Prajatantra: 23 सालों में 12 सीएम, गठन के बाद से ही राजनीतिक अस्थिरता का शिकार रहा झारखंड

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By अंकित सिंह | Feb 01, 2024

Prajatantra: 23 सालों में 12 सीएम, गठन के बाद से ही राजनीतिक अस्थिरता का शिकार रहा झारखंड

झारखंड खनिजों से समृद्ध राज्य है। इसमें खदानें प्रचुर मात्रा में हैं। जब राजनीति की बात आती है, तो इसमें भी राज्य में काफी हलचल रहती है। झारखंड की राजनीतिक खदान के 23 साल के इतिहास में 12 मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति शासन के तीन चरण हुए हैं। सोचने वाली बात यह है कि झारखंड के मुख्यमंत्रियों का औसत कार्यकाल लगभग 1.5 वर्ष है। झारखंड को एक निर्दलीय उम्मीदवार को भी मुख्यमंत्री बनाने का गौरव प्राप्त है। झारखंड की राजनीतिक इतिहास को देखें तो केवल एक ही मुख्यमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा किया है। 

 

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शिबू सोरेन की सक्रियता

बिहार से अलग होकर अलग झारखंड बनवाने में शिबू सोरेन को सबसे अहम नेता माना जाता है। मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल में वह इस बेशकीमती कुर्सी पर सिर्फ 10 दिन ही बैठ सके। 'गुरुजी' कहे जाने वाले शिबू सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की स्थापना की। वह निवर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पिता हैं, जिन्हें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भूमि घोटाले में गिरफ्तार किया है। राजनीतिक अस्थिरताओं और सत्ता परिवर्तन से जूझ रहे राज्य झारखंड को जल्द ही अपना 12वां मुख्यमंत्री मिलेगा। अपनी गठबंधन सरकार के विधायकों को लिखे पत्र में, हेमंत सोरेन ने बुधवार को चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री के रूप में नामित किया। 


तीन बार राष्ट्रपति शासन 

15 नवंबर, 2000 को राज्य का दर्जा मिलने के बाद से झारखंड में कई राजनीतिक बदलाव देखने को मिले हैं। हेमंत सोरेन भी इसके अहम हिस्सा है। वह, अपने पिता शिबू सोरेन की तरह, झारखंड के तीसरे मुख्यमंत्री हैं जिन्हें गिरफ्तार किया गया है। दूसरे हैं मधु कोड़ा। अपने 23 साल के छोटे से इतिहास में, झारखंड ने सिर्फ एक मुख्यमंत्री को पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करते देखा है। 2000 और 2014 के बीच, झारखंड में पांच मुख्यमंत्रियों के नेतृत्व में नौ सरकारें देखी गईं और तीन बार राष्ट्रपति शासन लगा। बीजेपी के बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बने, जो करीब दो साल तीन महीने तक सत्ता में रहे।


राजनीतिक उठापटक

बाबूलाल मरांडी के सीएम बनने के बाद बीजेपी में अंदरूनी कलह मच गई। बाबूलाल मरांडी राज्य की आदिवासी-गैर आदिवासी राजनीति के शिकार हो गये। 2000 से 2014 के बीच मुख्यमंत्रियों बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन, मधु कोड़ा और हेमंत सोरेन का कार्यकाल औसतन 15 महीने रहा। 14 वर्षों की अवधि में, झामुमो के शिबू सोरेन और भाजपा के अर्जुन मुंडा ने तीन-तीन बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जबकि मधु कोड़ा और बाबूलाल मरांडी एक बार ही मुख्यमंत्री बने। हेमंत सोरेन दो बार राज्य के सीएम रहे। शिबू सोरेन की तीन शपथ में उनका 10 दिन का कार्यकाल भी शामिल था, जब उनकी सरकार झारखंड विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर सकी थी। इस अवधि में झारखंड की राजनीतिक अस्थिरता भी देखी गई, जिसके परिणामस्वरूप तीन बार, कुल 645 दिनों का राष्ट्रपति शासन लगाया गया।


रघुबर दास का कमाल

12वें मुख्यमंत्री को छोड़कर, जिन्होंने अभी तक पद की शपथ नहीं ली है, झारखंड में छह लोगों ने मुख्यमंत्री की भूमिका संभाली है। 2014 के बाद झारखंड में राजनीतिक स्थिति स्थिर हो गई, जब भाजपा के रघुबर दास ने मुख्यमंत्री के रूप में पूर्ण कार्यकाल पूरा किया। वह पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले झारखंड के पहले और एकमात्र सीएम हैं। हालांकि, अपना पूरा कार्यकाल पूरा होने के बाद भी, रघुबर दास अपनी मुखर छवि के कारण 2019 झारखंड राज्य विधानसभा चुनाव हार गए। 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद बीजेपी के अर्जुन मुंडा को केंद्र सरकार में काम करने के लिए दिल्ली बुलाया गया। वहीं, पार्टी छोड़ अलग पार्टी बनाने वाले बाबूलाल मरांडी को फिर से भाजपा में शामिल कराया गया। 

 

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2019 के झारखंड राज्य विधानसभा चुनावों में उलटफेर देखने को मिला और हेमंत सोरेन के जेएमएम के नेतृत्व वाले गठबंधन ने सरकार बनाई। झामुमो को कांग्रेस और तीन छोटे सहयोगियों का समर्थन प्राप्त था। 

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