By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Nov 15, 2019
नयी दिल्ली। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बृहस्पतिवार को कहा कि अतीत में पाकिस्तान से निपटने के तौर तरीकों से कई प्रश्न खड़े होते हैं तथा 1972 के शिमला समझौते के फलस्वरूप पाकिस्तान प्रतिशोध की भावना में डूब गया और जम्मू कश्मीर में दिक्कतें होने लगीं। जयशंकर ने पाकिस्तान से निपटने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘साहसिक कदमों’ की सराहना की। विदेश मंत्री ने कहा कि पाकिस्तान से निपटने के लिए निरंतर उस पर दबाव बनाये रखना बहुत जरूरी है, उसने ‘‘आतंक का उद्योग’’ खड़ा कर लिया है।
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जयशंकर ने यहां चौथे ‘रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान’ देते हुए एक ऐसी विदेश नीति की वकालत की जो यथास्थितिवादी नहीं बल्कि बदलाव की सराहना करती हो और उन्होंने इस संदर्भ में 1962 में चीन के साथ लड़ाई, शिमला समझौते, मुम्बई हमले के बाद प्रतिक्रिया नहीं जताने जैसे भारतीय इतिहास की अहम घटनाओं का जिक्र किया और उसकी तुलना में 2014 के बाद भारत के अधिक गतिशील रूख को पेश किया। उन्होंने कहा कि विश्व मंच पर भारत की स्थिति लगभग तय थी लेकिन चीन के साथ 1962 के युद्ध ने उसे काफी नुकसान पहुंचाया। उन्होंने कहा कि अगर (आज) दुनिया बदल गयी है तो हमें उसी के अनुसार, सोचने, बात करने और सम्पर्क बनाने की जरूरत है। पीछे हटने से मदद मिलने की उम्मीद नहीं है। उन्होंने साथ ही कहा कि ‘‘राष्ट्रीय हितों का उद्देश्यपूर्ण अनुसरण, वैश्विक गति को बदल रहा है।’’ उन्होंने आतंकवाद से निपटने में भारत के नये रुख को रेखांकित करते हुए मुम्बई आतंकवादी हमले पर ‘‘प्रतिक्रिया की कमी’’ की तुलना, उरी और पुलवामा हमलों पर की गई कार्रवाई से की।
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से भारत के अलग होने पर विदेश मंत्री ने कहा कि खराब समझौते से कोई समझौता नहीं होना बेहतर है। उन्होंने भू राजनीतिक मुद्दों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करते हुए कहा, ‘‘वर्षों से भारत की विश्व मंच पर स्थिति लगभग तय नजर आ रही थी लेकिन 1962 में चीन के साथ युद्ध ने उसे काफी नुकसान पहुंचाया।’’ रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान का आयोजन इंडियन एक्सप्रेस समूह ग्रुप द्वारा किया गया।