By अभिनय आकाश | Apr 06, 2025
6 अप्रैल को अपना स्थापना दिवस मना रही है। ये स्थापना दिवस इस बार भव्य तरीके से पूरे सप्ताह भर मनाया जाएगा। 6 अप्रैल से 13 अप्रैल तक पूरे सप्ताह अलग अलग जगहों पर कार्यक्रम किए जाएंगे। इसके अलावा 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती को भी भव्य तरीके से मनाने की तैयारी की जा रही है। भारतीय जनता पार्टी जिसकी नर्सरी से अब तक दो राष्ट्रपति 3 उपराष्ट्रपति, दो प्रधानमंत्री और तीन नेता प्रतिपक्ष निकल चुके हैं। जिसके बारे में इन दिनों कहा जा रहा है कि वो बदल गई है। बीजेपी के बनने की कहानी तो आपने खूब सुनी होगी लेकिन आज आपको बीजेपी के बदलने की कहानी बताएंगे। इसके साथ ही बताएंगे कि इस बदलाव के पीछे की वजह क्या है।
बैठक, भोजन और विश्राम, बीजेपी के 3 काम
चुनाव के नतीजों में उलटफेर कर देने वाली लहरे जिन्हें देश ने देखा, वोटर के मन को बदल देने वाली लहरे जिसे साल 2014 में पूरी जनता ने देखा। विपक्ष को सत्ता में लाकर बिठा देने वाली लहरे और सत्ता को विपक्ष में बिठाने वाली लहरे से भी मुखातिब हुआ देश। देश की सबसे पुरानी पार्टी को इतिहास की राजनीति का डब्बा बना देने वाली लहरों की तपिश को जनतंत्र ने महसूस किया। जिस भाजपा के बारे में कहा जाता था कि 'बैठक, भोजन और विश्राम... भाजपा के यह तीन काम' इस धारणा को 2014 और फिर 2019 के चुनाव में ध्वस्त करके रख दिया गया। 182 की चौखट पर हांफने वाली बीजेपी ने एक नहीं दो-दो दफा अपने बूते बहुमत के आंकड़े को पार किया। वहीं तीसरी बार अपने बूते पर नहीं लेकिन सहयोगियों के सहारे हैट्रिक लगाकर राजनीति का एक नया इतिहास लिख दिया।
जीत के नारों के बीच छिपा सियासी संदेश
आज भारतीय जनता पार्टी अपने 46वें जन्मदिवस को मना रह़ी है। अपनी स्थापना के बाद भारतीय जनता पार्टी ने पहले लोकसभा चुनाव में सिर्फ दो सीटों पर जीत हासिल की थी। आधे से अधिक प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। लेकिन आज बीजेपी जिस मुकाम पर है वो किसी को बताने की जरूरत नहीं है। आम जनमानस के मन में बीजेपी की अभी तक ऐसी तस्वीर रही है जो आरएसएस के मुख्यालय नागपुर से नियंत्रित होती है। जो केवल और केवल अपने काडर पर ही भरोसा करती है। जहां दूसरे दल या विचारधारा से आने वाले शख्य के लिए बहुत ज्यादा स्पेस नहीं होता। 2014 से पहले तक अगर बीजेपी की व्याख्या होती तो ये उपरोक्त कही बातें सोलह आने सच होती। स्थापित चेहरों के नेतृत्व में चुनाव में जाना, चाहे भले ही उनमें चुनाव जीताने की काबलियत बची हो या नहीं, इस सारी बातें बेमानी लगती थी। चाहे इसके परिणाम कुछ भी रहे हो। दो बार सत्तारूढ़ होने के बाद भी सदन में विश्वासमत हासिल नहीं कर पाना हो या तीसरी बार पांच साल के कार्यकाल के बाद भी वापस नहीं आना, वो फिर भी खुश थी।
जो उपयोगी है वो उसका है
2014 के बाद बीजेपी में काफी बदलाव आए हैं और इस बात से कोई इनकार भी नहीं कर सकता। उसमें हारी हुई बाजी को जीत में बदलने का हुनर आ गया है। पार्टी को अब हार शब्द इतना नागवार गुजरने लगा है कि पार्टी टाइम पॉलिटिक्स को उसने फुल टाइम जॉब बना दिया है। बात चाहे चुनावी रैलियों के माध्यम से मैदान में उतरना हो या वर्क फ्रॉम होम वाले टाइम में आभाषी मंच का सहारा लेना पार्टी की बस एक ही नीति है द शो मस्ट गो ऑन। वो जोखिम लेने से नहीं डरती उसका सीधा सा फॉर्मूला है जो उपयोगी है वो उसका है और जो अनुपयोगी है वो उसका होकर भी नहीं है।
बीजेपी में आए बदलाव की वजह
उत्तर प्रदेश में योगी 2.0 की सरकार के गठन से पहले सीएम का नाम तो सभी को पता था लेकिन डिप्टी सीएम पद को लेकर कयासों का दौर खूब चल पड़ा था। कोई कह रहा था कि इस बार यूपी में चार सीएम बनेंगे। कोई केशव प्रसाद मौर्य के चुनाव हारने के बाद उनके केंद्र में जाने की बात भी करता दिख रहा था। लेकिन योगी कैबिनेट के शपथग्रहण समारोह में एक शख्स के पार्टी के तमाम धुरंधरों को पछाड़ते हुए सीधा डिप्टी सीएम की शपथ लेने के बाद सभी हैरान हो गए, आखिर ये कैसे हो गया? महज पांच साल पहले बसपा से बीजेपी में शामिल होकर सीधा राज्य के उपमुख्यमंत्री का बनाया जाना। लेकिन ये कोई एकलौता उदाहरण नहीं है बल्कि फेहरिस्ता काफी लंबी है। 2015 में कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए हिमंत बिस्वा सरमा महज छह साल में असम के सीएम बन जाते हैं। यही नहीं, उनसे पहले पांच साल तक असम के सीएम सर्वानंद सोनोवाल रहे। सोनोवाल को जब सीएम की कुर्सी मिली तो असम गण परिषद से बीजेपी में उन्हें भी आए हुए पांच साल का वक्त ही बीता था। कर्नाटक के सीएम वासवराज बोम्मई भी 13 साल पहले कमल थामा था। उधर, बंगाल में बीजेपी ने जिन सुभेंदु अधिकारी को नेता प्रतिपक्ष बनाया है, उन्हें जब ये दर्जा मिला, तब बीजेपी में अधिकारी को आए हुए सिर्फ छह महीने ही हुए थे। आज वह बंगाल में बीजेपी का चेहरा हैं और ममता सरकार को लगातार विभिन्न मुद्दों पर घेरते भी नजर आते हैं। जब ऐसे चेहरों को लोग बीजेपी में आगे बढ़ते और मजबूत होते देखते हैं तो उन्हें लगता है कि पार्टी बदल गई है या बदल रही है।