जयंती विशेष: Atal Bihari Vajpayee के जीवन की ये कहानियां शायद ही आपने सुनी हों

By अंकित सिंह | Dec 25, 2021

भारतीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी का कद क्या था, शायद यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें जननेता कहा जाता है। इसके साथ ही अटल बिहारी वाजपेय को भारतीय राजनीति का आजादशत्रु भी कहा जाता है। भारत माँ के सच्चे सपूत, राष्ट्र पुरुष, राष्ट्र मार्गदर्शक, सच्चे देशभक्त ना जाने कितनी उपाधियों से पुकार जाता था भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी को। हम यह कह सकते है कि वो सही मायने में भारत रत्न थे। देश के तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके अटल बिहारी वाजपेयी को सांस्कृतिक समभाव, उदारवाद और तर्कसंगतता के लिए जाना जाता है। राष्ट्र के लिए अटल बिहारी वाजपेयी सदैव समर्पित रहे। अटल बिहारी वाजपेयी अपनी वाकपटुता के लिए भी जाने जाते थे। आज हम उन्हीं के जीवन के कुछ अनछुए किस्से आपको बताते हैं।

इसे भी पढ़ें: सामाजिक समरसता के संवाहक थे पंडित मदन मोहन मालवीय

पैदल जाते थे संसद 

एक अखबार को दिए इंटरव्यू में अटल बिहारी वाजपेयी के बेहद नजदीकी रहे लालकृष्ण आडवाणी ने एक मजेदार किस्सा बताया था। आडवाणी ने कहा था कि अटल बिहारी वाजपेयी जब पहली बार सांसद बने थे तो वह भाजपा नेता जगदीश प्रसाद माथुर के साथ चांदनी चौक में रहते थे। दोनों संसद पैदल ही आते जाते थे। लेकिन एक दिन अचानक अटल बिहारी वाजपेयी ने माथुर जी से कहा कि आज रिक्शा से चलते हैं। माथुर जी को थोड़ा आश्चर्य हुआ। लेकिन बाद में पता चला कि आज बतौर सांसद अटल बिहारी वाजपेयी को तनख्वाह मिली थी।


नहीं की थी शादी

वाजपेयी जी ने शादी नहीं की थी, यह हम सभी को पता है। लेकिन उनसे इंटरव्यू में यह सवाल बार-बार किए जाते थे कि आपने शादी क्यों नहीं की? एक इंटरव्यू के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने बताया कि घटनाक्रम ऐसा चलता गया कि मैं उसमें उलझ गया और विवाह का मुहूर्त ही नहीं निकल पाया। इसके साथ ही उनसे सवाल किया गया कि कभी अफेयर हुआ? मुस्कुराते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने जवाब दिया था कि ऐसी बातें सार्वजनिक रूप से नहीं की जाती। मजाक मजाक में अटल बिहारी वाजपेयी ने तो एक बार यह भी कह दिया था कि वह अविवाहित है, परंतु कुंवारे नहीं हैं।


फिल्म देखने का शौक

अटल बिहारी वाजपेयी को फिल्मों का बड़ा शौक था। वह अपने दोस्तों के साथ नजदीकी सिनेमा हॉल में अक्सर जाते थे और फिल्म देखते थे। इसके साथ ही वह जब भी तनाव में होते तो फिल्में देखना उन्हें पसंद था। एक बार दिल्ली के नयाबांस का उपचुनाव था। भाजपा की ओर से अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने जीत के लिए कड़ी मेहनत की थी। लेकिन पार्टी चुनाव हार गई। दोनों में नाराजगी थी लेकिन अचानक अटल जी ने कहा- चलो फिल्म देखते हैं और फिर दोनों फिल्म देखने चले गए। 


जब बिना बताए हुआ था पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर नाम का ऐलान

तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने 1995 के मुंबई सार्वजनिक तौर पर यह ऐलान कर दिया था कि अटल बिहारी वाजपेयी ही भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। तब कई लोगों को आश्चर्य भी हुआ था। तभी अटल बिहारी वाजपेयी ने तुरंत आडवाणी से पूछा यह आपने क्या कर दिया? मुझसे पूछ तो लिया होता। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी को जवाब देते हुए आडवाणी ने कहा पार्टी का अध्यक्ष होने के नाते अधिकार रखता हूं।

इसे भी पढ़ें: कृषक हितों के लिए अनवरत प्रयास करते रहे चौधरी चरण सिंह

खाने-पीने के थे शौकीन

अटल बिहारी वाजपेयी खाने-पीने के शौकीन थे। अपने शुरुआती दिनों में वे अक्सर अपने दोस्तों के साथ दिल्ली के विभिन्न रेस्टोरेंट में चला जाया करते थे। इसके साथ ही जब भी उन्हें मौका मिलता वह पकौड़े और खिचड़ी जबरदस्त तरीके से बनाते थे और दोस्तों के साथ मिल बैठकर खाते थे। उन्हें पुरानी दिल्ली में स्थित करीम होटल का खाना काफी पसंद था। उन्होंने अपने नॉनवेज खाने और मदिरापान की बात को कभी भी नहीं छुपाया। 


अटल बिहारी वाजपेयी करीब 50 वर्षों तक भारतीय संसद के सदस्य रहे। हालांकि वह ऐसे एकमात्र नेता थे जो चार अलग-अलग प्रदेशों से चुनकर संसद पहुंचे थे। इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे एकमात्र गैर कांग्रेसी नेता हैं जिन्होंने तीन बार प्रधानमंत्री पद संभाला है। 


कविता प्रेम

अटल बिहारी वाजपेयी का पहला प्रेम कविता ही बताया जाता है। अटल बिहारी वाजपेयी शानदार कवि थे। उन्हें कवि सम्मेलनों में जाना बेहद ही पसंद था। हालांकि उच्च पदों पर पहुंचने के बाद वह इन सम्मेलनों में शामिल नहीं हो पाते थे जिसकी वजह से निराश भी हो जाते थे। इसके अलावा वह अपने आलोचकों को भी ध्यान से सुनते थे और उनकी तारीफ करते थे। 


यारों के यार थे

अटल बिहारी वाजपेयी की दोस्ती सभी को पता है। अपने विरोधी दलों के नेताओं के साथ भी उनकी दोस्ती काफी चर्चा में रहती थी। पीवी नरसिम्हा राव जब देश के मुख्यमंत्री थे तब ऐसे कई फैसले थे जो वह अटल बिहारी वाजपेयी से पूछ कर लिया करते थे। नरसिम्हा राव अटल बिहारी वाजपेयी को अपना राजनीतिक गुरु माना करते थे। साथ ही एक बार अटल बिहारी वाजपेयी ने मनमोहन सिंह को इस्तीफा देने से रोका था। दरअसल, मामला तब का है जब पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। मनमोहन सिंह ने अपना बजट भाषण संपन्न किया तो अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में उनकी खूब आलोचना की। मनमोहन सिंह इससे आहत हो गए और उन्होंने प्रधानमंत्री गांव को अपना इस्तीफा पेश कर दिया। राव साहब ने तुरंत वाजपेयी जी को फोन कर पूरी कहानी बताई। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने मनमोहन सिंह से मुलाकात की थी और उन्हें समझाया था की आलोचना राजनीतिक है, इसे व्यक्तिगत नहीं लेना चाहिए। अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर मनमोहन सिंह हमेशा उनसे मिलने जाया करते थे। 

इसे भी पढ़ें: स्वामी श्रद्धानंद ने किया था स्वामी दयानंद सरस्वती की शिक्षाओं का प्रसार

एक राजनीतिक परिचय

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफर तय करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म ग्वालियर में बड़े दिन के अवसर पर 25 दिसम्बर 1924 को हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी पत्रकारिता करने के बाद राजनीति में आए। 1951 में भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में वह थे। पहली बार 1957 में उत्तर प्रदेश के बलरामपुर सीट से जीतकर संसद पहुंचे थे। 1962 से 68 तक वह उत्तर प्रदेश से ही राज्यसभा के सदस्य रहे। 1967 में एक बार फिर से वह बलरामपुर से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। ग्वालियर से उन्होंने 1971 में जीत हासिल की थी। नई दिल्ली सीट से वह 1977 में चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। 1977 में ही वह देश के विदेश मंत्री बने तभी उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में अपना संबोधन दिया था। 1980 में वह एक बार फिर से पांचवी बार लोकसभा पहुंचे थे। 1980 में ही भाजपा की स्थापना हुई थी और वह उसके संस्थापक सदस्यों के साथ-साथ पहले अध्यक्ष भी थे। 1986 में वह मध्य प्रदेश से राज्यसभा पहुंचे। 1991 में उन्होंने लखनऊ से जीत हासिल की थी और छठी बार लोकसभा पहुंचे। 1993 से 96 तक वह लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे। 1996 में लखनऊ से जीतकर संसद पहुंचे और 13 दिनों के लिए भाजपा सरकार का नेतृत्व किया और प्रधानमंत्री बने। 1996 से 97 तक के एक बार फिर से वह लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे। 1998 में उन्होंने लखनऊ से एक बार फिर से चुनाव जीता और प्रधानमंत्री बने। 1999 में भी हुए चुनाव में उन्होंने लखनऊ से जीत हासिल की और तीसरी बार प्रधानमंत्री बने। 2004 में भाजपा को हार मिली हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ सीट से जीतने में कामयाब हुए। लेकिन स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से उन्होंने धीरे-धीरे राजनीति से दूरी बना ली। कई गंभीर बीमारियों से जूझने वाले अटल बिहारी वाजपेयी का निधन 16 अगस्त 2018 को दिल्ली के एम्स में हुआ।


- अंकित सिंह

प्रमुख खबरें

PM Narendra Modi कुवैती नेतृत्व के साथ वार्ता की, कई क्षेत्रों में सहयोग पर चर्चा हुई

Shubhra Ranjan IAS Study पर CCPA ने लगाया 2 लाख का जुर्माना, भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने है आरोप

मुंबई कॉन्सर्ट में विक्की कौशल Karan Aujla की तारीफों के पुल बांध दिए, भावुक हुए औजला

गाजा में इजरायली हमलों में 20 लोगों की मौत