नाम सामने आया। पूछताछ के दौरान हनीफ और समीर ने राकेश मारिया से कहा कि साब आप बड़े लोगों को क्यों नहीं पकड़ते? मारिया ने जवाब में पूछा- कौन बड़े लोग? दोनों ने एक ही सुर में बोला- संजू बाबा। मारिया शायद इस उपनाम से भलिभांति परिचित नहीं थे या फिर उन्होंने इसके बारे में सोचा भी नहीं होगा। इसलिए उन्होंने गिरफ्तार किए गए शख्स से पूछा कौन संजू बाबा? हनीफ और समीर ने जवाब दिया- हीरो संजय दत्त। मारिया ने अपनी किताब "लेट मी से नाऊ" में लिखा कि मुझे अपने कानों पर भरोसा नहीं था लेकिन संजय दत्त का नाम इस केस से जुड़ चुका था। पुलिस की जांच में पाया गया कि भरूच से मुंबई तक कुछ हथियार लाए गए थे। लेकिन इन्हें कहीं भी रखने की जगह नहीं थी। तभी अनीस इब्राहिम ने सुझाव दिया था कि हीरो (संजय दत्त) के घर पर रख सकते हैं। संजय दत्त के घर पर तीन एके 56 रायफल, 25 हैंड ग्रेनेड और एक 9 एमएम पिस्टल रखी गई, जो बाद में खतरनाक काम में इस्तेमाल आई।
कैसे हुई गिरफ्तारी
पुलिस संजय दत्त के घर पहुंची। जहां उन्हें कुछ पता तो नहीं चला सिवाये इसके कि संजय दत्त फिल्म की शूटिंग के लिए मॉरिशस गए हैं। ये जानकारी खुद संजय दत्त के पिता सुनील दत्त ने पुलिस को दी। 19 अप्रैल 1993 को संजय दत्त की फ्लाइट मॉरीशस से मुंबई लैंड करती है। फ्लाइट से उतरते ही उनके सामने राकेश मारिया थे। उन्होंने अपना परिचय देते हुए संजय से उनका पासपोर्ट और बोर्डिंग पास ले लिया। जिसके बाद संजय पुलिस जीप में थे और पूरे रास्ते किसी ने उनसे एक शब्द नहीं बोला, जबकि संजय बार-बार कह रहे थे कि आप ये नहीं कर सकते, मुझे मेरी फैमिली से मिलने दीजिए।
कैसे कबूल किया गुनाह
गिरफ्तारी के बाद संजय दत्त ने गुनाह कबूल करने का फैसला किया। ये संजय दत्त का बड़ा फैसला था। संजय दत्त पर जो आरोप लग रहे थे वो टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज एक्ट (टाडा) के तहत उन्हें आरोपी बनाने के लिए काफी थे। यानी की आतंकावदियों की फेहरिस्त में बॉलीवुड स्टार संजय दत्त का नाम। टाडा कानून के मुताबिक कबूलनामा का इस्तेमाल अभियुक्त के खिलाफ फैसले में किया जा सकता है।
संजय दत्त ने डीसीपी कृष्ण लाल बिश्नोई के सामने वो कहानी कही जिसने उन्हें स्टार से कैदी बना दिया और बॉम्बे बम धमाके का आरोपी नंबर 117 बना दिया। राकेश मारिया ने अपनी किताब में कहा कि तफ्तीश के दौरान संजय दत्त का सामना उस वक्त के सांसद सुनील दत्त से कराया। पिता को सामने देखते ही संजय दत्त मारिया के सामने जोर-जोर से रो पड़े और कहा- मेरे से गलती हो गई। अप्रैल में हिरासत में लिए जाने के बाद 4 जुलाई 1994 को आर्म्स एक्ट के मामले में संजय दत्त की बेल कैंसिल कर उन्हें जेल भेज दिया गया। यह सुनील दत्त के लिए सबसे मुश्किल वक्त था। देश का सांसद होते हुए भी अपने बेटे को जेल जाने से नहीं बचा पाए। 15 महीने संजय दत्त को जेल में रहना पड़ा। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने संजय दत्त को 1995 में जमानत पर रिहा कर दिया। लेकिन दो ही महीने बाद दिसंबर 1995 में उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया।
अमिताभ का किस्सा याद दिला सुनील दत्त को दी गई बाल ठाकरे से मिलने की सलाह
सुनील दत्त की सारी जद्दोजहद इसी बात पर थी कि उनके बेटे की बेगुनाही सामने आए। इसके लिए उन्हें हर तरफ मदद की दरकार थी। सबसे ज्यादा तो अपने ही घर से, यानी कांग्रेस से। उन्हें निराश ही होना पड़ा। महाराष्ट्र में शरद पवार, मुरली देवड़ा या फिर दूसरे ऊंचे रसूख वाले हर नेता की तरफ उन्होंने नजर उठाई, मगर उन्हें निराश ही होना पड़ा। सुनील दत्त ने इस दौरान संजय दत्त की रिहाई के लिए बहुत कोशिश की और कई जाने-माने लोगों से मुलाकात भी की। इस समय महाराष्ट्र, कांग्रेस पार्टी का गढ़ था, जिसने आजादी के बाद से दशकों तक इस पर शासन किया था। लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सहयोग से बाल ठाकरे की शिवसेना के उदय और हिंदुत्व की गहरी विचारधारा के प्रवाह के साथ राज्य का राजनीतिक रंग एक नए स्वाद का अनुभव कर रहा था।
उल्लेखनीय है मुंबई विस्फोट का कड़ा विरोध करने वाली शिवसेना संजय दत्त की कथित आपराधिक गतिविधियों के खिलाफ पार्टी के मुखपत्र सामना में अभियान चला रही थी। हालाँकि, घटनाओं का एक आश्चर्यजनक मोड़ तब आया जब ठाकरे ने शिवाजी पार्क में एक पार्टी की बैठक में घोषणा की कि दत्त निर्दोष हैं। यह न केवल भाजपा के लिए एक आश्चर्य घटना थी बल्कि अपनी ही पार्टी के सदस्यों को हैरान कर देने ऐलान था। महाराष्ट्र में सत्ता का परिवर्तन 1995 में हो चुका था और सूबे के तख्त पर बीजेपी और शिवसेना की सरकार बन चुकी थी। कई मीडिया रिपोर्ट्स तो यहां तक दावे करते हैं कि संजय दत्त को बचाने के लिए दत्त साहब ने अपना राजनीतिक विरासत दांव पर लगाते हुए बाल ठाकरे की शरण ली थी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई बम धमाकों में संजय का नाम आने के बाद सुनील दत्त ने बाल ठाकरे से मदद मांगी थी। सुनील दत्त उस दौर में सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ थे जबकि बाल ठाकरे हिंदुओं के ब्रांड नेता थे।कांग्रेस के दिग्गज नेता होने के बावजूद जब सुनील दत्त को अपनी ही पार्टी से कोई मदद की आस नहीं दिखी तो उनके समधी और एक्टर राजेंद्र कुमार ने उनको बाल ठाकरे से मिलने की सलाह दी। शुरुआत में तो सुनील दत्त ने बाल ठाकरे से मदद मांगने इंकार दिया। लेकिन राजेंद्र ने दत्त को अमिताभ बच्चन का किस्सा याद दिलाया जब अमिताभ का नाम बोफोर्स कांड में उजागर हुआ था। तब उनकी फिल्म को बैन करने की बात होने लगी थी। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो सुनील दत्त को देखते ही बाल ठाकरे ने कहा था, “मैं जानता हूं तुम मुझे पसंद नहीं करते, लेकिन मैं एक जमाने में तुम्हारी अदाकारी का फैन रहा हूं। ठाकरे से ऐसी बात सुनकर सुनील दत्त काफी भावुक हो गए थे। और रो पड़े थे। उस वक्त बाल ठाकरे ने मदद की थी। बाल ठाकरे के हस्तक्षेप से, संजय दत्त को 18 महीने जेल में बिताने के बाद 1995 में रिहा कर दिया गया। संजय की रिहाई के बाद उनका पहला पड़ाव बाल ठाकरे के आवास मातोश्री था। ठाकरे ने संजय दत्त को फटकार लगाई और कहा, अब वही करना जो तुम्हारे पिता चाहते हों। किसी और के बहकावे में मत आना। तब से दत्त पूर्व सेना प्रमुख के प्रति अपना आभार व्यक्त करने से कभी नहीं कतराते।
जेल आने-जाने का सिलसिला चलता रहा
लेकिन दो ही महीने बाद दिसंबर 1995 में उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। लंबी क़ानूनी जद्दोजहद के बाद 1997 में उन्हें फिर ज़मानत मिली। संजय के केस की सुनवाई अब साल 2006 में होनी थी। साल 1997 से 2006 के बीच संजय ने कई बड़ी फ़िल्मों में काम किया। 31 जुलाई, 2007 को जब टाडा कोर्ट ने अभिनेता संजय दत्त को छह साल की सज़ा सुनाई। इसके बाद संजय दत्त का जेल जाने और आने का ऐसा सफ़र शुरू हुआ, जिसकी आलोचना सभी जगह हुई। 31 जुलाई को सज़ा सुनाए जाने के बाद संजय दत्त साल 2007 में दो बार जेल से ज़मानत पर बाहर आए और वापस गए। यह सिलसिला तब थमा, जब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम ज़मानत दे दी। साल 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने टाडा अदालत के फ़ैसले को सही ठहराते हुए संजय को पांच साल की सज़ा सुनाई। संजय को दी गई इस सज़ा के ख़िलाफ़ बॉलीवुड के कई निर्माताओं ने अपील की बात भी रखी थी क्योंकि उन पर कई करोड़ की फ़िल्मों का भविष्य टिका था। इसके साथ ही पूर्व जज मार्कंडेय काटजू ने याचिका दायर कर उनकी सजा माफ़ करने की गुहार भी लगाई। संजय के सजा माफ़ी की वकालत करने वालों का तर्क था की उनके पीछे उनका परिवार और छोटे-छोटे बच्चे है। गौर करने वाली बात ये है कि अगर सिर्फ इस आधार पर किसी इन्सान को माफ़ी मिलने लगे तो फिर हरेक आरोपी और जेल में बंद कैदी का परिवार होता है तो क्या उन सब को भी माफ़ कर देना चाहिए ? या फिर संजय एक फिल्म अभिनेता व अभिजात वर्ग से सम्बन्ध रखते है सिर्फ इसलिए उन्हें कानून में इतनी तो छूट मिलनी चाहिए। हालांकि अदालत ने ऐसी किसी भी अपील को मान्यता नहीं दी। संजय जेल जाने के बाद भी विवादों में रहे। यह विवाद तब शुरू हुआ जब उन्होंने पैरोल पर बाहर आना शुरू किया। इस दौरान संजय दत्त पर फिल्मों की शूटिंग करने के आरोप लगते रहे। मीडिया में काफ़ी सवाल उठे और यह विवाद इतना बढ़ा कि महाराष्ट्र सरकार ने पैरोल के नियम सुधारने के लिए प्रस्ताव भी सदन में रखा। संजय दत्त 27 फरवरी 2016 को पुणे की येरवडा जेल से रिहा हो गए। महाराष्ट्र सरकार ने उनके अच्छे आचरण के आधार पर उनकी सजा में करीब 18 महीने की कमी कर दी।-अभिनय आकाश