By अभिनय आकाश | Apr 01, 2025
डोनाल्ड ट्रंप के लिए टैरिफ पैराशिटामॉल की गोली हो गई है। सिर दुखा टैरिफ लगा दो, पेट दुखा टैरिफ लगा दो। कोई जमीन नहीं दे रहा है टैरिफ लगा दे। किसी ने पलटकर जबाव दे दिया टैरिफ लगा दो। इस तरह की धमकी पिछले तीन महीनों से वो चला रहे हैं। अभी हाल ही में उन्होंने इंपोर्टेड कार और कार पार्ट्स पर 25 फीसदी टैरिफ लगा दिया। इसका सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका के सहयोगी देशों को झेलना पड़ रहा है। दिग्गज कार कंपनियों के शेयर धूल चाट रहे हैं। कई देशों ने पलटवार का ऐलान किया है। जिसके चलते ट्रेड वॉर घमासान होती जा रही है। लेकिन ट्रंप ने कार पर टैरिफ लगाया ही क्यों? नुकसान की जद में आने वाले देश इसका जवाब कैसे दे रहे हैं। भारत पर इसका क्या असर हो सकता है, जहां से पार्ट्स का बड़ा कारोबार होता है। अब डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल को लिबरेशन डे यानी मुक्ति दिवस के रूप में घोषित किया है। 2 अप्रैल से वह विभिन्न देशों से आयातित वस्तुओं पर नए टैरिफ लागू करने जा रहे हैं। ट्रंप ने इसे अमेरिका के लिए एक ऐतिहासिक कदम करार दिया है, जिसका उद्देश्य देश को विदेशी वस्तुओं पर निर्भरता से मुक्त करना और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है। इस घोषणा ने भारत सहित वैश्विक व्यापार, बाजारों और उपभोक्ताओं के बीच व्यापक चर्चा और अनिश्चितता पैदा कर दी है। इससे अमेरिका और उसके व्यापारिक साझेदारों के बीच पहले से ही जारी व्यापार युद्ध और गहराने की आशंका जताई जा रही है। आइए जानते हैं कि ट्रंप के इस 'मुक्ति दिवस' से क्या उम्मीद की जा सकती है।
'डर्टी 15' कौन हैं?
अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने डर्टी 15 कहे जाने वाले देशों के एक समूह का उल्लेख किया है, उन्हें अमेरिका के 15 प्रतिशत व्यापारिक साझेदारों के रूप में वर्णित किया है जो अमेरिकी वस्तुओं पर भारी टैरिफ और अन्य व्यापार बाधाएं लगाते हैं। हालांकि बेसेंट ने यह निर्दिष्ट नहीं किया कि कौन से देश इस श्रेणी में आते हैं, लेकिन आर्थिक डेटा सबसे संभावित उम्मीदवारों के बारे में जानकारी प्रदान करता है। अमेरिकी वाणिज्य विभाग के 2024 के व्यापार घाटे के आंकड़ों से पता चलता है कि अमेरिका का चीन के साथ सबसे अधिक वस्तु व्यापार घाटा है, उसके बाद यूरोपीय संघ, मैक्सिको, वियतनाम, आयरलैंड, जर्मनी, ताइवान, जापान, दक्षिण कोरिया, कनाडा, भारत, थाईलैंड, इटली, स्विट्जरलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया का नंबर आता है। ये देश सामूहिक रूप से अमेरिकी व्यापार असंतुलन के लिए जिम्मेदार हैं और इसलिए व्यापक रूप से माना जाता है कि नए टैरिफ उपायों में ये देश सबसे आगे हैं।
21 देशों की पहचान
अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय (USTR) ने 21 देशों की पहचान भी की है, जिन्हें अनुचित व्यापार प्रथाओं की समीक्षा में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इस विस्तारित सूची में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, यूरोपीय संघ, भारत, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, स्विट्जरलैंड, ताइवान, थाईलैंड, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और वियतनाम शामिल हैं। हालांकि डर्टी 15 उपनाम पर व्यापक रूप से चर्चा हो चुकी है, लेकिन ट्रम्प की हालिया टिप्पणियों से पता चलता है कि इससे व्यापक श्रेणी के देश प्रभावित हो सकते हैं।
कौन से टैरिफ लगाए जाएंगे?
विशिष्ट टैरिफ देश और उद्योग के हिसाब से अलग-अलग होंगे। ट्रम्प ने पहले स्टील और एल्युमीनियम पर कंबल टैरिफ, विदेशी ऑटोमोबाइल आयात पर शुल्क और चीनी वस्तुओं पर क्षेत्र-विशिष्ट टैरिफ लागू किए हैं। नए उपायों में अतिरिक्त क्षेत्र-विशिष्ट शुल्क शामिल हो सकते हैं, विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल्स और सेमीकंडक्टर जैसे उद्योगों में। ऑटो टैरिफ में भी वृद्धि होने की उम्मीद है। ट्रंप प्रशासन 4 अप्रैल से विदेशी कारों और ऑटोमोटिव पार्ट्स पर नए शुल्क लगाने वाला है। व्हाइट हाउस के अधिकारियों ने सुझाव दिया है कि प्रत्येक देश की टैरिफ दर उसके मौजूदा व्यापार प्रथाओं के आधार पर निर्धारित की जाएगी। इसका मतलब यह है कि अमेरिकी वस्तुओं पर विशेष रूप से उच्च टैरिफ या कठोर गैर-टैरिफ बाधाओं वाले देशों को सबसे कठोर दंड का सामना करना पड़ सकता है। प्रशासनिक अधिकारी कथित तौर पर घरेलू कर नीतियों, उत्पाद सुरक्षा विनियमों और अन्य व्यापार प्रतिबंधों जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए टैरिफ को समायोजित करने पर काम कर रहे हैं।
ट्रंप के कदम पर होगी जवाबी कार्रवाई
ट्रम्प की वापसी के बाद आर्थिक नीति में नाटकीय बदलाव हुए हैं, जिनसे कई देश चिंतित हैं। नए प्रशासन ने चीनी, मैक्सिकन और कनाडाई आयातों पर व्यापक टैरिफ लगाए हैं। इसमें यूएस-मैक्सिको-कनाडा समझौते (यूएसएमसीए) के तहत आने वाली वस्तुओं पर पहले रोक लगाई गई, फिर हटाई गई और बाद में अस्थायी छूट दी गई। जवाब में कनाडा और मैक्सिको ने प्रमुख उद्योगों पर टैरिफ की घोषणा की। ट्रम्प हर किसी पर 'टैरिफ के बदले टैरिफ' लगाने की कसम खा रहे हैं। चूंकि विश्व अर्थव्यवस्था पर अमेरिका का सबसे ज्यादा असर होता है, इसलिए इन अचानक और अप्रत्याशित नीतिगत बदलावों ने वैश्विक मंदी की आशंका बढ़ाई है। शेयर बाजार में बिकवाली शुरू हो गई है। इसकी शुरुआत खुद अमेरिका से हुई। वास्तव में, ट्रम्प की व्यापार नीतियां विदेश से ज्यादा खुद उनके देश को नुकसान पहुंचा सकती हैं। हालांकि उनके कुछ कदम फायदेमंद हो सकते हैं, जैसे घरेलू सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने की कोशिशें। लेकिन उनके अनिश्चित नीतिगत बदलाव अमेरिका की आर्थिक स्थिरता को खतरे में डाल सकते हैं, उसकी प्रतिस्पर्धात्मकता को कमजोर कर सकते हैं।
भारत पर क्या असर पड़ेगा
भारत जैसे देशों के लिए, ये टैरिफ निर्यात पर असर डाल सकते हैं। भारत से अमेरिका को फर्नीचर, इलेक्ट्रॉनिक्स, और कपड़ा जैसे उत्पादों का बड़ा निर्यात होता है। यदि भारत पर टैरिफ लगाया जाता है, तो भारतीय कंपनियों को नुकसान हो सकता है। दूसरी ओर, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की 'फ्लेक्सिबिलिटी' की बात भारत जैसे मित्र देशों के लिए राहत की संभावना जता सकती है।
भारत इससे कैसे डील करेगा
देशों के साथ अमेरिका का व्यापार घाटे में चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी बैठक के दौरान उन्होंने विशेष रूप से भारत के साथ अमेरिका के 45.6 अरब डॉलर के व्यापार घाटे के बारे में चिंता जताई थी। जवाब में मोदी ने अमेरिका से ऊर्जा आयात बढ़ाने का वादा किया। लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर व्यापार संबंध संतुलित हो। व्यापार असंतुलन, वैश्विक कारोबार का स्वाभाविक हिस्सा है, जो बड़े पैमाने पर उत्पादन कर सकने वाली अर्थव्यवस्थाओं को सक्षम बनाता है। इससे अंततः सभी देशों को फायदा होता है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि भारत उन 'डर्टी 15 देशों में शामिल है या नहीं, जिन पर ट्रंप प्रशासन टैरिफ लगाने की योजना बना रहा है। भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष 2023 में लगभग 30 बिलियन डॉलर था, जो चीन (400 बिलियन डॉलर) की तुलना में कम है। इससे भारत को निशाना बनाए जाने की संभावना कम हो सकती है।
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