By अभिनय आकाश | Oct 09, 2021
क्या चीन भारत से युद्ध करके ही मानेंगा। ये सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि पिछले हफ्ते अरुणाचल प्रदेश में चीनी घुसपैट की खबर आई। हालांकि भारतीय सेना ने घुसपैठ को नाकाम तो कर दिया। खबर तो यहां तक है कि कई चीनी सैनिकों को बंदी बना लिया गया था। जिन्हें दोनों देशों के कमांडर्स की मीटिंग के बाद छोड़ा गया। वास्तविक नियंत्रण रेखावास्तविक नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी) के आस पास चीन की हिमाकत कुछ बढ़ती ही जा रही है। कभी उसके हेलीकॉप्टर आते हैं तो कभी उसके सैनिक पैंगोंग त्सो झील में कारस्तानी कर जाते हैं। लेकिन चीन की इस तरह की हरकतों की कहानी कोई नई बात नहीं बल्कि वर्षों पुरानी है। 1962 से लेकर 2021 तक में कई मौकों पर वो अपनी कारगुजारियों से बाज नहीं आया लेकिन हर बार उसे मुंह की ही खानी पड़ी है।
हिंदी चीनी भाई-भाई के बाद दलाई लामा को शरण तक
1947 में भारत को आजादी मिली और 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना बना। शुरुआती दिनों में भारत सरकार की पॉलिसी चीन से दोस्ताना रिश्तों की रही। 60 के दशक में भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाला नेहरू ने ने 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' का नारा दिया था। लेकिन 1959 में दलाई लामा को शरण लेने के लिए भारत आए तो उनका जोरदार स्वागत किया गया। फिर माओ जिदोंग ने भारत पर तिब्बत में ल्हासा विद्रोह को भड़काने का आरोप लगाया। इसके बाद दोनों देशों के संबंधों में तनाव आने लगा। चीन तिब्बत पर अपने शासन के रास्ते में भारत को खतरे के तौर पर देखने लगा, जो भारत-चीन युद्ध की बड़ी वजह बना। 1959 के बाद से 1962 के बीच भारत और चीन के बीच छिटपुट संघर्ष होने लगा।
चीन का विश्वासघाती खंजर
वैसे तो दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है जिसने चीन से दोस्ती करने की कोशिश की और बदले में उसी चीन की मक्कारी और धोखेबाजी देखने को न मिली हो। जब दोस्ती की पीठ पर दगाबाजी का खंजर चलाया जाता है तो उसे 1962 का भारत चीन युद्ध कहते हैं। तब दोस्ती का भरोसा हिंदुस्तान का था, विश्वासघात का खंजर चीन का। लेकिन उस वक्त भारत को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि चीन ऐसा कुछ करने वाला है। युद्ध की शुरुआत 20 अक्टूबर, 1962 को हुई। चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी ने लद्दाख पर और नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) में मैकमोहन लाइन के पार हमला कर दिया।
मैकमोहन लाइन और अरुणाचल विवाद
मैकमोहन लाइन के पश्चिम में भूटान, पूरब में ब्रहमपुत्र नदी का ग्रेट बेंड, यारलौंग जांगलुक के चीन से बहकर अरुणाचल प्रदेश में घुसने और ब्रह्मपुत्र नदी बनने से पहले नदी दक्षिण में घुमावदार तरीके से मुड़ती है। जिसे ग्रेट बेंड कहते हैं। 1914 में जब भारत में ब्रिटिश शासन था और तिब्बत सरकार के साथ शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। ब्रिटिश सरकार के एक प्रशासक सर हेनरी मैकमोहन तिब्बत सरकार के प्रतिनिधि के साथ समझौता करने वाले व्यक्ति थे। जिनके नाम पर तिब्बत और भारत की सीमा को मैकमोहन लाइन का नाम दिया गया। लेकिन चूंकि चीन तिब्बत को स्वायत्त नहीं मानता है, इसलिए उसने तिब्बत सरकार द्वारा हस्ताक्षर किए उस समझौते को भी कभी नहीं माना। वहीं दूसरी ओर भारत में मैकमोहन लाइन को दर्शाता हुआ मानचित्र आधिकारिक रूप से 1938 में प्रकाशित हो गया था और तब ही से ये मान्य है।
क्यों हुआ था 1962 का भारत-चीन युद्ध
1962 में भारत पर चीन ने हमला क्यों किया था और इस युद्ध के पीछे चीन की मंशा क्या थी। इसको लेकर जितने सवाल उतने ही जवाब सामने आते हैं। लेकिन चीन के एक शीर्ष रणनीतिकार वांग जिसी ने इस युद्ध के 50 साल पूरे होने पर साल 2012 में दावा किया था कि चीन के बड़े नेता माओत्से तुंग ने 'ग्रेट लीप फॉरवर्ड' आंदोलन की असफलता के बाद सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी पर अपना फिर से नियंत्रण कायम करने के लिए भारत के साथ वर्ष 1962 का युद्ध छेड़ा था। युद्ध के शुरू होने तक भारत को पूरा भरोसा था कि युद्ध शुरू नहीं होगा, इस वजह से भारत की ओर से तैयारी नहीं की गई। यही सोचकर युद्ध क्षेत्र में भारत ने सैनिकों की सिर्फ दो टुकड़ियों को तैनात किया जबकि चीन की वहां तीन रेजिमेंट्स तैनात थीं। चीन ने एक महीने बाद 20 नवम्बर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी।
1967 में भारतीय सेना ने चीन को सबक सिखा दिया
1967 का टकराव उस वक्त शुरू हुआ जब भारत ने नाथु ला से सेबू ला तक तार लगाकर बॉर्डर एरिया को परिभाषित किया। 14200 फीट पर स्थित ये दर्रा तिब्बत और सिक्कम सीमा पर स्थित है। जिससे होकर पुराना गंगटोक-यात्सुंग ल्हासा व्यापार मार्ग गुजरता है। 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध के वक्त चीन ने भारत को नाथु ला और जेलेप ला दर्रे को खाली करने को कहा था। भारत के जेलेप ला तो खाली कर दिया लेकिन नाथु ला दर्रे पर स्थिति पहले जैसी ही रही। जिसके बाद से ही ये विवाद का केंद्र बन गया। भारत ने सीमा परिभाषित की तो चीन ने आपत्ति जताई फिर विवाद की नौबत आई। कुछ दिन बाद चीन ने मशीन गन से फायरिंग की और भारत की तरफ से भी इसका जवाब दिया गया। भारत ने चीन को करारा जवाब दिया था और पीछे धकेल दिया था. तब भारतीय सेना के ऐसे तेवर देखकर चीन भी हैरान रह गया था। उस समय भारत के 80 सैनिक शहीद हुए थे, जबकि चीन के 300 से 400 सैनिक मारे गए थे।
1975 में तुलुंग ला में पेट्रोलिंग टीम पर अटैक
20 अक्टूबर 1975 को चीन ने अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला में असम राइफल्स के जवानों की पेट्रोलिंग टीम पर अटैक किया। हालांकि, चीन ने भारत के इस दावे को नकार दिया। चीन की तरफ से कहा गया की भारतीय सैनिकों ने एलएसी क्रॉस कर चीनी पोस्ट पर हमला किया और पूरी घटना को जवाबी कार्रवाई करार दिया।
तवांग में टकराव
1987 में भी टकराव देखने को मिला, ये टकराव तवांग के उत्तर में समदोरांग चू रीजन में हुआ. भारतीय फौज नामका चू के दक्षिण में ठहरी थीं, लेकिन एक आईबी टीम समदोरांग चू में पहुंच गई, ये जगह नयामजंग चू के दूसरे किनारे पर है। 1985 में भारतीय फौज पूरी गर्मी में यहां डटी रही, लेकिन 1986 की गर्मियों में पहुंची तो यहां चीनी फौजें मौजूद थीं। समदोरांग चू के भारतीय इलाके में चीन अपने तंबू गाड़ चुका था, भारत ने पूरी कोशिश की कि चीन को अपने सीमा में लौट जाने के लिए समझाया जा सके, लेकिन अड़ियल चीन मानने को तैयार नहीं था।
2017 का डोकलाम विवाद
भूटान के पठार में स्थित डोकलाम को लेकर भारत और चीन के बीच साल 2017 में विवाद देखने को मिला। दरअसल, भारत व भूटान के बीच सुरक्षा मामलों को लेकर संधि की गई थी, जिसके तहत विदेशी हमले की सूरत में दोनों एक दूसरे का सहयोग करने की बात कही गई है। डोकलाम विवाद की शुरुआत 16 जून, 2017 को उस वक्त हुई थी जब भारतीय सैनिकों ने चीन की पीएलए के सैनिकों को इस इलाके में सड़क निर्माण करने से रोका था। चीन जिस क्षेत्र में सड़क निर्माण कर रहा था, वह भूटान का इलाका है। इस दौरान दबाव बढ़ाने के लिए भारत ने ब्रिक्स सम्मेलन का बहिष्कार किया, जिससे अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन की काफी किरकिरी भी हुई। लिहाजा चीन के लिए इस विवाद को सुलझाना बड़ी चुनौती बन गई थी। वहीं इसको लेकर जापान और अमेरिका ने भी भारत का साथ दिया था। कई दौर की वार्ता के बाद 28 अगस्त 2017 को चीन के साथ भारत ने भी अपनी-अपनी सेनाओं को पीछे हटाने का फैसला किया।
गलवान की हिंसक झड़प
15-16 जून की रात को भारतीय सेना के जवानों पर चीन के जवानों ने लोहे की रॉड में लगे कटीले तारों से हमला कर दिया था। इस हिंसक झड़प में भारतीय सेना के कर्नल समेत 20 जवान शहीद हो गए थे। तब से लेकर 7 जून तक सीमा पर काफी तनाव था। 10 महीने बाद दोनों देशों के बीच अपनी सेनाओं को पीछे हटाने को लेकर सहमति बनी।
पूर्व लद्दाख में हिंसक झड़प के बाद कैसा रूख है
5 मई की लद्दाख वाली झड़़प के बाद से चीन का आक्रामक रुख बढ़ता जा रहा है। 10 मई को सिक्किम में भारत चीन सैनिकों की झड़प हुई। 1 जून में चीनी ईस्टर्न लद्दाख में एलएसी पर कई जगह आगे आ गए। 15 जून को गलवान में खूनी झड़प हुई थी। इस साल अगस्त में चीनी उत्तराखंड में घुस आए थे।
अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ की कोशिश
एक बार फिर चीन ने अपनी दादागिरी अरुणाचल प्रदेश में दिखाने की कोशिश की। लेकिन उसे मुंह की खानी पड़ी। खबरों के मुताबिक पिछले हफ्ते चीनी सेना की दो टुकड़ी ने यांत्गसे सेक्टर में एलएसी के पास घुसपैठ की कोशिश की। चीनी सेना की दो टुकड़ियों को मिलाकर करीब 200 सैनिक थे। सूत्रों के मुताबिक भारतीय सेना ने कुछ चीनी सैनिकों को बंदी बना लिया था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार चीन की दो टुकड़ियों ने अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ की कोशिश कर रहे थे तभी भारतीय जवानों की पैट्रोलिंग पार्टी वहां आ पहुंची। चीनी सैनिकों को वापस जाने को कहा गया और जिसके बाद विवाद हुआ। बाद बढ़ी तो भारतीय सैनिकों ने उन्हें पीछे धकेला और कुछ चीनी सैनिकों को बंदी बना लिया। बाद में दोनों देशों के सैन्य कमांडर्स की फ्लैग मीटिंग के बाद गतिरोध खत्म हुआ।
क्या युद्ध चाहता है चीन?
चीनी सरकार के प्रोपोगेंडा चलाने वाली पेईचिंग न्यूज वेवसाइट के अनुसार चीन साल 2040 तक अरुणाचल प्रदेश पर कब्जे की तैयारी कर रहा है। यह विवादित लेख साल 2013 में पब्लिश हुआ था लेकिन फिछले दिनों चीन के सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है। इसमें कहा गया है कि चीन साल 2020 से लेकर 2060 के बीच में ताइवान, भारत, जापान और रूस से सैन्य मुठभेड़ की तैयारी कर रहा है। चीन का मकसद 2025 तक ताइवान पर कब्जा कर लेना है।
बहरहाल, एक खास जानवर की दुम सीधी हो सकती है लेकिन चीन की फितरत नहीं। वो समझौते तोड़ देता है। वो बातचीत करता है और उसको उसी वक्त भुला देता है। उसकी कायरता के कारण हमारे बीस जांबाज जवानों को शहादत देनी पड़ती है। गलवान घाटी से लेकर तवांग तक मुंह की खाने के बाद चीन चुप बैठने वाला नहीं है। भारतीय सेना को भी इस बात का इल्म अच्छी तरह से है कि चीन की कथनी और करनी में फर्क हमेशा से रहा है।